राष्ट्रीय सहारा
नेपाल के प्रधानमंत्री ओली ने सार्वजनिक रूप से कई बार कहा है कि ईश्वर का अस्तित्व नहीं है और अगर कभी कोई ईश्वर रहा है तो वो सिर्फ कार्ल मार्क्स थे। 2018 में प्रधानमंत्री बनते ही ओली ने वह सब कुछ किया जिसकी इस धार्मिक और सनातन परम्परा में विश्वास करने वाले देश में कल्पना भी नहीं की गई थी। ओली को अपनी कम्युनिस्ट पहचान मजबूत करने और चीन के साथ खड़े दिखने का इतना उतावलापन था कि उन्होंने प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते हुए ईश्वर का नाम लेने से इंकार कर दिया,यह बुद्द और विष्णु की भूमि के लिए बेहद अप्रत्याशित घटना थी। इसके बाद भारत के प्रधानमन्त्री जब नेपाल गये तो पीएम मोदी ने जनकपुर में पूजा की लेकिन ओली ने नहीं की। ओली यहीं नही रुके उन्होंने चीन के इशारे पर नेपाल का अपना नया नक्शा जारी कर भारतीय क्षेत्रों कालापानी,लिम्पियाधुरा और लिपुलेख को शामिल कर अपने देश के इलाके बताएं,राम जन्मभूमि को नेपाल में ही बताया और चीन के लिए अपने देश के दरवाजे खोल दिए। ओली ने सत्ता में रहते भारत और नेपाल के सम्बन्धों को प्रभावित करने के लिए धार्मिक,ऐतिहासिक और सामरिक रूप से तथ्यों को उलट पुलट कर भारत से सीमा विवाद को बढ़ाया और इसे राष्ट्रीय अस्मिता से जोड़ दिया। चीन की यात्रा की और उन्होंने चीन के साथ ट्रेड एंड ट्रांसपोर्टेशन अग्रीमेंट यानी व्यापार और परिवहन समझौता कर लिया। ओली का यह कदम भारत को चुनौती देने वाला रहा और यहीं से भारत और नेपाल के कूटनीतिक रिश्ते भी प्रभावित हुए बिना न रह सके।
ओली के भगवान कार्ल मार्क्स चीन में भी पूजे जाते है। चीन नेपाल में अनेक परियोजनाएं आक्रामक ढंग से शुरू की है। उसने तिब्बत से सीधी सड़क भारत के तराई क्षेत्रों तक बनाया,रेल मार्ग नेपाल की कुदारी सीमा तक बनाया,नेपाली कम्युनिस्ट और माओवादी गुटों को आर्थिक और सैनिक मदद से चीन का समर्थन और आम नेपालियों में उनके द्वारा भारत विरोधी भावनाएं भड़काने की साजिशें रची गयी। ओली की चीन परस्त और भारत विरोधी नीतियों के कारण चीनी सामानों की नेपाल के रास्ते भारत में डम्पिंग,माओवादी हिंसा के जरिये नेपाल से आंध्र तमिलनाडू तक रेड कॉरिडोर में भारत को उलझाएं रखना,पाक की खुफिया एजेंसी आई.एस.आई का नेपाल में लगातार गतिविधियां,तस्करी और आतंकवादियों का भारत में प्रवेश सुलभ हुआ है।
कम्युनिस्ट पार्टी के नेता केपी शर्मा ओली के भारत को लेकर निरंतर विरोधी और आक्रामक तेवर के पीछे चीन की शह साफ दिखाई पड़ती है। ऐसा प्रतीत होता है कि चीन ओली के सहारे नेपाल में अपनी पकड़ मजबूत करके भारत की जमीनी सीमा को घेरने की नीति पर काम कर रहा है जिससे उसे रणनीतिक बढ़त मिल सके। कई शताब्दियों तक राजशाही को स्वीकार करने वाले इस देश में 2007 के अंतरिम संविधान बनने के बाद राजतंत्र को खत्म तो कर दिया गया था लेकिन वामपंथ के उभार से लोकतंत्र स्थापित करने के सपने चकनाचूर हो गये।
कार्ल मार्क्स की दो किताबों कम्युनिस्ट घोषणा पत्र और दास कैपिटल ने दुनिया के कई देशों और करोड़ों लोगों पर राजनीतिक और आर्थिक रूप से निर्णयात्मक असर डाला है। कम्युनिस्ट घोषणापत्र में मार्क्स ने पूंजीवादी समाज में वर्ग संघर्ष की बात की है और बताया है कि कैसे अंततः संघर्ष में सर्वहारा वर्ग पूरी दुनिया में बुर्जुआ वर्ग को हटाकर सत्ता पर कब्ज़ा कर लेगा। कार्ल मार्क्स ने धर्म को जनता के लिए अफ़ीम के रूप में वर्णित किया है। कम्युनिज्म धर्म को नहीं मानता और बुद्ध की विचारों में सनातन धर्म की समानता निहित है।
