राष्ट्रीय सहारा,हस्तक्षेप
सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता को लेकर भारत का मानना है कि उसे दुनिया के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश होने के नाते वैश्विक मंच पर अपनी आवाज उठाने का अवसर मिलना चाहिए,जिससे कि वह अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा और शांति में और अधिक प्रभावी योगदान दे सके। हालांकि सुरक्षा परिषद की वैश्विक शांति में भूमिका पर सदस्य राष्ट्रों के व्यक्तिगत हित हावी रहे है और यह भारत की वैदेशिक नीति से कहीं अलग नजर आती है। भारत की विदेश नीति एक संतुलित दृष्टिकोण पर आधारित है,जो उसे वैश्विक स्तर पर प्रभावी बनाने में मदद करती है। यह नीति न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखती है,बल्कि आर्थिक विकास और मानवाधिकारों की सुरक्षा पर भी ध्यान केंद्रित करती है। वहीं सुरक्षा परिषद के निर्णयों का कई बार गहरा प्रभाव पड़ता हैऔर जब ये निर्णय विवादास्पद या असंगत होते हैंतो उनका परिणाम देश और उनके नागरिकों के लिए विनाशकारी हो सकता है।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया में विभाजन के दौरान और उसके बाद सुरक्षा परिषद के सदस्यों की आपसी रंजिश और हित लाखों लोगों की असमय मौत का कारण बन गया थे। कोरिया युद्ध को रोकने में भारत की भूमिका काफी महत्वपूर्ण थी। भारत ने युद्ध के दौरान शांति के लिए प्रयास किए और मानवीय सहायता प्रदान की। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस युद्ध को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र में सक्रिय रूप से काम किया। भारत ने संयुक्त राष्ट्र के शांति सैनिकों के रूप में पांच हजार सैनिकों को कोरिया भेजा। ये सैनिक शांति स्थापना और मानवीय सहायता के लिए कार्यरत थे। भारत ने युद्ध के प्रभावित लोगों के लिए मानवीय सहायता,चिकित्सा सेवा और खाद्य सामग्री प्रदान की। भारत ने हमेशा एक निष्पक्ष दृष्टिकोण अपनाया और दोनों पक्षों के बीच संवाद की आवश्यकता पर बल दिया। कोरिया युद्ध के दौरान भारत ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन को भी बढ़ावा दिया,जो कि शीत युद्ध की ध्रुवीकृत स्थिति के खिलाफ था। इस प्रकार भारत ने कोरिया युद्ध में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जो शांति और मानवीय सहायता के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाती है। भारत सुरक्षा परिषद का सदस्य नहीं था लेकिन कोरिया युद्द को रोकने में भारत की प्रभावशाली भूमिका रही और यह भारत की शांति की वैदेशिक नीति के अनुरूप थी।
इतिहास में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के ऐसे कई फैसले मिल जायेंगे जो विवादास्पद रहे हैं और उनके परिणामस्वरूप कई देशों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। 1979 में सोवियत संघ ने अफगानिस्तान में अपने सैन्य हस्तक्षेप के दौरान सुरक्षा परिषद में एक प्रस्ताव को वीटो किया थाजिसमें अफगानिस्तान से सैनिकों की वापसी की मांग की गई थी। इसके बाद यह खूबसूरत देश राजनीतिक संकट से कभी उबर नहीं पाया और आज भी वहां के लोग नारकीय जीवन जीने को मजबूर है। 1990 के दशक में सुरक्षा परिषद ने इराक पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए और बाद में अमेरिका के नेतृत्व में आक्रमण की अनुमति दी। ये प्रतिबंध इराकी नागरिकों पर बहुत भारी पड़े,जिससे खाद्य और स्वास्थ्य संकट उत्पन्न हुआ। इस आक्रमण के बाद इराक की राजनीतिक स्थिरता प्रभावित हुई और अब भी यह देश गृह युद्द से ग्रस्त है। इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन का अमेरिका का समर्थन न करने का खामियाजा उन्हें उठाना पड़ा । भारत की विदेश नीति दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने पर आधारित है जबकि सुरक्षा परिषद के सदस्य देश विकासशील और पिछड़े देशों को अस्थिर करने की अवैधानिक कोशिशें करते रहे है।
2011 में सुरक्षा परिषद ने लीबिया में गद्दाफी के खिलाफ विद्रोहियों का समर्थन करने के लिए सैन्य कार्रवाई की अनुमति दी। इसके बाद देश में स्थिरता नहीं आई और लीबिया में गृहयुद्ध शुरू हुआ और वहां की स्थिति अत्यंत बिगड़ गई। गद्दाफी साम्यवादी थे और अमेरिकी नीतियों के मुखर आलोचक थे। पिछले डेढ़ दशकों से सीरिया गृह युद्द से जूझ रहा है । सुरक्षा परिषद ने कई प्रस्तावों को रोकने के लिए वीटो का दुरुपयोग किया। इसने संकट के समाधान में बाधा डाली और लाखों लोगों को मानवाधिकारों के उल्लंघन और मानवीय संकट का सामना करना पड़ रहा है। भूखमरी और हिंसा से लोग मारे जा रहे है तथा अमेरिकी और रूस की प्रतिद्वन्दिता के कारण इस देश में शांति स्थापित नहीं हो सकी है। पिछले वर्ष जब रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया तो सुरक्षा परिषद ने इसके खिलाफ कई प्रस्ताव पारित किए। रूस ने अपने वीटो अधिकार का प्रयोग किया जिससे अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा उठाए गए कदमों में बाधा आई। यूक्रेन के लोग बेहाल है और सुरक्षा परिषद कुछ भी करने में असमर्थ है।
