राष्ट्रीय सहारा,हस्तक्षेप
बदलती दुनिया में कूटनीति के रास्ते आर्थिक फायदों से तय होते है। 1990 के दशक में वैश्वीकरण के बाद भारत की अर्थव्यवस्था ने नए सोपान तय किये है, इसका असर विश्व स्तर पर बखूबी पड़ा है और इस्लामिक देश भी इससे अछूते नहीं है। इस सबके बीच इस्लामिक देशों की बादशाहत करने का ख्वाब पाकिस्तान की सत्ता देखती रही है और उसने कश्मीर को हथियार बनाकर भारत पर बढ़त बनाने की कोशिशें बदस्तूर जारी रखी है। ओआईसी के महासचिव हिसेन ब्राहिम ताहा ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर चिंता जताते हुए जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ अपनी एकजुटता की भी पुष्टि की है। सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र के 5 अगस्त 2019 के फैसले को बरकरार रखा था। यह भी दिलचस्प है की हिसेन ब्राहिम ताहा का जम्मू कश्मीर को लेकर रुख समूचे इस्लामिक जगत का वास्तविक प्रतिनिधित्व नहीं करता है।
इसके पहले 12 अगस्त 2019 को मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष दर्जे को ख़त्म करने की संसद में घोषणा की तो पाकिस्तान ने इसे वैश्विक समस्या बताने के लिए भारत के साथ लगभग सारे द्विपक्षीय संबंध तोड़ दिए थे। इतना ही नहीं पाक ने भारत के राजदूत को वापस भेज दिया गया और सारे व्यापारिक रिश्ते ख़त्म करने की घोषणा कर दी थी। पाकिस्तान इस मामले को लेकर मुस्लिम देशों के संगठन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ़ इस्लामिक को-ऑपरेशन यानी ओआईसी में भी ले गया,जिसके दुनिया भर के 57 मुस्लिम बहुल देश सदस्य हैं। ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ़ इस्लामिक कॉपरेशन की जून 2020 की बैठक में भारत सरकार की उस नीति को गलत ठहराया गया था जिसके अंतर्गत 2019 में अनुच्छेद 370 की अस्थाई स्थिति को हटा दिया गया था। ओआईसी के कॉन्टैक्ट ग्रुप के विदेश मंत्रियों की आपातकालीन बैठक में इसे संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव और अंतरराष्ट्रीय क़ानून जिसमें चौथा जिनेवा कन्वेंशन भी शामिल है का उल्लंघन माना गया था।
पाकिस्तान की वैदेशिक नीति के केंद्र में कई दशकों से कश्मीर ही रहा है और उसने मुस्लिम देशों के संगठन ओआईसी को भारत विरोधी मंच के रूप में लगातार इस्तेमाल करने की कोशिश की है। इस्लामिक सहयोग संगठन 1969 में स्थापित एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है,यह मुस्लिम दुनिया की सामूहिक आवाज़ है और अंतर्राष्ट्रीय शांति और सद्भाव को बढ़ावा देने की भावना में मुस्लिम दुनिया के हितों की रक्षा और संरक्षण के लिए काम करता है। ओआईसी फिलिस्तीन,इराक,अफगानिस्तान,सीरिया और बोस्निया जैसे संघर्ष प्रभावित मुस्लिम क्षेत्रों के साथ साथ साइप्रस,कोसोवो और जम्मू और कश्मीर के लोगों के साथ एकजुटता व्यक्त करता है। ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ़ इस्लामिक कॉपरेशन में पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर के मुद्दे को वैश्विक स्तर पर कुप्रचारित करने लिए 1994 में एक कॉन्टैक्ट ग्रुप बनाया था,जिसमें पाकिस्तान के अलावा अज़रबैजान,नाइजर,सऊदी अरब और तुर्की शामिल है।
हालांकि पाकिस्तान के भारत विरोध की मुहिम ओआईसी में आंशिक सफलता ही मिल सकी है। इसका कारण बेहद साफ है कि मध्य पूर्व के मुस्लिम देशों के लिए पाकिस्तान की तुलना में भारत ज़्यादा महत्वपूर्ण कारोबारी साझेदार है तथा पाकिस्तान से भारत की अर्थव्यवस्था का आकार करीब दस गुना बड़ा है। संयुक्त अरब अमीरात का इस्लामिक जगत में बड़ा रुतबा है और उसने इसे भारत का आन्तरिक मामला बताया है,वहीं कुवैत,कतर,बहरीन और ओमान जैसे सशक्त मुस्लिम देशों ने इस पर बात करने से भी परहेज किया है। ईरान,कश्मीर पर भारत के साथ अक्सर खड़ा दिखाई देता है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि पाकिस्तान की सुन्नी कट्टरता