ब्रिटेन का शरणार्थी संकट-राष्ट्रीय सहारा
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ब्रिटेन का शरणार्थी संकट-राष्ट्रीय सहारा

राष्ट्रीय सहारा

ब्रिटेन का समाज मुक्त व्यापार के फायदों और अपने देश की आर्थिक प्रगति से ज्यादा अप्रवासन की उन चुनौतियों से ज्यादा आशंकित है जो पूर्वी यूरोप और गृहयुद्द से जूझ रहे अरब और अफ़्रीकी देशों से आ रही है।  यहां के निवासियों को लगता  था कि यूरोपीय यूनियन में ज्यादा समय तक बने रहने से न केवल उनका सांस्कृतिक और सामाजिक परिदृश्य बदल जाएगा बल्कि स्थानीय नागरिकों के सामने रोजगार और सुरक्षा का संकट भी गहरा सकता है। मुक्त आवाजाही को सांस्कृतिक,सामाजिक और आर्थिक उत्थान का माध्यम बनाने की यूरोपीय संघ की कोशिशों को ब्रिटेन ने ब्रेक्सिट के जरिए बड़ा झटका दिया था। यह यूरोप के एकीकरण के सपनों के ध्वस्त होने जैसा था। पिछले 10 सालों में  ब्रिटेन की राजनीति बहुत बदल गई है और वह वैश्विक मानवाधिकारों की रक्षा की नसीहतों को नजरअंदाज करने को भी आमादा नजर आती है। ब्रिटेन का पारम्परिक समाज प्रवासी और शरणार्थी जैसे मुद्दों पर बेहद मुखर है और वह अपने देश की पहचान को बनाएं रखने के लिए किसी को भी शरण नहीं देना चाहते।

दरअसल करीब 12 साल पहले ब्रिटेन की जनसंख्या के सरकारी आंकड़े सामने आये तो यहां के परम्परावादी समाज में कड़ी प्रतिक्रिया देखी गई थी। इसके अनुसार ब्रिटेन की जनसंख्या को  छह  करोड़  बत्तीस  लाख बताया गया था जिसमें ब्रिटेन के स्थानीय निवासियों का अनुपात 2001 की जनगणना के 87 फीसदी के मुकाबले घटकर 80 फीसदी बताया गया था।  आंकड़ों के अनुसार इंग्लैंड और वेल्स में हर  आठवां व्यक्ति विदेश में जन्मा व्यक्ति है। ब्रिटेन के जनसंख्या अनुपात में पिछले 10 सालों में आए बदलाव के लिए मुख्य कारण आप्रवासियों का ब्रिटेन आना बताया गया।

यह भी बेहद दिलचस्प है कि अवैध अप्रवासन का मार्ग ब्रिटेन में उस इंग्लिस चैनल को समझा जाता है जो किसी समय ब्रिटेन की सबसे बड़ी ताकत हुआ  करता था। इंग्लिश चैनल ब्रिटेन के लिए एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक सुरक्षा कवच का काम करती रही है। करीब 100 साल पहले ब्रिटिश नौसेना की समुद्री शक्ति का कोई मुकाबला नहीं हुआ करता था। ब्रिटिश साम्राज्य का निर्माण सिर्फ इसीलिये संभव हुआ था क्योंकि रॉयल नौसेना ने यूरोप के आसपास,विशेष रूप से चैनल और उत्तरी सागर के समुद्रों पर निर्विवाद रूप से नियंत्रण हासिल किया था। इंग्लिश चैनल,ब्रिटेन-यूरोप और उत्तर सागर-अटलांटिक,दोनों रास्तों में यातायात के साथ दुनिया के सबसे व्यस्त समुद्री मार्गों में से एक है।  इस मार्ग से प्रतिदिन 400 से अधिक जहाजों का आवागमन होता है।

 

ब्रिटेन सरकार के अनुसार,2022 में 45 हज़ार लोगों ने छोटी नावों पर सवार होकर इंग्लिश चैनल को पार किया है। यह संख्या  2021 की तुलना में 60  फीसदी से अधिक है। यूएन शरणार्थी संगठन  का कहना है कि अनेक लोग शरण पाने के इरादे से,अपनी जान जोखिम में डालते हुए छोटी नावों पर सवार होकर, इंग्लिश चैनल समेत अन्य मार्गों से होकर ब्रिटेन में अनियमित ढंग से प्रवेश करते हैं।

इंग्लिश चैनल से अप्रवासन के मुद्दे पर ब्रिटेन का फ़्रांस के साथ विवाद भी गहराया। इंग्लिश चैनल अटलांटिक महासागर की एक शाखा है जो ग्रेट ब्रिटेन को उत्तरी फ्रांस से अलग करती है और उत्तरी सागर को अटलांटिक से जोड़ती है। यह तकरीबन 560 किमी लंबी है और 240 किलोमीटर चौड़ी है। फ्रांस पश्चिम यूरोप में स्थित एक देश है किन्तु इसका कुछ भूभाग संसार के अन्य भागों में भी हैं। यह यूरोपीय संघ का सदस्य है। क्षेत्रफल की दृष्टि से यह यूरोप महाद्वीप का सबसे बड़ा देश है,जो उत्तर में बेल्जियम,लक्ज़मबर्ग,पूर्व में जर्मनी,स्विट्ज़रलैण्ड, इटली,दक्षिण-पश्चिम में स्पेन,पश्चिम में अटलांटिक महासागर,दक्षिण में भूमध्यसागर तथा उत्तर पश्चिम में इंग्लिश चैनल द्वारा घिरा है। इस प्रकार यह तीन ओर सागरों से घिरा है।

