कट्टरपंथियों की वापसी
article भारत मे आतंकवाद

कट्टरपंथियों की वापसी

राष्ट्रीय सहारा
                                                                                        

बंगलादेश में राजनीति बंद,विरोध,गरीबी और आतंकवाद से बाहर निकलकर विकास के मुद्दे पर आगे बढ़ रही थी,लेकिन शेख़ हसीना के सत्ता से हटते ही अब वह सफर थम जाने का अंदेशा है । बांग्लादेश की राजनीति में दूसरा बड़ा चेहरा  ख़ालिदा ज़िया है। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की यह नेता अब ताकतवर होगी और इसका सीधा प्रभाव भारत पर पड़ सकता है। ख़ालिदा ज़िया को जहां कट्टरपंथी ताकतों का समर्थक माना जाता है वहीं शेख हसीना उदार और भारत समर्थक मानी जाती है।  बांग्लादेश की राजनीति के केंद्र में भारत समर्थन और भारत विरोध की शक्तियाँ समानांतर कार्य करती है। इस साल बांग्लादेश में आम चुनावों से पहले प्रधानमंत्री हसीना ने सत्तारूढ़ अवामी लीग पार्टी का घोषणापत्र जारी करते हुए कहा था कि अगर उनकी पार्टी चुनाव जीतती है तो भारत के साथ सहयोग जारी रहेगा। घोषणापत्र में  यह भी स्पष्ट भी किया गया कि,भारत के साथ भूमि सीमाओं के सीमांकन और परिक्षेत्रों के आदान-प्रदान की लंबे समय से चली आ रही समस्या का समाधान हो गया है। इस उपलब्धि ने भारत के साथ निरंतर बहुपक्षीय सहयोग और मैत्रीपूर्ण संबंधों को प्रोत्साहित किया है। शेख हसीना के कार्यकाल में बांग्लादेश ने अपने क्षेत्र में उग्रवादियों,अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादियों और अलगाववादी समूहों की उपस्थिति को रोकने के लिए दृढ़ता दिखाई और इससे भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में शांति की स्थापना में बड़ी मदद मिली।

वहीं खालिदा जिया की राजनीति भारत के हितों पर चोट करने वाली और पाकिस्तान  के ज्यादा करीब नजर आती है। करीब डेढ़ दशक पहले बीएनपी सरकार के दौरान इस्लामिक कट्टरपंथियों को बड़ी मदद मिली। बीएनपी की जमात और इस्लामिक कट्टरपंथियों से पुरानी क़रीबी है।  खालिदा जिया की सहयोगी पार्टी जमात-ए-इस्लामी को देश की सबसे बड़ी इस्लामी राजनीतिक पार्टी माना जाता है। जेआईबी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार के गठबंधन का सदस्य  रह चूका है। 1971 में होने वाली स्वतंत्रता युद्ध में इस दल ने पाकिस्तान  का समर्थन किया था। बाद में यह बंगलादेश के इस्लामीकरण  के प्रयास में जुटकर एक सक्रिय दल के रूप में उभरी। जमात-ए-इस्लामी वही संगठन है जिसने तालिबान  द्वारा अफगानिस्तान पर कब्जा किए जाने के बाद बंगलादेश बनेगा अफगानिस्तान जैसे नारे गढ़े हैं।  यह इस्लाम के कट्टर और रुढ़िवादी रूप को बंगलादेश में लाना चाहता है। जमात-ए-इस्लामी का सहयोगी संगठन है हुजी। हरकत-उल-जिहाद-अल इस्लामी बांग्लादेश  नामक यह आतंकी संगठन  कथित तौर पर ओसामा बिन लादेन को अपना आदर्श मानता रहा है। इस संगठन की मांग है कि बांग्लादेश को इस्लामिक स्टेट में बदल दिया जाए। हुजी-बी का लक्ष्य बांग्लादेश में युद्ध छेड़कर और प्रगतिशील बुद्धिजीवियों की हत्या करके इस्लामी हुकूमत स्थापित करना है।

दो दशक पहले भारत के गृह मंत्रालय ने एक दस्तावेज तैयार किया था,जिसका शीर्षक था पाकिस्तान के वैकल्पिक परोक्ष युद्द का आधार। इसमें पाकिस्तान द्वारा अपनों विध्वंसात्मक गतिविधियों को तेज करने के लिए चलाए गए नए ऑपरेशन के बारे में उल्लेख था।  इस दस्तावेज में खासतौर पर बताया गया था कि पाकिस्तान अपने भारत विरोधी अभियानों के लिए बंगलादेश को एक नए आधार के रूप में विकसित कर रहा है। दस्तावेज में इस बात का भी खुलासा था कि पाकिस्तान ने लगभग 200 आतंकवादी प्रशिक्षण कैम्पों को पहले ही अपने यहां से हटाकर बंगलादेश में व्यवस्थित करवा चुका है।

