भारत विरोध पर मुहर
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भारत विरोध पर मुहर

राष्ट्रीय सहारा

हिन्द महासागर में शक्ति संतुलन बनाएं रखने के लिए बीजिंग और नई दिल्ली दोनों मालदीव को अपने प्रभाव क्षेत्र में रखने के लिए कृतसंकल्पित रहे है। इसका असर मालदीव की घरेलू राजनीति पर भी देखने को मिल रहा है। भारतीय उपमहाद्वीप के दक्षिण पश्चिम में स्थित इस द्वीपीय देश में मुइज्जू के राजनीतिक उभार से भारत की समस्याएं बढ़ रही है। दरअसल मुइज्जू भारत की मालदीव में उपस्थिति को अनियंत्रित बताकर देश की सत्ता के शीर्ष पर आये है और वे भारत विरोध की नीति के सहारे देश की संसद में पूर्ण बहुमत हासिल करने में कामयाब हो गए है। मालदीव पर भारत का बड़ा प्रभाव रहा है और उसे हटाना मुइज्जू के लिए आसान नहीं था। खासकर देश की विपक्षी पार्टियां मुइज्जू की भारत विरोध की नीतियों को आड़े हाथों लेती रही है। लेकिन अब मुइज्जू ने जिस प्रकार देश की संसद में बम्पर बहुमत हासिल किया है उससे लगता है की उनके भारत विरोध और चीन परस्त नीतियों को जनता ने पसंद किया है। ऐसे में यह विचार लाजिमी है की आखिर मालदीव की जनता भारत जैसे विश्वसनीय मित्र के खिलाफ जाकर चीन की कुटिल कर्जनीति में क्यों उलझना चाहती है और इसके दूरगामी परिणाम भारत के लिए कितने चुनौतीपूर्ण हो सकते है। 

जनसंख्या की लिहाज से बहुत छोटे इस इस्लामिक बाहुल्य देश में पिछले कुछ वर्षों में परम्परावाद को उभारने की कोशिशें राजनीतिक फायदा देने वाली साबित हुई है। खाड़ी देशों में रोजगार के लिए जाने वाले मालदीव के हजारों नागरिकों की कथित धार्मिक अभिव्यक्ति को मुइज्जू ने वोट में बदलने में कामयाबी हासिल कर ली है। उन्होंने भारत से ऐतिहासिक जुडाव को नजरअंदाज कर बदलती परिस्थितियों में तुर्की,पाकिस्तान और सऊदी अरब की ओर रुख किया। इन देशों से संबंधों को मजबूत किया। फिलिस्तीन जैसे भावनात्मक मुद्दों को धार्मिक आधार पर उठाया तथा इस्लामिक आदर्शवाद पर आधारित नए मालदीव की परिकल्पना को राजनीतिक आधार पर जनता के सामने रखा। इन सबके बीच मुइज्जू की सबसे बड़ी चुनौती भारत समर्थक दलों की लोकप्रियता को सीमित करना था और इसलिए उन्होंने चीन की सहायता नीति को खुले मन से अपना लिया।

मुइज्जू ने देश संसद में संविधान में संशोधन के लिए आवश्यक दो तिहाई बहुमत हासिल कर लिया है। इसका अर्थ यह है कि वे राजनीतिक संस्थागत दृष्टिकोण से,सब कुछ नियंत्रित कर सकते है खासकर न्यायपालिका की शक्तियां भी प्रभावित हो सकती है। मुइज्जू भारत विरोध और चीन समर्थक नीति को आगे बढ़ाने के प्रति प्रतिबद्धता दिखाते रहे है। मालदीव में राजनीतिक उथल पुथल का इतिहास रहा है। भारत समर्थक राजनीतिक दलों पर अंकुश लगाने के लिए मुइज्जू प्रमुख नेताओं को जेल में डाल सकते है। विपक्षी दलों पर जनता का कम होता विश्वास मुइज्जू की निरंकुशता को बढ़ा सकता है। मीडिया पर नियन्त्रण बढ़ाया जा सकता है।  मुइज्जू ने सत्ता में आने के बाद चीन से मजबूत रिश्तों को तरजीह दी। वे अब तक नई दिल्ली नहीं आये है लेकिन उन्होंने बीजिंग की राजकीय यात्रा पर  जाकर निवेश के लिए कई समझौतों पर हस्ताक्षर कर चूके है। चीन के साथ गैर घातक हथियारों को मुफ्त में देने के साथ साथ मालदीव के सुरक्षा बलों को प्रशिक्षित करने के लिए एक सैन्य सहायता समझौते पर हस्ताक्षर किए गए है। भारत और अमेरिका ने पहले मालदीव की सेना को प्रशिक्षित किया था।

