इंदल देव की आराधना में खूब झूमे आदिवासी
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इंदल देव की आराधना में खूब झूमे आदिवासी

लोकदेश 

सर्द आधी रात में अपने इंदल देव के आराधना गीतों पर झूमते हुए हजारों आदिवासियों के साथ संस्कृति विभाग की रंगारंग और मोहक प्रस्तुतियां। सतपुड़ा की घनी वादियों के आंचल में बसे जनजाति बाहुल्य जिले बड़वानी के मटली गांव में प्रतिवर्ष इंदल उत्सव मनाया जाता है23 से 25 दिसम्बर तक  जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी संस्कृति परिषद द्वारा तीन दिन कार्यक्रम में देश के जाने माने कलाकार और समूह शामिल होते हैजनजातीय समुदाय की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2011 यह आयोजन किया जा रहा है। इस बार भी यह उत्सव आदिवासी कला और संस्कृति से सराबोर रहा और इसने हजारों आदिवासियों को दिल जीत लियारंग बिरंगे परिधानों में आयें आदिवासी खूब झूमे,थिरके और उन्होंने देश भर से आयें कलाकारों को खूब सराहा

 

जनजातीय और भारतीय संस्कृति में प्रकृति और कला का गहरा संबंध है। यह संबंध न केवल सांस्कृतिक पहचान को बनाता है बल्कि सामुदायिक जीवन और परंपराओं को भी संजोता है। प्रकृति और कला के माध्यम से ये संस्कृतियां अपनी धरोहर और मूल्यों को संजोकर रखती हैं और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती हैं। इंदल उत्सव में जनजातीय और भारतीय संस्कृति का यहीं समन्वय देखने को मिलता है। ग्राम मटली में तीन दिनी सांस्कृतिक कार्यक्रम रात में आयोजित किए  जाते है। कलाकारों की प्रस्तुति देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग शामिल  होते है। आदिवासी समाज के लोग इंदल देवता को पानी के देवता के रूप में मानते हैं। साथ ही मन्नत भी मांगते हैं। पूजन विभान कर समाज के  लोग अच्छी बारिश हो और फसल अच्छी पके,घर में सुख-शांति बनी रहे, बीमारी का प्रकोप ना रहे ऐसी मन्नत मांगते हैं। मन्नत पूरी करने के लिए इंदल पर्व आस्था व जश्न के साथ मनाते है। इंदल देव किसानों के साथ प्रकृति के भी पोषक है। मटली में इंदल देव साकार रूप में विराजमान है।

इंदल उत्सव एक महत्वपूर्ण जनजातीय पर्व है जो मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के जनजातीय समुदायों के बीच मनाया जाता है। यह पर्व मुख्यतः  भील,भिलाला,बारेला और बैगा जनजातियों द्वारा मनाया जाता है और यह उनकी संस्कृति और परंपराओं का महत्वपूर्ण हिस्सा है। बड़वानी जिले के मटली गांव में इंदल देवता का भव्य मंदिर है,इसे इंदल धाम के नाम से जाना जाता है। इंदल धाम में हजारों आदिवासी आकर ईश्वर की आराधना करते है। इंदल उत्सव जनजातीय समुदाय की सांस्कृतिक धरोहर को संजोने और संचारित करने का एक माध्यम है। यह पर्व उनकी परंपराओं,विश्वासों और सामाजिक मूल्यों को जीवित रखने का एक महत्वपूर्ण साधन है। इंदल उत्सव जनजातीय समुदाय के जीवन में विशेष स्थान रखता है। यह न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का प्रतिनिधित्व करता है बल्कि सामूहिकता और सामाजिक समरसता को भी बढ़ावा देता है। इस प्रकार के पर्व जनजातीय समाज की धरोहर को सजीव रखते हैं और आने वाली पीढ़ियों को अपनी संस्कृति से जुड़ने का अवसर प्रदान करते हैं।

 