भारत और बांग्लादेश के बीच गहरे सामाजिक,सांस्कृतिक,आर्थिक और भूराजनीतिक संबंधों के कारण इसे जटिल चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। हूजी  के कार्यकर्ता कथित तौर पर भारत के पूर्वी गलियारे में भी अक्सर घुसपैठ करते हैं ताकि क्षेत्र के आतंकवादी और विध्वंसक संगठनों के साथ संपर्क बनाए रखा जा सके। हूजी को भारत में कई स्थानों  पर आतंकवादी हमलों के लिए जिम्मेदार पाया गया है। यह अलकायदा तथा तालिबान मिलिशिया से मजबूत संबंधों के बूते दक्षिण एशिया के कई देशों में कट्टरपंथी ताकतों को बढ़ावा दे रहा है। पूर्व सोवियत संघ के खिलाफ युद्ध में मुजाहिदीन के साथ लड़ने के लिए बड़ी संख्या में मुजाहिदीन अफगानिस्तान गए थे। 1990 के दशक में बेगम खालिदा जिया के राजनीतिक दल  बीएनपी शासन के दौरान इनमें से बड़ी संख्या में मुजाहिदीन बांग्लादेश लौट आए और अब देश में कट्टरपंथी आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं। हूजी भारत के पूर्वोत्तर में सक्रिय आतंकवादी समूहों के साथ भी संबंध रखता है, जिसमें यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) भी शामिल है। हूजी कथित तौर पर बांग्लादेश में चटगाँव पहाड़ी इलाकों में स्थित उल्फा के कुछ शिविरों का प्रबंधन करता है,जो भारतीय राज्य त्रिपुरा की सीमा पर स्थित हैं।

बांग्लादेश में, हुजी को बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और जमात-ए-इस्लामी जैसी मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियों का संरक्षण प्राप्त है। हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी बांग्लादेश अर्थात्  हूजी एक देवबंदी समूह है,जो पाकिस्तान स्थित हूजी से संबद्ध है और इसका गठन 17 बांग्लादेशी मुजाहिदीन द्वारा किया गया था। इनका सम्बन्ध पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई है। करीब चार हजार किलोमीटर लंबी भारत बांग्लादेश सीमा भौगोलिक और सांस्कृतिक जटिलताओं के कारण भारत के लिए सबसे बड़ा सुरक्षा संकट रही है। इसका फायदा पाकिस्तान की खुफियां एजेंसी आईएसआई खूब उठाती है और कई इलाकों में भारत के विरुद्ध विद्रोही संगठनों को आश्रय और प्रशिक्षित करके भारत पर हमले करने के लिए प्रेरित करती है। उनका ध्यान खासतौर पर ऐसे समूहों के लिए होता है जो भारत के सीमा प्रान्तों में विभाजन करना चाहते है। पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई ने बांग्लादेश के आतंकी संगठन हूजी से मिलकर असम,मिजोरम,मेघालय और मणिपुर को इस्लामिक कट्टरतावाद से जोड़ने के लगातार प्रयास करती रही है।  भारत की सबसे लंबी सीमा रेखा बंगलादेश के साथ लगती है और इसका फायदा उठाकर पूर्वोत्तर के रास्ते भारत को आतंकवाद आयातीत किया जा रहा है। इसमें घुसपैठ,तस्करी,मदरसों का जाल और नकली मुद्रा का अवैध कारोबार शामिल है।

 

जब से  अवामी लीग की सरकार आई है,वह  चरमपंथी संगठनों को दबाने की कोशिश कर रही  थी और इसमें कुछ क़ामयाबी भी मिली थी। आम तौर पर बंगलादेश में हिंदुओं को आवामी लीग गठबंधन का समर्थक बताया जाता है और इसी कारण अल्पसंख्यक हिन्दू बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और जमात-ए-इस्लामी के निशाने पर होते है। बांग्लादेश में  इस साल हुए आम चुनाव में अवामी लीग की जीत के बाद वहां जिस तरह से विपक्ष द्वारा इंडिया आउट अभियान शुरू किया गया है और उसे व्यापक समर्थन मिल रहा था। जाहिर है शेख हसीना के सत्ता से हटने के बाद बांग्लादेश में भारत विरोधी ताकतें मजबूत होगी। यह स्थितियां भारत के लिए आंतरिक  और सीमाई सुरक्षा का संकट बढ़ा  सकती है और इससे सतर्क रहने की जरूरत है।
                                                                            

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