प्रजातंत्र
धर्मान्धता का राजनीतिक इस्तेमाल बहुत ही गंभीर और संवेदनशील मुद्दा है,यह न केवल शांति,सुरक्षा और मानवता के लिए ख़तरा है,बल्कि लोकतंत्र और सामाजिक एकता को भी गहरे स्तर पर प्रभावित करता है। कश्मीर में पर्यटकों को उनका धर्म पूछकर जिस प्रकार गोली मारी गई,वह उसी साम्प्रदायिक सोच को दर्शाती है जिसका राजनीतिक इस्तेमाल कर जिन्ना भारत का बंटवारा करवाने में कामयाब हो गए थे। पाकिस्तान की भारत के खिलाफ यहीं नीति बदस्तूर जारी है और पाकिस्तान के सेना अध्यक्ष ने एक बार फिर उसी धर्मान्धता को उभार कर कश्मीर के पहलगाम तक पहुंचा दिया। पाकिस्तान बन जाने के करीब पैंतीस साल बाद अर्थात् 1980 के दशक में पाकिस्तान के सैनिक तानाशाह जनरल जिया-उल-हक़ से एक पत्रकार ने पूछा की पाकिस्तान भारत के साथ जानबूझ कर दुश्मनी निभाने की नीति क्यों अपनाएं हुए है। इस पर जिया-उल-हक ने कहा,अगर तुर्की और मिस्र अपनी मुस्लिम पहचान को पूरे जी जान से न जताएं तो भी वह वही रहेंगे जो वह है तुर्की और मिस्र। लेकिन पाकिस्तान अगर इस्लामिक पहचान को अपनाने के साथ उसे जाहिर न करता रहे तो वह हिंदुस्तान हो जाएगा। हिंदुस्तान के साथ दोस्ताना मेलजोल का मतलब होगा हिंदुस्तान का सब कुछ अपने आगोश में समेट लेने वाले अपनेपन के दलदल में फंस जाना। समय अबाध गति से बीतते हुए अब पाकिस्तान की स्थापना का आठवां दशक चल रहा है,परन्तु पाकिस्तानी हुक्मरानों के विचार वहीं पर खड़े हुए है।
कुछ दिनों पहले पाकिस्तान के आर्मी चीफ़ जनरल आसिम मुनीर ने इस्लामाबाद में आयोजित ओवरसीज पाकिस्तानी कन्वेंशन 2025 के एक समारोह में टू-नेशन थ्योरी की वकालत करते हुए कहा कि,हमारे पूर्वजों ने सोचा कि हम जीवन के हर संभव क्षेत्र में हिंदुओं से अलग हैं। हमारा धर्म,रीति-रिवाज़,हमारी संस्कृति,हमारी सोच और हमारी महत्वकांक्षाएं अलग हैं। यह दो राष्ट्र के सिद्धांत की नींव थी। जनरल आसिम मुनीर ने अपनी भारतीय पहचान को झूठलाने की कोशिश कर इस्लामी चैंपियन बनने की ठीक वैसी ही कोशिश की जैसी कभी मोहम्मद अली जिन्ना ने की थी। द्विराष्ट्र पर आधारित पाकिस्तान की मांग अपने शुरूआती दौर में ही सांस्कृतिक आधार पर ख़ारिज कर दी गई थी लेकिन हिंसक विभाजन की जिन्ना की कोशिशें कामयाब हो गई। पाकिस्तान एक अलग राष्ट्र भी बन गया पर धर्म और संस्कृति को एक धागे में पिरो कर सभ्यतागत नियति को आगे बढ़ाने के कोशिशें इस राष्ट्र के पतन का अंततः कारण बन गई। सभ्यतागत नियति भूगोल,आनुवंशिकी,समाज,अर्थ,मनोविज्ञान,तकनीक और अन्य सभी कारकों की समझ को एक साथ लाने में सक्षम होती है। यह तभी संभव होता है जब अपनी मूल्य आधारित विकास की पहचान को ईमानदारी से स्वीकार किया जाएं ।
पाकिस्तान की विडम्बना ही यह रही की उन्होंने सभ्यागत नियति को दरकिनार कर अस्वभाविक पहचान को अपनाने की कोशिश की। मोहम्मद अली जिन्ना ने अरब और तुर्कों से भारतीय मुसलमानों को जोड़कर धर्मान्धता के रास्ते राजनीतिक फायदों की ताना बाना रचने की कोशिश की। धर्म को मान भी लिया जाएं तो जिन्ना की कोशिश ठीक हो सकती थी,लेकिन सांस्कृतिक रूप से तो यह स्वीकार्य हो ही नहीं सकता था। धर्म एक संगठित विश्वास प्रणाली है,जो ईश्वर,आध्यात्मिकता,जीवन के उद्देश्य, नैतिकता और जीवन के बाद की अवधारणाओं पर आधारित होती है। वहीं संस्कृति किसी समाज या समुदाय के जीवन जीने के तरीके,परंपराएं,भाषा, खानपान,पहनावा,कला,संगीत,त्योहार,मूल्य और व्यवहार की समग्र अभिव्यक्ति है। जिन्ना और उनके बाद की राजनीति भारतीय पहचान को खत्म कर देने के प्रति इतनी बेचैन थी की इसे राजनीतिज्ञों ने पाकिस्तान की सत्ता में बने रहने के लिए कवच की तरह इस्तेमाल किया गया। बाद में यह कवच लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के लिए अभिशाप बन गया।