इंदल उत्सव में आदिवासी और पारम्परिक भारतीय नृत्य की छाप

इंदल उत्सव में भगोरिया नृत्य, निमाड़ी गायन,राठिया जनजाति गुजरात,मयूर भंज छाऊ नृत्य,कालबेलिया और घुमर नृत्य,गढ़वी गायन, भवई और चरी नृत्य नृत्यों की धूम रही। आदिवासी नृत्य में एक अनूठी नृत्य शैली होती है। प्रत्येक नृत्य विशिष्ट वेशभूषा और संगीत द्वारा दर्शाया जाता है। पुरुषों और महिलाओं की आमतौर पर विशिष्ट भूमिकाएं होती हैं जो वे विभिन्न आदिवासी नृत्यों में निभाते हैं। आदिवासी नृत्य की एक अन्य विशिष्ट विशेषता यह है कि इसमें सभी सदस्य,चाहे उनकी आयु,लिंग या  जाति कुछ भी हो,एक समूह के रूप में मांदर या नगाड़े की लय के साथ अत्यंत समन्वयित सुंदर शारीरिक गतिविधियों के साथ एक साथ आते हैं। इंदल उत्सव में भगोरिया नृत्य की जोरदार प्रस्तुति रही। धार के प्रताप सिंह और उनके साथियों ने जब मंच पर अपनी प्रस्तुति दी तो हजारों लोग उनके साथ झूमने लगे। भगोरिया नृत्य,मध्य प्रदेश के झाबुआ ज़िले की भील जनजाति का एक लोकप्रिय नृत्य है। यह नृत्य,भगोरिया नाम के त्योहार और मेले से जुड़ा हुआ है। भगोरिया,जीवन और प्रेम का उत्सव है जिसे संगीत,नृत्य और रंगों के साथ मनाया जाता है। इस त्योहार के दौरान, मध्य प्रदेश के आदिवासी इलाकों में कई मेले लगते हैं। इन मेलों में,हज़ारों की संख्या में युवक-युवतियां पारंपरिक वस्त्रों में शामिल होती हैं। इसके साथ गुजरात के एक प्रमुख आदिवासी नृत्य राठवा पर भी लोग जमकर झूमे। यह नृत्य राठवा समुदाय के लोगों द्वारा प्राचीन काल से उत्सवों और समारोहों में प्रस्तुत किया जाता है और इसमें जीवंत ताल और रंगीन आंदोलनों का उत्साह होता है। यह नृत्य गुजरात की धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है और उसकी समृद्ध और प्राचीन संस्कृति को दर्शाता है। राठवा नृत्य मुख्य रूप से गुजरात के वडोदरा जिले के छोटा उदयपुर,जाबुगाम और नसवाडी तालुकाओं और पंचमहल जिले के हलोल, कलोल और बारिया तालुकाओं में लोकप्रिय है।

आदिवासी समुदायों में नृत्य उनके रीतिरिवाजों और संस्कृति का अभिन्न अंग

भारत के आदिवासी समुदायों में नृत्य उनके रीति-रिवाजों और संस्कृति का अभिन्न अंग है। यह न केवल समुदाय की सांस्कृतिक अभिव्यक्ति है,बल्कि उनके दर्शन का प्रतिबिंब है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह उनके सामूहिक ज्ञान और बुद्धि का भंडार है। आदिवासी नृत्य की सबसे खास विशेषता प्रकृति के साथ उसका गहरा जुड़ाव है। चाहे मौसम,जीवन चक्र,सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ या मानवीय भावनाएँ कोई भी हों,प्रकृति के साथ संवाद करना सभी आदिवासी नृत्यों का मुख्य विषय है।

इंदल उत्सव में ब्रज की होली के रंगो ने मंत्रमुग्ध किया

ब्रज की होली में विभिन्न लोक कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। उनकी प्रस्तुतियों में ब्रज की पारंपरिक धुनें, गीत, और नृत्य शामिल होते हैं, जो सभी को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। उनकी अद्भुत प्रस्तुति से उत्सव का माहौल और भी जीवंत हो जाता है। ब्रज की होली को इसकी विशिष्टता और रंगीनता के लिए जाना जाता है, और जब इसे इंदल उत्सव के साथ मनाया  गया तो यह सभी के लिए एक अद्भुत और यादगार बन गया। ब्रज की होली का एक और महत्वपूर्ण हिस्सा फूलों की होली है। इस आयोजन में लोग एक-दूसरे पर फूलों की वर्षा करते हैं। यह दृश्य अत्यंत सुंदर और आकर्षक होता है और सभी उम्र के लोगों को आनंदित करता है।

