कूटनीति का मस्तिष्क खुफियां तंत्र ही जब बेदम हो जाएं…
article भारत मे आतंकवाद

कूटनीति का मस्तिष्क खुफियां तंत्र ही जब बेदम हो जाएं…

राष्ट्रीय सहारा

सैकड़ों वर्ष पहले कौटिल्य ने कहा था की किसी राज्य का कल्याण उसकी सक्रिय विदेश नीति पर निर्भर करता है। भारत की वैदेशिक संबंधों को लेकर कौटिल्य की भू-रणनीतिक अंतर्दृष्टि से यह प्रतिबिम्बित होता है की किसी देश के पास विभिन्न राज्यों से साथ राजनयिक संबंधों की एक विस्तृत प्रणाली होना चाहिए और राज्य को आंतरिक और बाह्य खतरों से बचाने के लिए जासूसी या ख़ुफ़िया प्रणाली पर जोर देना चाहिए।

बंग बंधू शेख मुजीबुर्रहमान को बांग्लादेश के राष्ट्रपिता होने का सम्मान हासिल है। बांग्लादेश का हर नागरिक पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश बनने में उनके योगदान और संघर्ष से भलीभांति वाकिफ है लेकिन शेख हसीना के तख्ता पलट के बाद लोगों का सबसे ज्यादा गुस्सा अपने राष्ट्रपिता और बांग्लादेश के संस्थापक राष्ट्रपति के खिलाफ ही देखने को मिला। देशभर में स्थापित शेख मुजीबुर्रहमान की कई आदम कद प्रतिमाओं को लोगों ने तोड़ा,उसके ढांचे को लातें और जूते मारे। बांग्लादेश में यह नजारा अभूतपूर्व था,वहीं शेख हसीना को सत्ता से बेदखल करने के बाद आम जनता ने सड़कों पर जमकर जश्न मनाया और इसे नए बांग्लादेश के रूप में निरुपित किया।

शेख हसीना ने बांग्लादेश से भागकर भारत में महफूज ठिकाना ढूंढा,जो स्वाभाविक था लेकिन इससे भारत के पड़ोसी देश की जनता में बड़ी नाराजगी देखी जा रही है। यह भी दिलचस्प है की करीब पांच दशक पहले जब बांग्लादेश का जन्म हुआ था,तब शेख मुजीबुर्रहमान पाकिस्तान की जेल से रिहा होने के बाद पहले भारत आयें और उन्होंने कहा था,मैंने बांग्लादेश जाने के रास्ते में आपके इस महान देश की महान राजधानी में रुकने का फैसला किया है। शेख मुजीबुरर्हमान  ने दिल्ली में दिए ऐतिहासिक भाषण का समापन जय बांग्ला और जय हिन्द से किया था। इसके बाद जब वे अपने देश लौटे तो वहां की जनता ने अपने महान नेता और भारतीय सेना का अभूतपूर्व स्वागत किया था।

1971 में पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश के रूप में नए राष्ट्र का बनना कोई संयोग नहीं था। पूर्वी पाकिस्तान में भारतीय सेना की 1971 की कार्रवाई को द लाईटनिंग कैंपेन का नाम दिया गया था। भारत के लिए यह एक बेहद जटिल सैन्य अभियान था,जिसके लिए बहुत उच्च स्तर की सैनिक,कूटनीतिक,राजनैतिक,सामाजिक और प्रशासनिक तैयारी की जरूरत थी। 16 दिसम्बर 1971  को बांग्लादेश के विश्व नक्शे पर उभरने के बाद,इस पूरे अभियान का कई देशों के सैन्य संस्थानों में अध्ययन किया जाता है। नेशनल डिफेंस कॉलेज ऑफ़ पाकिस्तान के जंगी दस्तावेज में भारत पाकिस्तान के बीच 1971 के इस समूचे युद्ध पर कुछ इस तरह लिखा गया है कि हिंदुस्तानियों ने पूर्वी पाकिस्तान के खिलाफ हमले का खाका तैयार करने और उसे अंजाम देने में बिलकुल ऐसे पक्के ढंग से बनाया गया था जैसे किताबों में होता है। यह जंग सोच समझकर की गई तैयारी,बारीकी से बैठाए गए आपसी तालमेल और दिलेरी से अंजाम देने की बेहतरीन मिसाल बताई जाती है। बांग्लादेश बनने के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति मुजीबुर्रहमान को यह कहते हुए रॉ प्रमुख से मिलवाया कि आप चाहे तो हमारे  काव साहब से आपके देश के बारे में कोई भी जानकारी ले सकते है,वे बांग्लादेश के बारे में जितना जानते है शायद हम भी नहीं जानते। रॉ का प्रभाव पाकिस्तान के सुरक्षा तंत्र में भी रहा। रॉ के एक पूर्व अतिरिक्त सचिव बी रमन ने अपनी किताब द काऊ बॉयज़ ऑफ़ रॉ में लिखा है कि 1971 में रॉ को इस बात की पूरी जानकारी थी कि पाकिस्तान किस दिन भारत के ऊपर हमला करने जा रहा है। रॉ ने भारतीय सेना और अन्य भारतीय सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों के साथ बांग्लादेश के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नीति निर्माताओं और सेना को खुफिया जानकारी प्रदान करने के अलावा,रॉ ने बांग्लादेश के अलग राज्य के लिए लड़ने वाले पूर्वी पाकिस्तानियों के एक समूह मुक्ति वाहिनी को प्रशिक्षित और सशस्त्र किया।

