आशंकित भारत की वैदेशिक नीति में बदलाव की दरकार  
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आशंकित भारत की वैदेशिक नीति में बदलाव की दरकार  

हस्तक्षेप,राष्ट्रीय सहारा 

अटल बिहारी वाजपेयी अक्सर कहा करते थे कि दोस्त बदले जा सकते हैं मगर पड़ोसी नहीं। वाजपेयी की कूटनीति सीधी और स्पष्ट  रही और पड़ोसी देशों को लेकर उनमें शक्ति,सामरिक दृष्टिकोण और संवाद की गहरी समझ शामिल थी। वाजपेयी देश की आंतरिक राजनीति की छाया में वैदेशिक नीति को प्रभावित न होने देने के लिए संकल्पित और सतर्क रहे। तमाम विरोध के बाद भी दिल्ली लाहौर बस सेवा शुरू करने का उनका फैसला सराहनीय था। इसके वैश्विक संदेश भी बेहतर थे,इसलिए बाद में कारगिल युद्द के लिए दुनिया ने पाकिस्तान को जिम्मेदार माना और यहीं से भारत और अमेरिका के मजबूत संबंधों की शुरुआत हुई। 

इस समय पड़ोसी देशों से भारत के सम्बन्ध इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुजर रहे है और यह स्थिति भारत की सामरिक सुरक्षा के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण है खासकर दक्षिण एशिया में चीन की बढती भागीदारी से संकट ज्यादा गहरा गया है । कूटनीति को अंतरराष्ट्रीय राजनीति का एक साधन कहा जाता है जिसके द्वारा राष्ट्र अपने शक्ति संतुलन को बनाए रखते हैं और अपने उद्देश्यों को प्राप्त करते हैं। पड़ोसी देशों को लेकर वर्तमान में भारत की कूटनीति राष्ट्रीय हितों की दृष्टि से प्रभावी नजर नहीं आ रही है।  

दक्षिण एशिया में भारत की रणनीतिक स्थिति अत्यधिक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली है,जो क्षेत्रीय और वैश्विक संदर्भ में भारत को एक प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित करती है। भारत दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा देश है और भारत का क्षेत्रफल,जनसंख्या और संसाधन इसे इस क्षेत्र में प्रमुख शक्ति बनाते हैं। पाकिस्तान, बांग्लादेश,नेपाल,श्रीलंका,भूटान और मालदीव के साथ भारत की स्थलीय या समुद्री सीमा लगती है । पड़ोसी देशों पर पारस्परिक निर्भरता को संतुलित रखते हुए भारत अपनी सुरक्षा,आर्थिक हित और सामरिक रणनीतियों को अमल में लाने की कोशिशें करता रहा है। इन देशों से भारत के बेहतर संबंध क्षेत्र में भारत की स्थिति को मजबूत करते है जबकि इस समय  श्रीलंका,मालदीव,बांग्लादेश और नेपाल जैसे बेहद महत्वपूर्ण सहयोगी देश लगातार संकट बढ़ा रहे है।   श्रीलंका हिंद महासागर में एक प्रमुख स्थान पर स्थित है। यह एशिया,अफ्रीका और यूरोप के बीच समुद्री व्यापार मार्गों के करीब है जो इसे एक महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग बनाता है। श्रीलंका के कोलंबो और हम्बनटोटा बंदरगाह अंतर्राष्ट्रीय नौवहन और व्यापार के लिए महत्वपूर्ण हब हैं। श्रीलंका भारत के दक्षिणी तट से मात्र 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस अर्थ है कि श्रीलंका में होने वाली कोई भी गतिविधि सीधे तौर पर भारत की सुरक्षा और स्थिरता पर प्रभाव डाल सकती है। हाल के वर्षों में,चीन ने श्रीलंका में बुनियादी ढांचे के विकास में बड़े पैमाने पर निवेश किया है,हम्बनटोटा बंदरगाह का चीन द्वारा विकसित किया जाना और इसके बाद श्रीलंका द्वारा इसे 99 वर्षों के लिए चीन को पट्टे पर देना,चीन के रणनीतिक प्रभाव को दर्शाता है। यह चीन के समुद्री सिल्क रोड पहल का हिस्सा है। श्रीलंका की यह रणनीतिक स्थिति इसे वैश्विक और क्षेत्रीय शक्ति संतुलन में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनाती है। इसके भूस्थानिक महत्व, समुद्री सुरक्षा, और आर्थिक प्रभाव इसे विभिन्न देशों के लिए एक महत्वपूर्ण साझेदार बनाते हैं।

भारत का एक और साझेदार देश मालदीव भारत के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है और दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध हैं। मालदीव की निकटता और समुद्री मार्गों पर इसका नियंत्रण समुद्री सुरक्षा और रणनीतिक हितों के संदर्भ में भारत के लिए महत्वपूर्ण है। यह महत्वपूर्ण समुद्री व्यापार मार्गों के पास स्थित है जो एशिया,अफ्रीका और यूरोप को जोड़ते हैं। मालदीव का यह स्थान इसे अंतरराष्ट्रीय समुद्री नौवहन के लिए एक प्रमुख केंद्र बनाता है। हाल के वर्षों में चीन ने मालदीव में बंदरगाह और सड़कों के निर्माण में बड़े पैमाने पर निवेश किया है। मालदीव के पास महत्वपूर्ण जलमार्गों की निगरानी और सुरक्षा में एक महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।

