धोखे की कूटनीति
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धोखे की कूटनीति

राष्ट्रीय सहारा

अमेरिका द्वारा प्रेरित युद्ध में यूक्रेन को एक मोहरे के तौर पर इस्तेमाल करने के बाद अब ट्रम्प ने पुतिन  पर भरोसा दिखाकर यूक्रेन को गहरी निराशा में धकेल दिया है। अमेरिका के भरोसे भू-राजनैतिक संघर्ष में बूरी तरह फंसा हुआ यूक्रेन बर्बाद हो चूका है और इसके गंभीर और विनाशकारी परिणाम उत्पन्न  हुए हैं।  रूस यूक्रेन युद्द से यूक्रेन की संप्रभुता और रक्षा को जटिल बना दिया है बल्कि इसके कारण देश की अर्थव्यवस्था,सामाजिक ढांचा और आम जनता पर भी गहरा असर पड़ा है। यूक्रेन का आर्थिक ढांचा युद्ध के कारण बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र और खाद्य उत्पादन क्षेत्र,जो पहले यूक्रेन की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार थे,अब युद्ध के कारण तबाह हो गये है,उत्पादन और निर्यात की इस देश की ताकत खत्म हो चूकी है। युद्ध के कारण व्यापारिक गतिविधियां,निवेश और बुनियादी ढांचा भी बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। विदेशी निवेश में गिरावट आई है और कई देशों ने यूक्रेन से व्यापार को अवरुद्ध कर दिया है जिसके कारण देश में आर्थिक मंदी बढ़ी है। युद्ध की वजह से यूक्रेन के लिए वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में एक महत्वपूर्ण समस्या उत्पन्न हुई है जो खाद्य और अन्य आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति को बाधित कर रही है। अमेरिका ने रूस से प्रतिद्वंदिता के चलते यूक्रेन को एक जटिल और खतरनाक स्थिति में डाल दिया जहां उसे सुरक्षा,सहायता और पश्चिमी समर्थन के लिए अपनी कीमत चुकानी पड़ी। अब ट्रम्प ने यूक्रेन के राष्ट्रीय हितों को दरकिनार पर पुतिन के साथ सौदेबाज़ी की कूटनीति पर आगे कदम बढ़ा दिए है। इस प्रकार धोखेबाजी की अमेरिका की कूटनीति ने अंततः पूर्वी यूरोप के एक शांत और मजबूत देश को निराशा के अंधकार में धकेल दिया है।

वैश्विक राजनीति में यह देखा जा चूका है कि क्यूबा,वियतनाम इराक,अफगानिस्तान और पाकिस्तान जैसे देशों की भू राजनैतिक  परिस्थितियों का इस्तेमाल कर अमेरिका ने वैश्विक संघर्षों में इन्हें उलझाया और मौका पड़ते ही वैश्विक सुरक्षा को संकट में डालकर अपना रुख बदल दिया। यूक्रेन अमेरिका की धोखे की कूटनीति का नया शिकार है। प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर क्यूबा अमेरिका के हितों की राजनीति से कई दशकों से नहीं उबर पाया है। वियतनाम पर भी अमेरिका ने छल और प्रपंच की नीति अपनाई। 2003 में,अमेरिका ने इराक पर आक्रमण किया और इसका कारण यह बताया कि इराक के पास भारी मात्रा में सामूहिक विनाश के हथियार हैं। जबकि वास्तव में इराक के पास कोई हथियार नहीं थे और यह देश बीते तीन दशकों से गृह युद्द में बूरी तरह उलझ चूका है। वहीं अफगानिस्तान के लोगों को तालिबान के हाथों सौंपने के बाद अमेरिका की सेना की वापसी को कभी नहीं भूलाया जा सकता।

