बापू के देशी विकास पर आधारित मॉडल गांव
article गांधी है तो भारत है

बापू के देशी विकास पर आधारित मॉडल गांव

हमारे जीवन में संवाद का बड़ा महत्व है। यह व्यक्तिगत,सामाजिक और सामुदायिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बापू पूरे भारत को पैदल ही नाप लिए थे। वे भाषण से ज्यादा संवाद पर भरोसा करते थे। वे मानते थे कि संवाद अच्छे संबंधों के निर्माण में मदद करता है,लोगों के बीच विश्वास और समझ को बढ़ाता हैतथा संवाद के माध्यम से समस्याओं का समाधान अधिक प्रभावी ढंग से किया जा सकता है।कोरोना काल से हमारे बीच सामूहिक संवाद का एक अच्छा और व्यापक माध्यम वेबिनार हो गया है। दूरदराज के लोग इससे आसानी से जुड़ जाते है और इसका अब खूब उपयोग भी होने लगा है। ग्राम विकास को बढ़ावा देने के लिए भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी राकेश पालीवाल प्रत्येक रविवार सुबह साढ़े सात बजे से सुबह 9 बजे तक पूरा डेढ़ घंटा संवाद करते है।  स्वस्थ,शिक्षित और समृद्ध गांव अभियान और राष्ट्रीय जैविक परिवार अभियान के तहत होने वाले इस वेबिनार से कोई भी जुड़ सकता है। इस संवाद में ग्राम स्वराज,पर्यावरण संरक्षण,जैविक खेती और गांधी के मूलभूत सिद्धांतों पर व्यवहारिक चर्चा की जाती है और समूह के लोग इसे अपने अपने स्तर पर गांवों में लागू करने की कोशिशें करते रहते है।

यूपी के मुजफ्फरनगर जिले के एक छोटे से गांव बरला में जन्मे राकेश पालीवाल 1986 में भारतीय राजस्व सेवा में चुने गए। अलग अलग राज्यों में उनकी पोस्टिंग होती रही,इस दौरान उन्होंने गांवों की समस्याओं को देखा और समझा। अपनी सेवा के दस सालों में ही उन्हें यह अनुभव हुआ की मजबूत भारत का निर्माण गांवों से हो सकता है लेकिन इसके लिए गांवों में  बहुत कुछ किया जाना चाहिए। आजादी के 50 साल पूरे हुए तो पालीवाल साहब ने अपने विचारों का एक समूह बनाया और इस प्रकार 1997 में एक संस्था अस्तित्व में आई,योगदान। इस योगदान में सरकारी कुछ भी नहीं था,सभी को मिलना था,गांवों को गोद लेना था,पैसे जेब से खर्च करना था और गांधी के ग्राम स्वराज को बढ़ावा देना था।

इसकी असल शुरुआत हुई गुजरात के खोबा गांव से।  बलसाड़  जिले का यह बेहद पिछड़े दूरस्थ आदिवासी गांव में सड़क भी नहीं थी। पालीवाल साहब और उनके साथियों ने विकास के लिए 2009-10 में इसी गांव को चुना। गांव वालों से बात की। योगदान ने पैसा इकट्टा किया। गांवों वालों ने श्रमदान किया और छह किलोमीटर की सड़क बनकर तैयार हो गई। संस्था जिस भी गांव में कार्य करती है,वहां गांधी के समग्र कामों पर आधारित गांधी आश्रम की स्थापना करने का प्रयास होता है,जो असल में शिक्षा,स्वास्थ्य,रोजगार,स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता  पर आधारित गांधी ग्राम सेवा केंद्रहोता है। खोबा गांव पहाड़ी इलाका है,अत: ग्राम वासियों ने सर्वोदय परिवार के साथ मिलकर और श्रम दान करके आधा एकड़ में आश्रम तैयार कर लिया। किसी समय विकास से कोसों दूर और बदहाल इस गांव का कायकल्प हो गया है। बच्चें पढ़ भी रहे है और आगे बढ़ भी रहे है। शिक्षा और स्वास्थ्य का जिम्मा सभी मिलजुल कर उठाते है। अब दुनिया भर से लोग इस गांव को देखने आते है की भारत में ग्राम स्वराज कैसे कायम हो सकता है।

