जनसत्ता
कूटनीति एक गतिशील और बहुआयामी प्रक्रिया है। तालिबान प्रशासित अफगानिस्तान में भारत के तकनीकी मिशन को दूतावास में बदलने के निर्णय से यह स्पष्ट हो गया है की बदलते वैश्विक परिदृश्य में कूटनीति अपेक्षाकृत ज्यादा व्यावहारिक और यथार्थवादी हो गई है और भारत ने भी इसे स्वीकार कर लिया है। अफ़ग़ानिस्तान दक्षिण एशिया,मध्य एशिया और पश्चिमी एशिया को जोड़ने वाला एक महत्वपूर्ण सेतु है। इसी कारण यह क्षेत्रीय संपर्क,व्यापार मार्गों और सामरिक संतुलन में विशेष भूमिका निभाता है। अफगानिस्तान के इसी महत्व को दृष्टिगत रखते हुए भारत उस तक अपनी पहुंच सुनिश्चित करना चाहता है। 2021 में तालिबान की सत्ता में वापसी को पाकिस्तान की लिए बेहतर स्थिति माना गया था लेकिन भारत ने राजनीतिक दूरदर्शिता दिखाते हुए तालिबान से सीमित संवाद बनाएं रखा तथा पूर्व की तरह ही अफगानिस्तान को मानवीय सहायता देना भी जारी रखी। इसके बेहतर परिणाम अब सामने आ रहे है। तालिबान और भारत के बीच बढ़ते राजनयिक सम्बन्धों तथा अफगानिस्तान और पाकिस्तान की सेना के बीच डूरंड रेखा पर हुए भीषण संघर्ष को शक्ति संतुलन की दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इसे भारत के लिए रणनीतिक बढ़त तथा पाकिस्तान के लिए रणनीतिक चुनौती की तरह देखा जा रहा है।
भारत और अफगानिस्तान के आपसी संबंध ऐतिहासिक,सांस्कृतिक और रणनीतिक रूप से बेहद घनिष्ठ रहे हैं। अफगानिस्तान की राजनीति में भारत की भूमिका शांति,पुनर्निर्माण और स्थायित्व को केंद्र में रखकर रही है। अफगानिस्तान की राजनीति और पुनर्निर्माण में सक्रिय और रचनात्मक भूमिका को इस देश की जनता भी सराहती रही है। भारत ने अफगानिस्तान में कई विकास परियोजनाएं चलाई हैं,जिनमें संसद भवन,सलमा बांध और ज़रांज-दिलाराम हाईवे प्रमुख हैं। ये परियोजनाएं अफगान जनता के बीच भारत की सकारात्मक छवि बनाती हैं और भारत की सॉफ्ट पावर को बढ़ावा देती हैं। भारत का तालिबान के साथ संबंध कभी भी सीधे और स्पष्ट नहीं रहा लेकिन वर्तमान में यह संबंध राजनयिक संतुलन,सुरक्षा चिंताओं और रणनीतिक दूरदर्शिता पर आधारित है। यह माना जाता है की अफगानिस्तान में मजबूत रहने वाला देश मध्य एशिया से दक्षिण एशिया तक के व्यापार मार्गों पर प्रभाव डाल सकता है। यह क्षेत्र भारत-मध्य एशिया संपर्क योजनाओं के लिए भी अहम है। अफगानिस्तान की स्थिरता भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा हितों से जुड़ी है। भारत को आशंका रही है कि यदि अफगानिस्तान अस्थिर रहता है तो पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकी संगठन वहां से भारत विरोधी गतिविधियां संचालित कर सकते हैं। तालिबान से बेहतर संबंधों के रहते भारत की सुरक्षा चिंताएं कम हो सकती है ।
अफगानिस्तान भारत के लिए एक रणनीतिक साझेदार,सुरक्षा चुनौती और संपर्क मार्ग तीनों भूमिकाओं में महत्वपूर्ण है। दक्षिण और पूर्व में,अफ़ग़ानिस्तान की सीमा पाकिस्तान से लगती है। पश्चिम में ईरान से और इसकी उत्तरी सीमा मध्य एशियाई देशों तुर्कमेनिस्तान,उज़्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान से लगती है। सुदूर उत्तर-पूर्व में,अफगानिस्तान चीन से सीमा साझा करता है। तुर्कमेनिस्तान और ईरान दोनों की सीमाएं अफगानिस्तान से लगती हैं और ये अजरबैजान की सीमा के भी करीब हैं। भारत की सामरिक सुरक्षा के लिए पाकिस्तान.चीन और अजरबैजान की चुनौतियां बढ़ी है,ऐसे में इन देशों पर रणनीतिक बढ़त लेने के लिए भारत का अफगानिस्तान में मजबूत होना बेहद आवश्यक है। अफगानिस्तान के एक और पड़ोसी देश ताजिकिस्तान तथा भारत के बीच राजनयिक,आर्थिक और रणनीतिक संबंध हैं,जिसमें भारत ने फरखोर में अपना पहला विदेशी सैन्य अड्डा स्थापित किया है। फरखोर एयरबेस ताजिकिस्तान के फ़रखोर शहर के पास स्थित एक सैन्य हवाई अड्डा है जिसका संचालन भारत और ताजिकिस्तान की वायु सेनाएं संयुक्त रूप से करती हैं। यह पाकिस्तान और चीन के करीब है इसलिए इसे यह सामरिक रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है।









Leave feedback about this