अवैध प्रवासन फ़्रांस में बड़ा राजनीतिक मुद्दा रहा है। फ़्रांस का जुडाव कई देशों और समुद्रों से होने से लोग फ़्रांस के तट का इस्तेमाल करना ज्यादा मुफीद  समझते है।  फ़्रांस से ब्रिटेन आने वाले शरणार्थी संकट पर ब्रिटेन ने 2021 में फ़्रांस के समुद्र तटों पर हवाई निगरानी की पेशकश की थी जिसे फ़्रांस से अस्वीकार्य बताया था। ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने उत्तरी फ्रांस के समुद्र तटों पर ब्रिटिश सीमा अधिकारियों द्वारा गश्त शुरू करने का प्रस्ताव भी रखा था। उन्होंने एक-दूसरे के जल क्षेत्र में संयुक्त या पारस्परिक समुद्री गश्त और मानवयुक्त उड़ानों तथा ड्रोन द्वारा हवाई निगरानी की भी सिफारिश की थी। बाद में अवैध प्रवासियों के बढ़ती समस्या से निपटने के लिए दोनों देशों के बीच एक समझौता हो गया। इसके तहत फ्रांस समुद्री इलाकों में गश्त बढ़ाएगा ताकि उन अवैध प्रवासियों को रोका जा सके जो ब्रिटेन में प्रवेश करने के लिए खतरनाक छोटी नावों से इंग्लिश चैनल पार करते हैं। फ़्रांस को इसकी एवज में ब्रिटेन से  सात करोड़ यूरो की मदद भी मिलेगी। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने स्वीकार किया है कि ब्रिटेन के लोगों की प्राथमिकता अवैध प्रवास को रोकना है।

अब ब्रिटेन में अवैध प्रवेश करने वालों की खैर नहीं होगी,और ऐसे लोगों को रवांडा जाने के लिए मजबूर किया जा सकता है। ब्रिटेन का नया कानून इतना सख्त है कि  यह अप्रवासन की समस्या से निपटने का बड़ा हथियार तो बन सकता है लेकिन वैश्विक स्तर पर इस कानून की आलोचना भी हो रही है। ब्रिटेन 1951 की शरणार्थी सन्धि के मूल हस्ताक्षरकर्ताओं में से है,जिसमें यह माना गया है कि शरणार्थियों को,शरण पाने के लिए किसी देश में अनियमित रूप से प्रवेश करना पड़ सकता है। यूएन का कहना है कि ब्रिटेन में शरण चाहने वाले लोग शरणार्थी संरक्षण पाने के अपने अधिकार से वंचित हो जाएंगे। वहीं यह भी माना जा रहा है कि  ऐसी स्थिति में शरण पाने के इच्छुक लोगों की व्यक्तिगत परिस्थितियों की जाँच किए बिना ही,उन्हें हिरासत में रखा या फिर देश निकाला दिया जा सकता है।

यदि तथ्यों की विवेचना की जाएँ तो अप्रवासन की समस्या यूरोप के लिए संकट का कारण बनती जा रही है और ब्रिटेन इससे सतर्क रहा है। यूरोपीय यूनियन के देश आर्थिक समझौते के साथ सांस्कृतिक एकता भी चाहते रहे है लेकिन तुर्की के प्रभाव से मुस्लिम अप्रवासन बढ़ने को बड़ा संकट माना गया। इसके साथ ही अरब से अफ्रीका के गृहयुद्द से पनपे संकट में शरणार्थियों के लिए जर्मनी ने उदारता से अपने द्वार खोले। जर्मनी भी यूरोपीय यूनियन का सबसे बड़ा और प्रभावी देश माना जाता है अत: इसका प्रभाव अन्य देशों पर पड़ा और ब्रिटेन के समाज को अप्रवासन उनके देश के लिए सांस्कृतिक संकट महसूस हुआ। यही नही मुक्त आवाजाही के कारण यूरोप के अन्य देशों के नागरिक ब्रिटेन में आकर रोजगार तलाशने लगे और स्थानीय लोगों में प्रवासियों के प्रति असंतोष उत्पन्न हुआ। मुक्त व्यापार के साथ मुक्त आवाजाही को यहां का समाज अपनी स्वतंत्रता के विरुद्द मानने लगा था।

 

बहरहाल ब्रिटेन,यूरोपीय यूनियन से अलग होकर भी जब अवैध अप्रवासन से मुक्ति नहीं पा सका तो अब उसने कड़े नियमों का दांव खेला है। ब्रिटेन का यह कदम यूरोप के दूसरे देशों को भी कड़े कानून बनाने को प्रेरित करेगा। ऐसे में दुनिया में नये संघर्ष की आशंका बढ़ सकती है। विकसित देशों का पिछड़े और विकासशील देशों  की समस्याओं के प्रति कड़ा रुख अपनाने से हिंसा का भयावह दौर शुरू हो सकता है और यह विश्व शांति के लिए चुनौती बन सकता है।

 

#ब्रह्मदीप अलूने

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