मयूर भंज छाऊ नृत्य की कलाबाज़ी

मयूर भंज छाऊ नृत्य एक पारंपरिक भारतीय नृत्य शैली है जो ओडिशा राज्य के मयूरभंज जिले में प्रचलित है। यह नृत्य शैली अपनी अद्वितीयता, शारीरिक गतिशीलता, और सांस्कृतिक महत्व के लिए जानी जाती है। मयूर भंज छाऊ नृत्य शास्त्रीय और लोक नृत्य के तत्वों का संयोजन है, और इसे स्थानीय त्योहारों, धार्मिक अनुष्ठानों, और विशेष अवसरों पर प्रस्तुत किया जाता है। मयूर भंज छाऊ नृत्य में अधिकांश कथानक भारतीय पौराणिक कथाओं, महाकाव्यों (जैसे रामायण और महाभारत), और लोक कथाओं पर आधारित होते हैं। नर्तक अपने नृत्य के माध्यम से विभिन्न पात्रों और कहानियों को जीवंत करते हैं।

 

 

सुरभि चतुर्वेदी के भक्ति गीतों पर खूब झूमे आदिवासी

भक्ति गायन भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक महत्वपूर्ण विधा है, जिसमें भक्ति रस से ओतप्रोत गीत गाए जाते हैं। यह विधा भगवान के प्रति श्रद्धा और प्रेम को अभिव्यक्त करने का माध्यम है। जयपुर की सुरभि चतुर्वेदी भक्ति गायन की एक प्रसिद्ध गायिका हैं, जो अपनी मधुर आवाज और गहराई से भरे प्रस्तुतियों के लिए जानी जाती हैं।  भक्ति गायन का मुख्य उद्देश्य भगवान की महिमा का गुणगान करना और भक्तों के मन में आध्यात्मिक भावनाओं को जागृत करना है। सुरभि चतुर्वेदी के गीतों में यह आध्यात्मिकता और भक्ति का तत्व प्रमुख रूप से दिखता है। भक्ति गायन में शास्त्रीय संगीत की तकनीक और रागों का उपयोग होता है। सुरभि चतुर्वेदी अपने गायन में विभिन्न रागों और तालों का खूबसूरत समन्वय करती हैं, जिससे उनके गीत और भी मनमोहक बन जाते हैं।

 

इंदल धाम के रेवाराम को आदिवासी कहते है रेवानंद महाराज

आदिवासी समुदायों में जागृति लाने और शिक्षा प्रदान करने का कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह उनके समग्र विकास और सशक्तिकरण के लिए आवश्यक है। शिक्षा न केवल उनके जीवन स्तर को सुधारती है, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर बनाने और समाज में उनकी पहचान को मजबूत करने में भी सहायक होती है। करीब चार दशकों पहले रेवाराम ने आदिवासी समाज में जागरूकता के लिए इंदल धाम में रहना शुरू किया। कभी जंगल में स्थित एक छोटा सा मन्दिर,उनके प्रयासों से एक भव्य मन्दिर बन चूका है। यहां स्कूल,छात्रावास और अस्पताल संचालित हो रहा है। गांव के आदिवासी किशन नारू कनोजे,वकील नारू कनोजे और चतर सिंह कनोजे ने एक एकड़ जमीन दान कर रेवाराम के प्रयासों को सफल कर दिया। अब रेवाराम आदिवासियों के बीच  इंदल धाम के पीठाधीश्वर रेवानंद जी महाराज के नाम से पहचाने जाते हैइस वर्ष उन्होंने आश्रम में एक टोल कांटा भी स्थापित कर दिया है जिससे आदिवासियों को सही मापतौल कर वस्तुएं मिल सके और उनका व्यापरियों द्वारा शोषण बंद हो सके

मटली का इंदल उत्सव अब बहुत लोकप्रिय हो गया है और इसे देखने दूर दूर से हजारों आदिवासी आते है। भारतीय जनजातीय समाज का एक महत्वपूर्ण  उत्सव है, जो न केवल जनजातीय संस्कृति और परंपराओं को सजीव रखता है, बल्कि इसे मुख्यधारा की भारतीय संस्कृति से भी जोड़ने का कार्य करता है। यह उत्सव जनजातियों और अन्य समुदायों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान और सामूहिकता की भावना को बढ़ावा देने में सफल रहा है।

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