भारत ने स्वतंत्रता के बाद गुटनिरपेक्षता को अपनाया,जो उसे औपनिवेशिक शक्तियों से अलग खड़ा करती है। यह नीति भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक स्वतंत्र आवाज देने में सहायक रही।भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति के माध्यम से शांति और स्थिरता को बढ़ावा दिया। यह नीति शीत युद्ध के दौरान भी दोनों ध्रुवों के बीच संतुलन बनाए रखने में सहायक रही।गुटनिरपेक्षता ने भारत को विभिन्न देशों के साथ द्विपक्षीय संबंध बनाने और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने में मदद की। भारत ने सोवियत संघ,अमेरिकाऔर अन्य देशों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखे।गुटनिरपेक्षता की नीति ने भारत को विकासशील देशों के लिए एक नेता की भूमिका में स्थापित किया। भारत ने अफ्रीका,एशियाऔर लैटिन अमेरिका के देशों के साथ सहयोग बढ़ाया।भारत ने गुटनिरपेक्षता के माध्यम से वैश्विक चुनौतियों, जैसे कि औपनिवेशिकता,नस्लवादऔर आर्थिक असमानता के खिलाफ अपनी आवाज उठाई।इस प्रकार,गुटनिरपेक्षता की नीति ने भारत को न केवल एक स्वतंत्र और मजबूत राष्ट्र के रूप में स्थापित कियाबल्कि उसे वैश्विक स्तर पर एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बना दिया।भारत ने संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों में सक्रिय भूमिका निभाई हैजहां उसने विकासशील देशों के मुद्दों को उठाया और वैश्विक शांति के लिए प्रयास किए।भारत ने कई द्विपक्षीय और बहुपक्षीय व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर किए, जिससे आर्थिक विकास और व्यापार में वृद्धि हुई। ब्रिक्स,आसियान और दक्षिण एशियाई सहयोग संगठन जैसे मंच भारत को ताकतवर प्रदर्शित करते है।भारत ने कोविड-19 महामारी के दौरान वैक्सीन वितरण में मदद कीजिससे उसकी अंतरराष्ट्रीय छवि में सुधार हुआ।भारत ने अपनी सांस्कृतिक धरोहर और सॉफ्ट पावर का उपयोग करते हुएयोग,आयुर्वेदऔर बॉलीवुड के जरिए वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाई है।इन सफलताओं के माध्यम सेभारत ने एक मजबूत और स्थायी वैदेशिक नीति का निर्माण किया हैजो उसे वैश्विक मामलों में एक महत्वपूर्ण शक्ति बनाती है।
भारत की विदेश नीति विकासशील देशों के साथ सहयोग और आपसी विकास को भी बढ़ावा देती है।अफ्रीका में कई देश गृह युद्ध और आंतरिक संघर्षों से त्रस्त रहे हैं।वहीं दक्षिण के देश सामाजिक,आर्थिक,राजनीतिक और पर्यावरणीय समस्याओं से जूझ रहे है।भारत ने दक्षिण-दक्षिण सहयोग को बढ़ावा दिया है,जो विकासशील देशों के बीच आर्थिक और तकनीकी सहयोग को बढ़ाने के लिए काम करता है।जलवायु परिवर्तन,खाद्य सुरक्षाऔर स्वास्थ्य संकट जैसे वैश्विक मुद्दों पर भारत की सक्रियता ने इसे तीसरी दुनिया की आवाज बनाने में मदद की है। दुनिया में भारत को एक महत्वपूर्ण राष्ट्र के रूप में देखा जाता है,जो विकासशील देशों के हितों को वैश्विक स्तर पर प्रस्तुत करता है।
सुरक्षा परिषद का प्रमुख कार्य वैश्विक शांति और सुरक्षा को सुनिश्चित करना है। यह देखने में आ रहा है कि इसके सदस्य देश दुनिया में संघर्ष और युद्ध की स्थितियों को निर्मित कर रहे है। भारत की विदेश नीति अंतरराष्ट्रीय स्थिरता और शांति को सुनिश्चित करने का लगातार प्रयास करती है। भारत सुरक्षा परिषद का सदस्य बनकर महाशक्तियों के बीच सैन्य गठ्बन्धन का हिस्सा बनने को मजबूर हो सकता है और यह स्थिति भारत का आर्थिक,सांस्कृतिक और मानवीय संकट बढ़ा सकती है। सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता से कहीं बेहतर गुटनिरपेक्षता के मंच पर भारत का तीसरी दुनिया का नेतृत्व के रूप में अपनी स्थिति को मजबूत करना बेहतर हो सकता है। गुटनिरपेक्ष नीति के कारण भारत को सभी महाशक्तियों का सहयोग मिलता रहा है और इसीलिए भारत आर्थिक और सामरिक रूप से मजबूत होने में सफल रहा है। भारत को यह समझना होगा की सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता से दूर रहने की आज़ादी के प्रारम्भिक वर्षों की नीति ही बेहतर थी जिससे देश वैश्विक विवादों से दूर रहकर खुद की प्रगति पर ध्यान केंद्रित कर सका और उसकी जरूरत अभी खत्म नहीं हुई है।
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