गांधी ग्राम सेवा केंद्र को देश के किसी भी क्षेत्र के पिछड़े इलाके में जाने औरकार्य करने से कोई परहेज नहीं है। 2012-13 में आगरा जिले का दूरस्थ और पिछड़ा हुआ गांव रटोटी में कुछ करने का मिशन प्रारंभ किया गया। यमुना के बीहड़ से लगे इस इलाके में गांधी ग्राम सेवा केंद्रका निर्माण करने के लिए एक कार्यकर्ता ने अपनी पुश्तैनी एक एकड़ जमीन दान कर दी। गांधी ग्राम सेवा केंद्र स्थानीय लोगों को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रशिक्षित करता है। यहां कौशल विकास कार्यक्रम चलाए जाते हैं,जिससे लोग विभिन्न व्यवसायों में दक्षता प्राप्त कर सकें।गांव में शिक्षा के स्तर को बढ़ाने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। बच्चों और युवाओं के लिए विशेष शिक्षा पहल की जाती हैं।केंद्र स्वास्थ्य के मुद्दों पर ध्यान देता है और लोगों को स्वास्थ्य जागरूकता,स्वच्छता और पोषण के बारे में जानकारी प्रदान करता है।महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त करने के लिए विभिन्न गतिविधियों और कार्यक्रमों का आयोजन करता है,जैसे कि सिलाई-कढ़ाई और हस्तशिल्प प्रशिक्षण।यह केंद्र ग्रामीण समुदाय में सहयोग और सामंजस्य बढ़ाने के लिए कार्य करता है। सामुदायिक गतिविधियों और आयोजनों के माध्यम से स्थानीय लोगों को जोड़ता है।गांव में पर्यावरणीय शिक्षा और जागरूकता फैलाने के लिए केंद्र कार्यरत है,जैसे वृक्षारोपण कार्यक्रम और जैविक खेती। इस गांव में सोयाबीन बहुतायत में होता है,पहले व्यापारी इन्हें बहुत कम दाम में खरीद लिया करते थे और किसानों की कमाई भी नहीं हो पाती थी। गाँधी ग्राम सेवा केंद्र ने गांव में सोया प्लांट स्थापित किया तो गांव की तस्वीर ही बदल गई।अब इस गांव से शुद्ध सोयाबीन ऑयल की दिल्ली तक से एडवांस बुकिंग होती है,इसका प्रभाव आस पास के गांवों में भी पड़ा,अनेक गांवों में ऐसे प्रयोग हुए  और इससे मिलावट खोरों का धंधा चौपट हो गया। गांधीजी का मानना था कि खान-पान का स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। उन्होंने साधारण,प्राकृतिक और पौधों पर आधारित आहार को प्राथमिकता दी थी। यह न केवल स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद था,बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी टिकाऊ था और ग्राम स्वराज के केंद्र में था

