राष्ट्रीय सहारा,हस्तक्षेप
भारत के सामने अपनी वैश्विक साख कायम करने की चुनौती
हिन्द महासागर में बसा करीब बारह सौ द्वीपों वाले देश मालद्वीप की 98 फीसदी आबादी सुन्नी है और इस्लामिक राष्ट्रवाद यहां की राजनीति पर पूरी तरह से हावी हो चूका है। राजधानी माले में बहुत कम विदेशी दूतावास है लेकिन पाकिस्तान,सऊदी अरब और युएई की मौजूदगी का असर यहां के लोगों पर खूब दिखाई पड़ने लगा है। देश के वर्तमान प्रधानमंत्री मुइज्जू का इंडिया आउट का चुनावी नारा,महज चुनाव जीतने का प्रपोगंडा नहीं था बल्कि इसके पीछे चीन,पाक और तुर्की का एशिया प्रशांत क्षेत्र में भारत की सामरिक स्थिति कमजोर करना और राजनीतिक रूप से निर्णायक बढ़त लेने की कोशिशें शामिल थी। मालदीव की भू राजनैतिक स्थिति उसे भारत और चीन के प्रभावों से अलग नहीं कर सकती लेकिन देश के राजनीतिक दलों के हित ऐसा करने की कोशिशें करते रहे है। यहीं कारण है की मालदीव में कभी भारत समर्थक सरकार होती है तो कभी चीन समर्थक सरकार।
अन्तराष्ट्रीय राजनीति में यथार्थवादी दृष्टि के सीमित,आंशिक और अपूर्ण होने की संभावना बनी रहती है। तेजी से बदलते वैश्विक परिदृश्य में विवेकपूर्ण वैदेशिक नीति राष्ट्रहित को तरजीह देती है और नैतिकता जैसे प्रश्नों को आसानी से पीछे छोड़ दिया जाता है। हिन्द महासागर में बसे द्वीपीय देश मालद्वीप की मुइज्जू सरकार का भारत को लेकर नजरिया बेहद यथार्थवादी रहा है जो घरेलू राजनीति से प्रेरित और चीन से आर्थिक लाभ हासिल करने की ओर नजर आता है। दुनियाभर की कई राजनीतिक सत्ताएं नागरिकों में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए राज्य को एक अस्त्र के रूप में उपयोग कर रही है,जहां धर्म और जातीय श्रेष्ठता को राष्ट्रवाद से जोड़कर उन्माद पैदा किया जा रहा है। राज्य सत्ता का ताकतवर माध्यम बन गया है और व्यक्ति को एक राजनीतिक साधन बना दिया गया है। मुइज्जू भारत विरोध की नीति पर चलकर सत्ता के शीर्ष पर पहुंचे और अब वे इसी नीति को लेकर आगे भी चलना चाहते है। मालद्वीप के कुछ मंत्रियों की भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बयानबाज़ी के बीच वे चीन पहुंच गए और उन्होंने चीन को अपने देश का सबसे अहम साझेदार बताने से गुरेज नहीं किया। उन्होंने यह भी कहा कि उनका प्रशासन चीन के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है और उन्होंने इसे दोनों देशों के बीच गहरे वाणिज्यिक संबंधों का प्रतीक बताया।
एशिया प्रशांत क्षेत्र में भारत की रणनीतिक स्थिति बेहद महत्वपूर्ण है और भारत की आंतरिक और वैदेशिक नीति पर दुनिया की नजरें बनी रहती है। इन सबके बीच भारत के लिए हिन्द महासागर में चुनौतियां बढ़ती जा रही है और उसे अपनी सामरिक सुरक्षा को मजबूत बनाएं रखने के लिए नए विकल्प तलाशने पड़ रहे है। पर्यावर्णीय चुनौतियों से अक्सर जूझने वाले देश मालद्वीप को सुरक्षित रखने में भारत के योगदान को दरकिनार कर प्रधानमंत्री मुइज्जू ने अपनी पहली विदेश यात्रा तुर्की की। मुइज्जू का यह कदम बेहद अविश्वनीय था और इसके दूरगामी परिणाम दक्षिण एशिया की राजनीति को प्रभावित कर सकते है। दरअसल मालद्वीप मुस्लिम बाहुल्य देश है और यहां पर अप्रत्याशित रूप से कट्टरता और चरमपंथ में अभूतपूर्व वृद्धि आई है। मालद्वीप दक्षिण एशिया का सबसे छोटा देश है लेकिन आईएस में शामिल होने वाले लड़ाकों में बड़ी संख्या मालद्वीप की रही है। तुर्की के राष्ट्रपति आर्दोआन