ओली नेपाल को चीन जैसा बना देना चाहते है और भारत के लिए मुश्किल यह है कि नेपाल के सांस्कृतिक इतिहास और परम्पराओं में सनातन धर्म और बुद्ध की मान्यताओं के चलते उसकी भारत से निकटता खत्म नहीं होने दे। ओली के भगवान मार्क्स,भारत के आंतरिक सुरक्षा के सबसे बड़े खतरें नक्सलियों के भी आदर्श पुरुष है। भारत के मध्य,दक्षिणी और पूर्वी भागों को मिलाकर बना रेड कॉरिडोर ओडिशा,बिहार,छत्तीसगढ़ और झारखंड में प्रमुख रूप से केंद्रित 11 राज्यों को कवर करता है। नेपाल से शुरू हुए इस गलियारें में नेपाल की भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण है। नेपाल ने इस क्षेत्र के लड़ाकों के साथ हथियारों,रणनीतियों और प्रशिक्षण योजनाओं और कई अन्य सामरिक हथियारों का भी खूब आदान प्रदान किया है। ओली माओवादी संगठन से जुड़े हुए है और वे हिंसा के चलते नेपाल की जेल में भी रह चूके है। चीन से बने हुए हथियारों के जरिए नक्सली भारतीय सुरक्षाबलों को हमलें करते है। नक्सली हिंसा का इतिहास लम्बा है और भारतीय सरकार इसे खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध है। नेपाल और भारत करीब अठारह सौ पचास किलोमीटर से अधिक लंबी सीमा साझा करते है,जिससे भारत के पांच राज्य सिक्किम,पश्चिम बंगाल, बिहार,उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड जुड़े हैं। दोनों देशों की सीमाओं से यातायात पर कभी कोई विशेष प्रतिबंध नहीं रहा। सामाजिक और आर्थिक विनिमय बिना किसी गतिरोध के चलता रहता है। भारत नेपाल की सीमा खुली हुई है और आवागमन के लिये किसी पासपोर्ट या वीजा की जरूरत नहीं पड़ती है।
भारतीय सेना की इन्फ़ेंट्री में सिख,गढ़वाल,कुमाऊं,जाट,महार,गोरखा,राजपूत समेत 31 रेजिमेंट हैं। गोरखा रेजिमेंट से चीन भी डरता है क्योंकि भारत चीन तनाव में गोरखा चीन को भौगोलिक रूप से ज्यादा चुनौती देते है। पहाड़ी और पर्वती इलाकों में गोरखा रेजिमेंट भारतीय सेना की ताकत में इजाफा करती है। पिछले कुछ सालों में चीन ने यह जानने में दिलचस्पी दिखाई है कि आखिर नेपाली गोरखा भारतीय सेना में जाना क्यों पसंद करते है। भारतीय सेना में नेपाली गोरखाओं का स्थान इतना उच्च है कि पाकिस्तान और चीन से लड़ाई में गोरखा रेजिमेंट के बलिदान को सदैव याद किया जाता है। वर्तमान में हर वर्ष लगभग बारह सौ से तेरह सौ नेपाली गोरखे भारतीय सेना में शामिल होते है। गोरखा राइफल्स में लगभग 80 हजार नेपाली गोरखा सैनिक हैं,जो कुल संख्या का लगभग 70 प्रतिशत है। इसके अतिरिक्त रिटायर्ड गोरखा जवानों और असम राइफल्स में गोरखों की संख्या करीब एक लाख है। भारतीय सेना से रिटायर्ड नेपाली गोरखाओं की तादाद तकरीबन एक लाख पैतीस हजार है। इनकी सैलरी और पेंशन मिला दें तो यह रक़म 62 करोड़ डॉलर है। यह नेपाल की जीडीपी का तीन फ़ीसदी है। दूसरी तरफ़ नेपाल का रक्षा बजट महज़ 43 करोड़ डॉलर है। यानी नेपाल के रक्षा बजट से ज़्यादा भारत से नेपाली गोरखाओं को हर साल सैलरी और पेंशन मिल रही है। अग्निवीर योजना का नेपाल में विरोध हो रहा है। भारत भी इसे लेकर आशंकित हो सकता है की ओली कहीं चीन में गोरखाओं की भर्ती को लेकर कोई समझौता नहीं कर लें। बहरहाल ओली के भगवान कार्ल मार्क्स,नक्सलियों से उनके संबंध और चीन परस्त नीतियां भारत को आशंकित करती है। उनका नेपाल की सत्ता में राजनीतिक रूप से मजबूत होना भारत की परेशानियां बढ़ा सकता है।
ओली की सत्ता
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