सतपुड़ा के घने जंगलों में बसा छेड़का गांव गाँधी का अंतिम गांव कहा जाता है। होशंगाबाद जिले के दूरस्थ क्षेत्र में स्थित इस गांव के बाद कोई गांव नहीं है और टाइगर रिजर्व प्रारम्भ हो जाता है।इस गांव में पुरुष रात को जंगल की लकड़ियाँ काटने चले जाते थे और महिलाएं उन्हें सिर पर गट्ठर रखकर दस बारह किलोमीटर दूर सोहागपुर बेचने जाती थी,जहां मुश्किल से उन्हें अस्सी नब्बे रूपये मिलते थे,जो इन आदिवासी परिवारों की कमाई का प्रमुख साधन था।2016-17 से गांधी ग्राम सेवा केंद्र कार्य यहां पर कर रहा है,जिसमें आईआईटी के पास आउट शामिल है। छेड़का में गांधी ग्राम सेवा केंद्र स्थानीय लोगों को विभिन्न कौशल सिखाता हैजैसे सिलाई,कढ़ाई,कृषि तकनीकऔर हस्तशिल्पजिससे वे आत्मनिर्भर बन सकें। यहां बिजली न होने से लोग घर से बाहर नहीं निकल पाते थे।गांधी ग्राम विकास सेवा केंद्र की सहायता से यहां स्ट्रीट सोलर लाइट को लगाया गया।देश के किसी भी आदिवासी गांव  में यह अपने तरह का पहला  प्रयोग था।जो लोग लकड़ी काटते और बेचने कई किलोमीटर दूर पैदल जाते थे,वे अब जंगल मित्र है तथा वन विभाग की सहायता से सभी को रोजगार भी मिल गया है।गांधीजी ने प्रकृति को एक जीवित और सम्मानित तत्व के रूप में देखा। उन्होंने मानवता के लिए प्राकृतिक संसाधनों के उचित और सतत उपयोग का समर्थन किया। उनका मानना था कि मनुष्य को प्रकृति के साथ सामंजस्य में रहना चाहिए।हैदराबाद से 70 किलोमीटर दूर गोंगलूर गांव सांगा रेड्डी जिले में आता है।इस गांव में गांधी ग्राम सेवा केंद्र  के कार्यों को इतना पसंद किया गया की पंचायत ने प्रस्ताव पास करके उन्हें केंद्र के लिए जमीन दी और केंद्र के प्रयासों से इस क्षेत्र की किस्मत बदल गई है।
राकेश पालीवाल सेवानिवृत्त होने के बाद अब भोपाल के पास भोजपुर रोड़ पर छान गांव में  रहते है। यहां से सीहोर जिले का चार मण्डली करीब साठ किलोमीटर दूर है। घने जंगलों से होकर चार मण्डली पहुंचना होता है।2021-22 में गांधी ग्राम सेवा केंद्र की स्थापना ऐसे नोडल केंद्र के रूप में की गई है जहां प्रकृति,पर्यावरण और जैविक खेती का व्यापक और व्यवहारिक प्रशिक्षण मिलता है।इस केंद्र में बंजर जमीन को उपजाऊ बनाना,जल संरक्षण,जल प्रबंधन,सहकारी जैविक खेती,कंपोस्ट और केंचुआ खाद निर्माण,फसलों के वैल्यू एडिशन और प्रोसेसिंग से आजीविका के वैकल्पिक साधन,ग्राम नर्सरी,फल और सब्जी वाटिकाजैसे कार्यो का किसानों को निशुल्क प्रशिक्षण दिया जाता है।इसे जैविक खेती के राष्ट्रीय केंद्र के रूप में विकसित किया गया है। कृषि स्नातकों और वरिष्ठ अधिकारियों की फील्ड विजिटयहां अक्सर होती है और हर वर्ष तीन कृषि सीजन में तीन राष्ट्रीय वर्कशॉप का आयोजन किया जाता है।चार मण्डली के एक एकड़ में गांधी ग्राम सेवा केंद्र की स्थापना की गई है तथा गांधी ग्राम सेवा केंद्र  के आठ लोगों ने मिलकर 18 एकड़ जमीन खरीदी है और वे यहां जैविक खेती कर रहे है। महात्मा गांधी के चिन्तन में यह सदा शामिल रहा की आत्म निर्भर किसान कैसे हो सकते है। चार मण्डली में गांधी के ग्राम स्वराज के मूल मंत्र का खास ध्यान रखा जाता है। यहां बीज,खाद और श्रम सब ग्राम वासियों का होता है और उनकी अपनी सब्जी,अपना फल,अपना भोजन,आत्म निर्भर खेती,आत्म निर्भर किचन होता है।असल में जब आत्म निर्भर किसान बनेगा तब ही गांव भी आत्म निर्भर बनेगा। प्रसिद्द गांधीवादी विनोबा भावे ने अपने जीवन के उत्तरकाल के 18 साल पवनेर आश्रम में बिताएं थे। वे कहीं नहीं जाते थे और कहते थे की जिन्हें गांधीवाद को समझना हो वे पवनेर आ जाएं। भारत भर में सेवाएं देने के बाद पालीवाल साहब भी अब चार मण्डली में ही मिलते है। उनके साथियों में विदिशा के डॉ.सुरेश गर्ग जैसे व्यक्तित्व भी है जो गांधी और ग्राम स्वराज के साथ चलने के लिए अपनी  शासकीय सेवा को विराम दे चूके है तथा गांधी ग्राम के जरिए लोक सेवा और जागरूकता में लगे हुए है।

महात्मा गांधी का ग्राम स्वराज एक समग्र दृष्टिकोण है,जिसमें गाँवों के विकास और आत्मनिर्भरता पर जोर दिया गया है।  बापू के ग्राम स्वराज की व्यापक और बहुआयामी अवधारणा को लेकर चलने वाले लोग बहुत थोड़े है लेकिन उनके संदेश बहुत बड़े है। सामर्थ्यवान भारत बनाना है तो गांवों को आत्म निर्भर बनाइए,प्रकृति की रक्षा कीजिये और जैविक शुद्धता को अपनाइए ।

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