बांगलादेश दक्षिण एशिया में स्थित एक छोटे लेकिन महत्वपूर्ण देश है, जो भारत और म्यांमार के बीच स्थित है। भारत के साथ सबसे लम्बी सीमा रेखा साझा करने वाला बांग्लादेश इसे भारत के साथ गहरे सांस्कृतिक,ऐतिहासिक और राजनीतिक संबंधों में बांधता है। बांग्लादेश,बंगाल की खाड़ी से जुड़ा है जो इसे समुद्री व्यापार और सुरक्षा के दृष्टिकोण से रणनीतिक महत्व देता है। बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम में भारत ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी,जिससे दोनों देशों के बीच एक मजबूत और सहकारी संबंध स्थापित हुए हैं। भारत के लिए बांग्लादेश की स्थिरता महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पाकिस्तान और चीन के साथ क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा में एक काउंटर बैलेंस के रूप में कार्य करता है। नेपाल के साथ भारत का सीमा विवाद, विशेष रूप से कालापानी,लिपुलेख और लिम्पियाधुरा क्षेत्रों को लेकर,भारत की आंतरिक राजनीति में बड़े मुद्दे का रूप ले चुका है। नेपाल में इस मुद्दे पर आंतरिक राजनीतिक दबाव और आंदोलन हुए,जिससे दोनों देशों के संबंधों में खटास आई।

भारत के पड़ोसी चीन की कर्ज नीति के जाल में उलझे हुए है और इन देशों की चीन पर निर्भरता बहुत हद तक बढ़ गई है। चीन आर्थिक सहयोग बढ़ाकर अपने सामरिक हितों की पूर्ति कर रहा है। जाफना के तीन द्वीपों पर प्रस्तावित चीनी ऊर्जा परियोजना भारत की नई चुनौती है।  ये तीनों द्वीप तमिलनाडु के समुद्री तट से बहुत दूर नहीं हैं। चीन इन दोनों देशों में बेल्ट एंड रोड के काम को तत्परता से पूरा कर रहा है। भारत की आंतरिक राजनीति से कच्छदीव टापू मुद्दा उभरा जिससे श्रीलंका में भारत का समर्थन करने वाली राजनीतिक पार्टियां भी नाराज हो गई। इसके बाद श्रीलंका के बन्दरगाहों को चीन के खोजी जहाजों का आवागमन बढ़ गया।

बांग्लादेश में सत्ता से शेख हसीना के हटने के बाद वहां राजनीतिक अस्थिरता बढ़ी है। इसमें शेख हसीना के समर्थकों को निशाना बनाया जा रहा है और अंततः पूरा विरोध भारत विरोध के रूप में दिखाई पड़ रहा है। मालदीव में भारत विरोध के जरिए सत्ता में आने वाले मुइज्जू ने शुरूआती दौर में भारत के विरोध में कड़ा रुख दिखाया जबकि बाद में उनके रुख में नरमी आई। इसका  प्रमुख कारण भारत पर मालदीव की भौगोलिक निर्भरता रहा,जिसे मुइज्जू ने समझा। बांग्लादेश की भौगोलिक स्थिति भारत से दूर रहकर उसके आगे बढने की क्षमताओं को खत्म करती है। बांग्लादेश की पाकिस्तान से नजदीकी इसलिए भी संभव नहीं है क्योंकि बांग्लादेश के लोगों के लिए यह न तो व्यापार की दृष्टि से ठीक है और न ही सुरक्षा की दृष्टि से। नेपाल में ओली का चीन परस्त रुख को लेकर भी भारत आशंकित रहता है।  

भारत की कूटनीति नेपाल,बांग्लादेश,श्रीलंका और मालदीव के प्रति समग्र और बहुआयामी है। भारत अपने कूटनीतिक संबंधों को विभिन्न पहलुओं पर केंद्रित कर इन देशों के साथ सहयोग बढ़ाता है,जैसे सुरक्षा,आर्थिक विकास,सांस्कृतिक आदान प्रदान और क्षेत्रीय स्थिरता। इन देशों के नागरिको से भारत के सम्बन्ध वहां की सरकारों को भी प्रभावित करते है। नेपाल,बांग्लादेश,श्रीलंका और मालदीव के लोगों के लिए शिक्षा,स्वास्थ्य और धार्मिक दृष्टि से भारत को चीन पर स्वभाविक बढ़त मिल जाती है। इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है देश की आंतरिक राजनीति को वैदेशिक नीति से अलग रखना। भारत की बहुलता पड़ोसी देशों को आकर्षित करती है,इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए भारत को पड़ोसी देशों में प्रभावशाली किसी विशेष राजनीतिक दल का समर्थन करने या किसी एक दल के भरोसे रहने से ज्यादा जनता का भरोसा जीतने की जरूरत है।  भारत की वैदेशिक नीति पड़ोसी देशों के कुछ राजनीतिक दलों की कूटनीति से आशंकाग्रस्त दिखाई पड़ती है जिसका सीधा असर भारत के राष्ट्रीय हितों पर पड़ रहा है।

किसी देश की जनता को दूसरे देश की जनता से जुड़ने की कूटनीति एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली तरीका है,जिसके माध्यम से देशों के बीच पारस्परिक समझ,विश्वास और सहयोग को बढ़ावा दिया जाता है। इस कूटनीति का उद्देश्य केवल सरकारों के बीच नही,बल्कि आम नागरिकों के बीच भी अच्छे रिश्ते और समझ विकसित करना है। इसके लिए विभिन्न उपायों और रणनीतियों का पालन किया जाता है,जो संस्कृति,शिक्षा,व्यापार और सामाजिक संबंधों के माध्यम से दोनों देशों के बीच स्थायी और मजबूत संबंध स्थापित करने में मदद करते हैं।  पड़ोसी देशों को लेकर भारत के लिए यह कूटनीति ज्यादा कारगर और लाभदायक रही है। भारत को दक्षिण एशिया के अन्य देशों के लोगों से बेहतर सम्बन्ध रखने की कूटनीति को सर्वोपरी रखकर आगे बढ़ने से  चीन से मुकाबला किया जा सकता है।

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