पाकिस्तान का पहला संविधान 1956 में लागू किया गया और महज दो सालों में संसदीय प्रणाली ध्वस्त हो गई। देश के पहले राष्ट्रपति सैयद इस्कंदर अली को खुद के ही बनाएं गणतान्त्रिक संविधान से इतनी चिढ़ थी कि उन्होंने अगले दो सालों में पांच प्रधानमंत्री मोहम्मद अली बोगरा,चौधरी मोहम्मद अली,हुसैन शहीद सोहरावर्दी,इब्राहिम इस्माइल चुंद्रीगर और फ़िरोज़ ख़ान नून को पद से हटा दिया। वे यहीं नहीं रुके,1958 में पाकिस्तान के संविधान को निलंबित कर दिया गया,असेंबली भंग कर दी और राजनीतिक पार्टियों को प्रतिबंधित करके पाकिस्तान के इतिहास का पहला मार्शल लॉ लगा दिया। इसके साथ ही उस वक़्त के सेना प्रमुख जनरल अयूब ख़ान को मार्शल लॉ एडमिनिस्ट्रेटर बना दिया। जाहिर है पाकिस्तान के जन्म के महज 11 साल में ही सैन्य ताकतों को पाकिस्तान की राजनीतिक व्यवस्था में हस्तक्षेप का वह अवसर दिया गया जिससे इस इस्लामिक गणराज्य में लोकतंत्र स्थापित होने की संभावना ही धूमिल हो गई। पाकिस्तान अब भी संकट में है। दुनिया के सबसे अशांत और असुरक्षित देशों में अग्रणी शुमार किये जाने वाले पाकिस्तान के कई प्रान्तों में अलगाववादी आंदोलन चल रहे है। देश के सबसे बड़े सूबे बलूचिस्तान के कई इलाकों में घुसने का सेना का साहस नहीं हो पाता और आम जनता को पाकिस्तानी पहचान स्वीकार नहीं है। एक और प्रांत खैबर पख्तुन्वा में अफगान समर्थित आतंकी सगठनों और गुटों का कब्जा है जो कबीलाई तरीके से शासन व्यवस्था का संचालन करते है।
1940 में जिन्ना ने लीग की बैठक की अध्यक्षता की जिसमें लाहौर प्रस्ताव पारित किया गया था,जिसमें अलग मुस्लिम देश की मांग की गई थी। लीग को कांग्रेस और अंग्रेजों के साथ भारत में तीसरी ताकत के रूप में व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त थी। भारत की एक बड़ी मुस्लिम आबादी जिन्ना को एक इस्लामी चैंपियन के रूप में देख रही थी। जिन्ना ने एक अलग देश तो बना लिया लेकिन उसकी अलग पहचान का ख्वाब उनकी मौत के साथ ही धराशाई हो गया। जिन्ना खुद के देश में कायदे आजम कहलाएं जाते है। कायदा शब्द अरबी भाषा से आया है जिसका मतलब होता है,नियम,आधार या सिद्धांत। एक नव स्थापित राष्ट्र की प्राथमिकता संविधानिक उपबन्धों पर आधारित शासन व्यवस्था की स्थापना, सड़क,शिक्षा,स्वास्थ्य जैसी मूलभूत जरूरतों की पूर्ति के लिए बेहतर कार्ययोजना, संप्रभुता की रक्षा और लोकतांत्रिक सरकार होना चाहिए। वहीं पाकिस्तान की स्थापना से लेकर एक राष्ट्र के रूप में अब तक के सफर में नीतिगत रूप से भारत का राजनैतिक और सांस्कृतिक विरोध को सबसे ऊपर रखा गया। इस सबमें पाकिस्तान का न तो कोई कायदा बन पाया और न ही संविधानिक व्यवस्था स्थापित हो सकी।
डेढ़ दशक पहले आई अमेरिकी लेखक स्टीफन कोहेन की किताब,द आइडिया ऑफ पाकिस्तान में लेखक ने यह प्रश्न उठायें थे की पाकिस्तान क्या है,दुष्ट राज्य,अपराधी राष्ट्र या एक विफल राष्ट्र। किताब में कोहेन का वैचारिक तर्क यह था कि पाकिस्तान बंद है क्योंकि एक राष्ट्र के रूप में विचारों के बीच अनसुलझे तनाव अभी भी बने हुए हैं। दिक्कत यही है की पाकिस्तान की सेना और सत्ता भारत विरोध को धर्म और संस्कृति का विरोध भी समझती है। उनकी यही नासमझी पाकिस्तान को एक राष्ट्र के रूप में बनने नहीं देती। आर्मी चीफ़ जनरल आसिम मुनीर धर्मान्धता का मंत्र फूंककर,बंटे हुए और अस्थिर पाकिस्तान को एक सूत्र में बांधने की कोशिश कर रहे है। जबकि वे इन तथ्यों से भलीभांति परिचित है की धर्म को व्यवस्थाओं से जोड़कर पाकिस्तान की संप्रभुता को बनाएं रखने की ऐसी कोशिश 1971 ने नाकामी हो चूकी है। सैन्य अफसर की नासमझी पर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ लोगों के हुजूम के साथ वैसी ही तालियां पिट रहे थे जैसी कभी नासमझों की उन्मादी भीड़ जिन्ना के पक्ष में बजाया करती थी।