शियाओं की मुसीबतें बढ़ाती रही है। पाकिस्तान के खास मित्र तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन पिछले एक दशक से नियमित रूप से संयुक्त राष्ट्र महासभा में कश्मीर को लेकर भारत की आलोचना करते रहे है,वे भारत के समर्थन के लिए सऊदी अरब की आलोचना भी कर चूके है। इस्लामिक दुनिया की सबसे बड़ी ताकत समझे जाने वाले सऊदी अरब और भारत की सामरिक भागीदारी निरंतर बढ़ी है। दोनों देशों के बीच सामरिक परिषद की स्थापना अक्तूबर,2019 में भारत के प्रधानमंत्री की सऊदी अरब की यात्रा के दौरान की गई थी। ब्रिटेन,फ़्रांस और चीन के बाद भारत चौथा देश है जिसके साथ सऊदी अरब ने इस तरह की रणनीतिक साझेदारी की है। सऊदी अरब वर्तमान में भारत को कच्चे तेल का दूसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्त्ता तथा भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है। सऊदी अरब में 6 मिलियन भारतीय प्रवासी समुदाय सऊदी का सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय है और देश के आधुनिकीकरण में उसकी बड़ी भागीदारी है। एक और मजबूत मुस्लिम देश मिस्र,भारत के साथ राजनीतिक,सुरक्षा सहयोग,आर्थिक जुड़ाव,वैज्ञानिक सहयोग तथा लोगों के बीच संबंधों के सिद्धांतों पर एक नए युग के लिये नई साझेदारी बनाने के अपने इरादे को रेखांकित करते हुए एक संयुक्त घोषणापत्र 2016 में ही जारी कर चूका है। भारत का मिस्र का छठा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। 2022 में दोनों देशों के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए,जिसके तहत सैन्य अभ्यास में भाग लेने और प्रशिक्षण में सहयोग करने का निर्णय लिया गया है। इस प्रकार भारत अरब के शक्तिशाली देशों के साथ सहयोग और साझेदारी निरंतर बढ़ा रहा है जिससे पाकिस्तान के कुप्रचार को कमजोर करने में बड़ी मदद मिल रही है।
पाकिस्तान मुस्लिम हितों को लेकर बिल्कुल ईमानदार नहीं है,ओआईसी के देश भली भांति इसे जानते है। पाकिस्तान के पड़ोसी मुल्क चीन के शिन्चियांग प्रान्त में तकरीबन 1 करोड़ उईगर मुसलमान रहते है,जिन पर रोजे रखने,महिलाओं के बुर्खा पहनने,खुले में नमाज पढ़ने की इजाजत नहीं है। यहाँ तक की उन्हें रोज मेंटल डिटेक्टर से चेक किया जाता है और अब तो मुस्लिम बाहुल्य वाले इस प्रान्त को वहां बसने वाले मुस्लिम बाशिंदों के लिए खुली जेल तक कहा जाने लगा है। मुसलमानों के लिए अमानवीयता की हदें पार करने वाले चीन को लेकर पाकिस्तान सदा खामोश रहा है। वहीं भारत एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतंत्र देश है। कश्मीर में रहने वाले मुसलमानों को मौलिक अधिकार,अपने धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता और विकास की सारी सुविधाएं दी गई है,यह ठीक वैसा है ही जैसा भारत के अन्य नागरिकों को प्राप्त है।
मुस्लिम हितों को लेकर पाकिस्तान ही नहीं बल्कि ओआईसी के अन्य देश विरोधाभास से घिरे हुए नजर आते है। इस्लामिक दुनिया की यह कड़वी हकीकत है की वे आपसी विवादों और स्वार्थों के लिए किसी हद तक जा सकते है,जिसमें धर्म को भी दरकिनार कर दिया जाता है। अपने स्वार्थों के कारण ही इराक और सीरिया जैसे मुस्लिम देश तबाह हो चुके है और गृह युद्ध की आग में बुरी तरह झुलस रहे है। पिछलें कई दशकों से मध्य पूर्व में हजारों मुसलमानों के कत्लेआम और शरण की गुहार में मरते लोगों के लिए न तो पाकिस्तान के दरवाजें खुले और न ही इस्लाम के सबसे बड़े पैरोकार सऊदी अरब के। इनसे बेहतर जर्मनी और फ्रांस जैसे यूरोपियन राष्ट्र रहे जिन्होंने मानवीयता के नाम पर मुस्लिमों को प्रवेश दिया है। बहरहाल कश्मीर के नागरिकों की खुशहाली को लेकर भारत के प्रयास ईमानदार है और यहीं कारण है अपनी संप्रुभता को लेकर भारत को न तो पाकिस्तान की परवाह है और न ही वह ओआईसी के समर्थन का मोहताज रहा है।
#डॉ.ब्रह्मदीप अलूने
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