बांग्लादेश की कूटनीति और भारत
article

बांग्लादेश की कूटनीति और भारत

जनसत्ता

 राजनीतिक बदलाव किसी देश के राजनीतिक निर्णयों,रणनीतियों और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को किस प्रकार प्रभावित कर सकते है इसका बड़ा  उदाहरण बांग्लादेश है। शेख हसीना की सरकार के तख्तापलट के बाद बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने  देश की वैदेशिक नीति में अभूतपूर्व बदलाव कर पाकिस्तान के साथ सामरिक,राजनीतिक और नागरिक संबंधों को प्राथमिकता से बहाल  कर दिया है। भौगोलिक,आर्थिक और सामरिक दृष्टि से यह स्थिति भारत के लिए  चुनौतीपूर्ण है और इसके दूरगामी परिणाम बेहद घातक हो सकते है।

दरअसल बांग्लादेश भारत का एक महत्वपूर्ण भूराजनीतिक सहयोगी है,जिसमें पूर्वोत्तर भारत और मध्य भारत के बीच अधिक एकीकरण की सुविधा प्रदान करने की क्षमता है। इसकी भूमि सीमा तीन ओर से भारत की सीमा से घिरी है और चौथी ओर बंगाल की खाड़ी स्थित है। बांग्लादेश म्यांमार और भारत के साथ भूमि सीमा साझा करता है। बांग्लादेश की सीमा भारत के असम,त्रिपुरा, मिज़ोरम,मेघालय और पश्चिम बंगाल को स्पर्श करती है। अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण,बांग्लादेश दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के बीच एक प्राकृतिक कड़ी है।  वहीं भारत ने एक दशक पहले एक्ट ईस्ट पॉलिसी की शुरुआत की थी। इस नीति का उद्देश्य एशिया प्रशांत क्षेत्र में स्थित देशों के साथ आर्थिक,रणनीतिक और सांस्कृतिक सहयोग को  बढ़ाना तथा चीन का मुकाबला करना था। एक्ट ईस्ट नीति ने देश में निवेश प्रवाह को आकर्षित करने और व्यापार के विस्तार के माध्यम से भारत की आर्थिक वृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। बांग्लादेश इस एक्ट ईस्ट नीति का एक स्वाभाविक स्तंभ है। अपनी भू राजनैतिक स्थिति के कारण बांग्लादेश दक्षिण पूर्व एशिया और उससे आगे के देशों के साथ आर्थिक और राजनीतिक संबंधों के लिए एक पुल के रूप में कार्य करता है। बांग्लादेश बिम्सटेक और बीबीआईएन पहलों का महत्वपूर्ण घटक है,रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों के निकट स्थित है तथा दक्षिण एशिया में भारत का सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है। भारत और बांग्लादेश के बीच सुविधाजनक व्यापार समझौता है। दोनों ही देश एशिया प्रशांत व्यापार समझौते,सार्क अधिमान्य व्यापार समझौते और दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र समझौते के सदस्य हैं,जो व्यापार के लिए टैरिफ व्यवस्था को नियंत्रित करते हैं।

सुरक्षा की दृष्टि से भारत  के उत्तर पूर्व के राज्य बेहद संवेदनशील माने जाते है,ये  राज्य चारों ओर से भूमि से घिरे हुए हैं। शेख हसीना के डेढ़ दशक के कार्यकाल में भारत और बांग्लादेश के मजबूत संबंधों के चलते इन क्षेत्रों में सामाजिक आर्थिक विकास और एकीकरण को बढ़ावा मिला और विकास का मार्ग भी प्रशस्त हुआ था। इस दौरान उत्तर पूर्व को आसियान के लिए अपना रणनीतिक प्रवेश द्वार बनाने के लिए भारत के प्रयास तेजी से चल रहे थे। भारत ने एक्ट ईस्ट में आसियान और व्यापक हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों के साथ कई स्तरों पर पहल की परिकल्पना की गई है। इन पहलों को द्विपक्षीय,क्षेत्रीय और बहुपक्षीय स्तरों पर निरंतर जुड़ाव की प्रक्रिया के माध्यम से आगे बढ़ाया जाना है,जिससे राजनीतिक, आर्थिक,सांस्कृतिक और लोगों के बीच संबंधों सहित व्यापक अर्थों में बेहतर संपर्क प्रदान किया जा सके।  भारत के उत्तर पूर्व को सुरक्षा और आर्थिक दोनों दृष्टि से बांग्लादेश के साथ अच्छे संबंधों से लाभ हुआ और पिछले डेढ़ दशक में उत्तर पूर्व में उग्रवाद कम हुआ।  जबकि उत्तर पूर्व से लगते हुए म्यांमार में अशांति का प्रभाव भारत की कई महत्वाकांक्षी परियोजनाओं पर पड़ा है।