दरअसल अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में युद्ध,व्यापार और सामरिक मामलों में अमेरिका की धोखे की कूटनीति का इतिहास बहुत पुराना है। अमेरिका ने कई बार अपने अंतर्राष्ट्रीय हितों को बढ़ाने के लिए अन्य देशों के साथ धोखा देने या छल का सहारा लिया है। इस तरह की कूटनीति ने वैश्विक स्तर पर कई देशों के बीच अविश्वास और विरोध पैदा किया है। अमेरिका की नीतियों और हस्तक्षेप के कारण अस्थिरता और विवाद पैदा हुए हैं। यह भावना मुख्य रूप से अमेरिका के कूटनीतिक दृष्टिकोण और रणनीतियों से उत्पन्न होती है जिनमें अक्सर स्वार्थपूर्ण हित और लंबे समय तक बदलते हुए गठबंधन शामिल होते हैं। अमेरिका  की वैदेशिक नीतियों में स्वार्थ अक्सर देखा जाता है। जब तक अमेरिका का हित जुड़ा होता है वह किसी भी देश के साथ अपने गठबंधन और रिश्ते को मजबूत करता है। लेकिन जैसे ही उसके राष्ट्रीय हितों में बदलाव आता है वह अपना रुख बदल सकता है।

यूक्रेन और रूस के बीच संघर्ष बढ़ाने के पीछे अमेरिका का प्रमुख स्वार्थ रूस को वैश्विक शक्ति के रूप में कमजोर करना रहा। रूस का यूक्रेन पर हमला अमेरिका और उसके सहयोगियों के लिए एक अवसर बन गया था जिससे वे रूस पर आर्थिक और सैन्य दबाव डाल सकें। यूक्रेन को सहायता कर अमेरिका ने रूस की सैन्य और आर्थिक ताकत को सीमित करने तथा रूस को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अलग-थलग करने की कोशिश की। लेकिन अब यूक्रेन को आर्थिक सहायता अमेरिका के गले के हड्डी बन गई है।  डोनाल्ड ट्रम्प  ने अमेरिकन फर्स्ट की नीति के जरिए देश की प्राथमिकताओं को बदल दिया है, उनकी यह राजनीति वैश्विक कूटनीति पर गहरा असर  डाल रही है। ट्रम्प का उद्देश्य अमेरिकी हितों को सबसे पहले और सर्वोत्तम रूप से प्राथमिकता देना है। ट्रम्प ने  है इस नीति के तहत कई आंतरिक और बाहरी नीतियों में बदलाव किए जिससे दुनिया के कई देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ अमेरिका के संबंधों में भी बड़ा बदलाव आया है।

ट्रम्प रूस के साथ सुरक्षा मामलों में  साझेदारी की संभावनाओं को देख रहे है। ट्रम्प का विश्वास है कि अमेरिका और रूस के रिश्तों में सुधार से चीनी प्रभाव को  काबू करने में मदद मिल सकती है। वहीं रूस के साथ  सहयोग अमेरिका को चीन के मुकाबले में एक मजबूत सहयोगी प्रदान कर सकता है जो उसकी वैश्विक शक्ति को बढ़ा सकता है। ट्रम्प रूस के साथ संबंधों में सुधार को चीन के बढ़ते प्रभाव को चुनौती देने का एक तरीका मान रहे है तथा चीन को काबू करने की रणनीति बनाने पर आगे बढ़ रहे है। डॉलर को मजबूत करने की ट्रम्प की यह नीति बेहद कारगर हो सकती है और इससे संभवतः चीन को सीमित करने की अमेरिका की योजना फलीभूत भी हो सकती है। लेकिन इससे यूक्रेन की  संस्कृति,विरासत और सभ्यता न तो अपने पुराने  वैभव को कभी हासिल कर पाएंगी और न ही उसके ऐतिहासिक स्थल,संग्रहालय और सांस्कृतिक धरोहरें कभी खड़ी हो पाएंगी। जाहिर है अमेरिका जैसे कुटिल सहयोगी पर भरोसा करने की गलती यूक्रेन के विध्वंस का कारण बन गई।  अमेरिका की धोखे की कूटनीति ने यूरोप और यूक्रेन को अविश्वास के ऐसे संकट में डाल दिया है जिसके दीर्घकालीन परिणाम दुनिया की राजनीति को बदल सकते है।

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