 

 भारत मालदीव को हिंद महासागर क्षेत्र में एक प्रमुख समुद्री भागीदार के रूप में मान्यता देता है। यह द्वीपीय राष्ट्र भौगोलिक दृष्टि से भारत और कुछ प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्रों पर नज़र रखता है। भारत ने हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि मालदीव व्यापार,पर्यटन और शिपिंग के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है।  मालदीव रणनीतिक रूप से लक्षद्वीप द्वीपसमूह से केवल  सात सौ किलोमीटर और भारतीय मुख्य भूमि से बारह सौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मालदीव में चीन का बढ़ता प्रभाव भारत से इसकी निकटता को देखते हुए महत्वपूर्ण सुरक्षा चिंताओं को जन्म देता है। हिंद महासागर क्षेत्र में चीन ने तेजी से सैन्य आधुनिकीकरण किया है इससे भारत की सामरिक और आर्थिक क्षमताओं  के सामने चुनौतियां बढ़ गई है। हिंद महासागर में बीजिंग के बढ़ते प्रभाव और उसकी महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड पहल  में मुइज्जू की दिलचस्पी कम नहीं है। 2023 में मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के चुनाव के बाद से,क्षेत्र में देश के रिश्ते बदल गए हैं। मालदीव ने चीन के साथ रक्षा समझौतों और बुनियादी ढांचे के सौदों पर हस्ताक्षर किए हैं। चीन के समुद्री अनुसंधान जहाज,जियांग यांग होंग को मालदीव के बंदरगाह पर डॉक करने की अनुमति देने से चीन का प्रभाव और भी पुष्ट होता है। जनवरी में जब मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू ने चीन का दौरा किया था,इसके  चौबीस घंटे के बाद चीन के इस जहाज़ ने अपनी यात्रा की शुरुआत की थी। संभवतः मुइज्जू इसके जरिए भारत को यह संदेश भी दे देना चाहते थे की वे चीन से रिश्तों को लेकर कोई समझौतावादी रुख नहीं अपनाएंगे। बारह सौ द्वीपों की श्रृंखला से बने मालदीव के अधिकांश द्वीप निर्जन हैं। मालदीव लंबे समय से भारत के प्रभाव क्षेत्र में रहा है। वहां अपनी मौजूदगी बनाए रखने से दिल्ली को हिंद महासागर के एक प्रमुख हिस्से पर नजर रखने की क्षमता मिलती है। मुइज्जू को देश में चीन के हितों के समर्थक के रूप में देखा जाता है। भारत और चीन दोनों रणनीतिक रूप से स्थित द्वीपों में अपनी उपस्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं जो व्यस्त पूर्व पश्चिम शिपिंग लेन में फैले हुए हैं। चीन,अपनी तेजी से बढ़ती नौसेना के साथ,रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण स्थान तक पहुंच तथा भारत को रोकना चाहता है। दिल्ली और बीजिंग दोनों ने मालदीव को बुनियादी ढांचे और विकास परियोजनाओं के लिए ऋण और अनुदान के रूप में करोड़ों डॉलर दिए हैं।

 

मोहम्मद मुइज़्ज़ू अब चीन पर निर्भरता बढ़ा रहे है और यह भारत के लिए चुनौतीपूर्ण बन रहा है। भारत को हिन्द महासागर के अहम साझेदार मालदीव के साथ राजनीतिक गतिरोध को दूर करने की कोशिशें करते रहना होगी तथा आर्थिक सहयोग और सुरक्षा सहयोग पर ध्यान केंद्रित करने को प्राथमिकता देनी  होगी। इसके साथ ही जापान,संयुक्त राज्य अमेरिका,ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों जैसे प्रमुख सुरक्षा भागीदारों के साथ रक्षा सहयोग को मजबूत करना होगा,जिससे चीन को इस क्षेत्र में निर्णायक रणनीतिक बढ़त लेने से रोका जा सके। चीन मालदीव जैसे छोटे से देश की भारत पर सैन्य निर्भरता कम करने की लिए उसकी सैन्य क्षमताओं का विकास कर रहा है,इससे मालदीव की सेना मजबूत होगी और इसके राजनीतिक दुरूपयोग की आशंकाएं भी बढ़ सकती है।
मुइज्जू चीन के उस सामरिक चक्रव्यूह को रचने में मददगार बन रहे है जिसके अनुसार चीन मालदीव में नौसैनिक अड्डा बनाकर समुद्री सीमा पर भारत को रणनीतिक रूप से घेर ले जिससे हिमालय की सीमा पर भारत पर सैन्य दबाव बढ़ सके।

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