दरअसल राष्ट्रीय हितों की प्रगति के लिए शक्ति के विभिन्न तत्वों को अधिक प्रभावी बनाना कूटनीति से ही संभव हो सकता है और कूटनीति की सफलता के लिए सबसे ज्यादा जरूरी होता है वह गोपनीय सूचनाएं जिससे राष्ट्रीय हितों की रक्षा की जा सके। वैदेशिक संबंधों और खासकर प्रतिद्वंदी राष्ट्रों की नीतियों का पता लगाने,पहचानने और अपने राष्ट्रीय हितों की अभिवृद्धि के लिए उन्हें प्रभावित करने का काम ख़ुफ़िया तंत्र बखूबी करता है। अंतराष्ट्रीय राजनीति में जहां कूटनीति राष्ट्रीय शक्ति का प्रमुख तत्व है,वहीं खुफियां तंत्र को कूटनीति का मस्तिष्क माना जाता है। 1968 में स्थापित भारत की ख़ुफ़िया एजेंसी रॉ के तेज तर्रार कार्यो से देश को सामरिक और राजनीतिक सफलताओं में बड़ी मदद मिली है,वर्तमान में पड़ोसियों की चुनौतियों के बीच रॉ के मजबूत होने की जरूरत महसूस की जा रही है।

दक्षिण एशिया में भारत का सीधा मुकाबला चीन से है और भारत की ख़ुफ़िया एजेंसी चीन के इरादों को भांपने में सफल नहीं हो पा रही है। भारत के एक पड़ोसी देश श्रीलंका की राजनीति में बीते एक दशक में गहरे परिवर्तन हुए है।  चीन ने 2014 में  महिंदा राजपक्षे को चुनाव में जीत दिलाने की कोशिश की थी,लेकिन महिंदा राजपक्षे हार गए थे। राजपक्षे की हार को भारत की जीत के तौर पर देखा गया था। न्यूयॉर्क टाइम्स  की एक रिपोर्ट में यह खुलासा भी हुआ था कि चाइना हार्बर इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड ने राजपक्षे को चुनाव जिताने के लिए  करीब सत्तर  लाख डॉलर की रक़म दी थी। भारत ने 2014 में सिरीसेना की उम्मीदवारी का समर्थन करने की बात कही थी।  लेकिन बाद में चीन ने  राजपक्षे को सर्वोच्च पद तक पहुंचा ही दिया।  चीन के गहरे व्यापारिक हित श्रीलंका में है। मध्यपूर्व से होने वाले तेल आयात के रूट में श्रीलंका एक अहम पड़ाव है,इसीलिए चीन की यहां निवेश करने में रुचि है। भारत के दक्षिण हिन्द महासागर में स्थित श्रीलंका सामरिक और व्यापारिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। श्रीलंका पूर्वी एशिया व्यापार का बड़ा केंद्र है और ग्रीक,रोमन और अरबी व्यापार करने के लिए इसी मार्ग से गुजरते है। श्रीलंका की भू-राजनीतिक स्थिति उसका स्वतंत्र अस्तित्व बनाती है। इस समय चीन श्रीलंका का सबसे बड़ा द्विपक्षीय ऋणदाता है,चीन ने श्रीलंका में राजमार्गों,हवाई अड्डे और बंदरगाह सहित कई बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को वित्तपोषित किया है। अब श्रीलंका और भारत के सम्बन्ध वहां राजनीतिक पार्टियों के आने या जाने से निर्धारित होते है। यहीं कारण है की भारत के इस सांस्कृतिक और भौगोलिक निकटता वाले देश में भारत समर्थन और भारत विरोध की समांतर राजनीतिक शक्तियां काम करती है। नेपाल में ओली का रहना और जाना भारत से सम्बन्धों की दिशा और दशा तय करता है वहीं मालदीव में मुइज्जू चीन के हमराह नजर आते है।

बांग्लादेश भारत की आंतरिक और सामरिक सुरक्षा के लिए बेहद संवेदनशील राष्ट्र माना जाता है। पूर्वोत्तर और बंगाल की खाड़ी की सुरक्षा के लिए भारत और बांग्लादेश के आपसी संबंधों का मजबूत होना बेहद जरूरी है। शेख हसीना के लोकप्रिय लोकतांत्रिक नेता से निरंकुशता का डेढ़ दशक का सफर बांग्लादेश के छात्रों और आम जनता के व्यापक विरोध का कारण बन गया। इसका फायदा पाकिस्तान परस्त राजनीतिक दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और कट्टरवादी राजनीतिक दल जमात-ए-इस्लामी को मिलना ही था। चीन शेख हसीना से भारत की करीबी को अपने व्यापारिक और सामरिक हितों के लिए चुनौतीपूर्ण समझता रहा है।

इस दौर में भारत को भू-अर्थशास्त्र और भू-राजनीति में फर्क समझना होगा। आर्थिक रूप से समृद्द राज्यों में सौदेबाजी की शक्ति और क्षमता ज्यादा होती है तथा वे अन्य राज्यों को अपने अनुकूल कार्य करने को विवश कर प्रतिकूल परिणामों को बदलने की क्षमता रखते है। भारत के लिए पड़ोसी देशों की जनता से मजबूत संबंधों की कूटनीति ज्यादा मददगार हो सकती है,इसका रास्ता ख़ुफ़िया तंत्र की सजगता,सक्रियता,निरन्तरता और दूरदर्शिता से ही सुलभ हो सकेगा।

Leave feedback about this

  • Quality
  • Price
  • Service

PROS

+
Add Field

CONS

+
Add Field
Choose Image
Choose Video
X