भारत,बांग्लादेश और म्यांमार के सहयोग के बिना एक्ट ईस्ट पॉलिसी का सफलतापूर्वक संचालन नहीं कर सकता। म्यांमार में अस्थिरता के बाद भी भारत जुंटा सरकार के लगातार सम्पर्क में रही लेकिन अब स्थितियां यहां भी भारत के नियन्त्रण के बाहर होने की आशंका बढ़ गई है। पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच समुद्र के रास्ते व्यापार शुरू होना और पाकिस्तान के जहाज़ का चटगांव बन्दरगाह पर आना भारत की रणनीतिक योजनाओं के लिए नई चुनौती के संकेत है। चटगांव बन्दरगाह सामरिक रूप से भी बेहद अहम है। पूर्वोत्तर के उग्रवादियों की शरणस्थली और हथियारों की सप्लाई के लिए कुख्यात रहा म्यांमार चटगांव बन्दरगाह से ज़्यादा दूर नहीं है। यह बन्दरगाह बंगाल की खाड़ी के ज़रिए पूर्वोत्तर भारत के प्रवेश द्वार के तौर पर काम करता है। यहां तक पाकिस्तानी जहाज़ों की नियमित आवाजाही इलाके की भू-राजनीति पर असर डाल सकती है। चीन,बांग्लादेश का एकमात्र सहयोगी देश है जिसके साथ उसका रक्षा सहयोग समझौता है। चीन रक्षा क्षेत्र में बांग्लादेश का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है।

एक्ट ईस्ट नीति मुख्य रूप से आसियान देशों ब्रुनेई,कंबोडिया,इंडोनेशिया, लाओस,मलेशिया,म्यांमार,फिलीपींस,सिंगापुर,थाईलैंड,वियतनाम,जापान, दक्षिण कोरिया,ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड सहित एशिया प्रशांत क्षेत्र के अन्य देशों को लक्षित करती है। बांग्लादेश दक्षिणपूर्व एशिया के साथ अपने संबंध मज़बूत करने के लिए थाईलैंड से मदद की उम्मीद कर रहा है। वहीं थाईलैंड भारत के साथ सीधा सम्पर्क चाहता है। बांग्लादेश बंगाल की खाड़ी के उत्तर में स्थित है,जबकि थाईलैंड उसी के पास के अंडमान सागर के पूर्वी तट पर स्थित है। बांग्लादेश के दक्षिणपूर्वी तट पर स्थापित चटगांव देश का सबसे बड़ा बंदरगाह है। बांग्लादेश का  नब्बे फीसदी समुद्री व्यापार इसी बंदरगाह की ज़रिए होता है। चटगांव बंदरगाह बंगाल की खाड़ी का सबसे व्यस्त पोर्ट है। रानोंग पोर्ट अंडमान सागर में थाईलैंड का इकलौता बंदरगाह है,जो इसे बंगाल की खाड़ी से जोड़ता है। थाईलैंड रानोंग पोर्ट को इसलिए विकसित कर रहा है,जिससे वो दूसरे तटीय देशों,खासकर भारत के अंडमान निकोबार द्वीप समूह से सीधे जुड़ सके। चटगांव और रानोंग बंदरगाह के बीचे सीधे शिपिंग सेवा शुरू  होने से परिवहन में सिर्फ तीन दिन लगेंगे और परिवहन लागत में  तीस फीसदी की कमी आ जाएगी। थाईलैंड के लिए चटगांव बंदरगाह से सीधे जुड़ाव का मतलब ये हुआ कि वो नेपाल,भूटान और पूर्वोत्तर भारत के साथ अपने व्यापार को सुधार सकता है । भारत की नजर बांग्लादेश और थाईलैंड के बीच शिपिंग सेवा पर है ।

बांग्लादेश में राजनीतिक बदलाव के बाद भारत की भविष्य की परियोजनाओं और बांग्लादेश में किये गए व्यापक निवेश पर प्रतिकूल असर पढ़ सकता है। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के खालिदा जिया की पार्टी बीएनपी से मजबूत सम्बन्ध है। बीएनपी को भारत विरोधी समझा जाता है। 2004 में बीएनपी के शासनकाल में बांग्लादेश के इतिहास में हथियारों और गोला-बारूद की सबसे बड़ी खेप जब्त की गई थी। इन हथियारों को दो बड़े ट्रालरों के जरिए समुद्री रास्ते से चटगांव स्थित यूरिया फर्टिलाइजर या सीयूएफएल जेटी पर ले आया गया था। भारत अपने पूर्वोत्तर इलाके के सात राज्यों  की सुरक्षा को लेकर सतर्क रहा है।  भारत की  सुरक्षा एजेंसियों का मानना था कि बांग्लादेश की बीएनपी सरकार उन इलाकों में सक्रिय अलगाववादी संगठनों की मदद कर रही है। इस घटना के कुछ दिनों पहले भूटान में चलाए गए ऑपरेशन आल क्लीयर के दौरान उल्फा के हथियारों के भंडार को पूरी तरह नष्ट कर दिया गया  था। उल्फा या यूनाइटेड लिबरेशन फ़्रण्ट ऑफ़ असम भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम में सक्रिय एक प्रमुख आतंकवादी और उग्रवादी संगठन हैं। सशस्त्र संघर्ष के द्वारा असम को एक स्वतन्त्र राज्य बनाना इसका लक्ष्य है। इस समूचे  घटनाक्रम में यह तथ्य सामने आये की  जब्त हथियार उल्फा के लिए चीन से आएं थे। उल्फा का नेता परेश बरुआ पाकिस्तान की आईएसआई,बांग्लादेश की सैन्य खुफिया एजेंसी डीजीएफआई और राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी एनएसआई के साथ तालमेल बनाते हुए काम कर रहा था। इस मामले में चटगांव की विशेष अदालत ने भारत के अलगाववादी संगठन उल्फा के सैन्य कमांडर परेश बरुआ को फांसी  की सजा सुनाई थी।

बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच मजबूत रिश्तों का असर म्यांमार पर भी पड़ सकता है। चीन की मदद से पाकिस्तान और म्यांमार के बीच सैन्य उद्योग में साझेदारी बढ़ी है। म्यांमार अपनी सैन्य ताकत बढ़ाना चाहता है तथा वह पाकिस्तान के साथ अपनी सैन्य साझेदारी बढ़ा रहा है। पाकिस्तान और म्यांमार की सेना के प्रतिनिधिमंडलों ने एक-दूसरे देश की यात्राएं की है। चीन पाकिस्तानी सैन्य उद्योग के ज़रिए अपने हथियार बेचना चाहता है। पाकिस्तान के सैन्य अधिकारियों ने म्यांमार की सेना को हथियारों के उत्पादन में तकनीकी मदद भी की है। भारत और म्यांमार दोनों देश एक-दूसरे के साथ  सोलह सौ किमी से अधिक लंबी थल सीमा के साथ बंगाल की खाड़ी में समुद्री सीमा भी साझा करते हैं। म्यांमार सीमा पूर्वोत्तर भारत के अरुणाचल प्रदेश,नागालैंड,मणिपुर और मिज़ोरम से सटी हुई है। चीन म्यांमार आर्थिक गलियारा भारत के लिये एक बड़ी चिंता का विषय है। म्यांमार का सितवे बंदरगाह को भारत के लिए बड़ा उपयोगी समझा जाता है। कलादान मल्टी मॉडल पारगमन परिवहन परियोजना कोलकाता को म्यांमार के सित्वे बंदरगाह से जोड़ती है। इस परियोजना के पूरे होने पर कोलकाता और मिज़ोरम के बीच की दूरी लगभग अठारह सौ किलोमीटर से घटकर लगभग आधी रह जाएगी।

1971 में पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश बनने और भारत और बांग्लादेश के बीच मजबूत रिश्तों के रहते पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी भारत के पूर्वोत्तर के राज्यों में मजबूत नहीं हो सकी। इस कारण भारत की आंतरिक सुरक्षा को प्रभावित करने का चीन का मंसूबा भी कामयाब नहीं हो सका। पूर्वोत्तर के राज्यों की आर्थिक और जातीय समस्याएं तथा सांस्कृतिक विविधता भारत  के लिए सुरक्षा का संकट बढ़ाती रही है। इन राज्यों के अलगाववादी आंदोलन पूरी तरह खत्म नहीं हो पाएं है। मणिपुर में गहरी अशांति है। यह क्षेत्र आतंकवादी घुसपैठ के लिये अतिसंवेदनशील हैं। बांग्लादेश से भारत में अवैध आप्रवासन को रोकना बेहद चुनौतीपूर्ण रहा है। कुकी,चिन,लुसाई जनजाति का पारंपरिक निवास स्थान तीन देशों की सीमाओं में बंटा है। ये भारत में मिज़ोरम,मणिपुर और नागालैंड के अलावा पड़ोसी म्यांमार के चिन स्टेट के चिन हिल्स और आसपास के इलाके और बांग्लादेश के पर्वतीय चटगांव इलाके में रहते हैं। बांग्लादेश से पाकिस्तान के मजबूत होते संबंधों के कारण आईएसआई भारत के पूर्वोतर के विभिन्न जातीय समूहों और अलगाववादी तत्वों को भारत के खिलाफ लामबंद करने की साजिशों को अंजाम दे सकती है। घुसपैठ के कारण बांग्लादेश की सीमा से लगे भारतीय राज्यों के लोगों के लिये गंभीर सामाजिक,आर्थिक तथा राजनीतिक  समस्याएं पहले ही है। बांग्लादेश और म्यांमार की सीमा से भारत में आतंकवादियों का प्रवेश,मादक द्रव्यों की तस्करी,मानव  तस्करी और जाली मुद्रा के अवैध कारोबार को रोकना एक बड़ी चुनौती होगा।

Leave feedback about this

  • Quality
  • Price
  • Service

PROS

+
Add Field

CONS

+
Add Field
Choose Image
Choose Video
X