वहीं कश्मीर को लेकर पाकिस्तान के दोहरे रुख को इस्लामिक दुनिया ने भी समझ लिया है। पाकिस्तान के पड़ोसी मुल्क चीन के शिन्चियांग प्रान्त में तकरीबन एक करोड़ उईगर मुसलमान रहते है,जिन पर रोजे रखने,महिलाओं के बुर्खा पहनने,खुले में नमाज पढ़ने की इजाजत नहीं है। यहां तक की उन्हें रोज मेंटल डिटेक्टर से चेक किया जाता है और अब तो मुस्लिम बाहुल्य वाले इस प्रान्त को वहां बसने वाले मुस्लिम बाशिंदों के लिए खुली जेल तक कहा जाने लगा है। मुसलमानों के लिए अमानवीयता की हदें पार करने वाले चीन को लेकर पाकिस्तान सदा खामोश रहा है। वहीं भारत एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतंत्र देश है। कश्मीर में रहने वाले मुसलमानों को मौलिक अधिकार,अपने धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता और विकास की सारी सुविधाएं दी गई है,यह ठीक वैसा है ही जैसा भारत के अन्य नागरिकों को प्राप्त है।
दूसरी ओर मध्य पूर्व के मुस्लिम देशों के लिए पाकिस्तान की तुलना में भारत ज़्यादा महत्वपूर्ण कारोबारी साझेदार है तथा पाकिस्तान से भारत की अर्थव्यवस्था का आकार करीब दस गुना बड़ा है। संयुक्त अरब अमीरात का इस्लामिक जगत में बड़ा रुतबा है और उसने इसे भारत का आन्तरिक मामला बताया है,वहीं कुवैत,कतर,बहरीन और ओमान जैसे सशक्त मुस्लिम देशों ने इस पर बात करने से भी परहेज किया है। ईरान,कश्मीर पर भारत के साथ अक्सर खड़ा दिखाई देता है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि पाकिस्तान की सुन्नी कट्टरता शियाओं की मुसीबतें बढ़ाती रही है। इस्लामिक दुनिया की सबसे बड़ी ताकत समझे जाने वाले सऊदी अरब और भारत की सामरिक भागीदारी निरंतर बढ़ी है। सऊदी अरब में 6 मिलियन भारतीय प्रवासी समुदाय सऊदी का सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय है और देश के आधुनिकीकरण में उसकी बड़ी भागीदारी है। एक और मजबूत मुस्लिम देश मिस्र,भारत के साथ राजनीतिक,सुरक्षा सहयोग,आर्थिक जुड़ाव,वैज्ञानिक सहयोग तथा लोगों के बीच संबंधों के सिद्धांतों पर एक नए युग के लिये नई साझेदारी बनाने के अपने इरादे को रेखांकित करते हुए एक संयुक्त घोषणापत्र 2016 में ही जारी कर चूका है। भारत का मिस्र का छठा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। भारत अरब के शक्तिशाली देशों के साथ सहयोग और साझेदारी निरंतर बढ़ा रहा है जिससे पाकिस्तान के कुप्रचार को कमजोर करने में बड़ी मदद मिल रही है।
अब कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकियों द्वारा धर्म पूछकर जिस प्रकार लोगों की हत्याएं की गई है उसके वैश्विक संदेश पाकिस्तान की छवि को खराब ही करेंगे। वहीं कश्मीर में पर्यटकों के आने से यह राज्य बेहतरी की ओर निरंतर बढ़ रहा है,रोजगार और विकास की उम्मीदें बढ़ी है। बहरहाल कश्मीर में हिंसा भड़काकर पाकिस्तान की इस खूबसूरत राज्य को 1990 के दशक की तरह रक्तरंजित और बदहाल करने की कोशिशों को एकजुटता से नाकाम करने की जरूरत है।
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भारत मे आतंकवाद
धर्मान्धता से आतंक को पुर्नजीवित करने की ना”पाक” कोशिशें
- by brahmadeep alune
- April 24, 2025
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