मुस्लिम दुनिया में अपना रुतबा बढ़ाने के लिए आक्रामकता को लगातार बढ़ावा दे रहे है और इससे दुनिया के कई क्षेत्रों में अशांति बढ़ी है। यूरोप का एक आधुनिक देश तुर्की अपने शीर्ष नेता आर्दोआन की इस्लामिक राष्ट्रवाद की नीतियों से आर्थिक जंजाल में बूरी तरीके से फंस गया है। आर्दोआन ने देश की सत्ता में बने रहने के लिए इस्लाम को राष्ट्रवाद से जोड़कर इसे लोकलुभावन बनाने की कोशिश की और यहीं से इस देश में वैचारिक कट्टरता को बढ़ावा मिलने लगा। मालदीव भी उसी रास्ते पर चल पड़ा है तथा उसे राजनीतिक रूप से इसमें मदद भी मिल रही है। 21 जून 2022 को मालदीव के माले में गुस्साई चरमपंथी भीड़ ने योग दिवस समारोह में बाधा डाली थी। इस हिंसा में स्थानीय इस्लामिक विद्वान और प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव के शामिल होने के प्रमाण मिले। यह अप्रिय प्रकरण चरमपंथी चुनौतियों और खतरों की ओर इशारा करता है जिनका मालदीव लगातार समर्थन कर रहा है।
मुइज्जू,अब्दुल गयूम और नशीद के समर्थक माने जाते है जिनके शासन के दौरान,मालदीव के छात्रों को शिक्षा अर्जित करने सऊदी अरब और पाकिस्तान भेजा गया। जब वे वापस लौटे तो सऊदी वहाबी प्रभाव द्वीपसमूह में फैल गया। 2004 की सुनामी को धार्मिक तौर पर जोड़कर सऊदी प्रायोजित इमामों ने देश को कट्टरता के जंजाल में उलझाने का अवसर बना लिया। स्थानीय राजनीतिक दलों और राजनेताओं द्वारा इस्लाम को बढ़ावा देने के साथ मिलकर इन बाहरी प्रभावों ने मालदीव के समाज में गहरी दरारें पैदा कर दी हैं और चरमपंथी विचारधारा और गतिविधि के विकास को बढ़ावा दिया है। मालदीव में आईएस का दबदबा कायम है और उसके लड़ाके सीरिया से लेकर अल्बानिया तक जा रहे है।
तुर्की ने मालदीव के हुलहुमाले द्वीप पर एक इस्लामिक केंद्र बनाने का वादा किया है। मालदीव,समुद्र के बढ़ते स्तर से उत्पन्न खतरे की प्रतिक्रिया के रूप में समुद्र तल से रेत पंप करके कृत्रिम द्वीप का निर्माण कर रहा है। मालदीव अरब खाड़ी राज्यों और शेष मध्य पूर्व के पर्यटकों के लिए एक अनुकूल गंतव्य है,जहां संयुक्त अरब अमीरात,सऊदी अरब एयरलाइंस,कतर एयरवेज और तुर्की एयरलाइंस से अमीरात और एतिहाद एयरवेज द्वारा द्वीपसमूह के मुख्य हवाई अड्डे के लिए नियमित सेवा प्रदान की जाती है। राष्ट्रपति गयूम ने 1997 में,सुन्नी इस्लाम को छोड़कर देश में सभी धर्मों को गैरकानूनी घोषित करते हुए एक नया संविधान तैयार किया था। इसी का प्रभाव है की देश में अदालथ पार्टी जैसे चरमपंथी राजनीतिक दल और जमियथु सलाफ,इस्लामिक फाउंडेशन ऑफ मालदीव जैसे चरमपंथी संगठन चरमपंथी नीतियों और विचारों को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों के साथ काम करते हैं या पैरवी करते हैं।
शक्ति संतुलन को लेकर कोई भी स्पष्ट विचार नहीं हो सकता क्योंकि प्रत्येक राष्ट्र केवल ऐसे संतुलन में विश्वास रखता है जो उसके पक्ष में हो और यहीं से दूसरे पक्ष में असंतुलन स्थापित हो जाता है। पाकिस्तानी सेना की तरफ़ से घोषणा की गई कि पाकिस्तानी युद्धपोत मालदीव के एक्सक्लूसिव इकनॉमिक ज़ोन की देखरेख करेंगे। चीन ने चेतावनी दी कि मालदीव के आंतरिक मामले में किसी भी देश को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए और अंतरराष्ट्रीय समुदाय इसमें रचनात्मक भूमिका अदा करे।
मालदीव भारत के बिल्कुल पास में है और वहां तुर्की,पाकिस्तान और चीन की मजबूत स्थिति भारत का सामरिक संकट बढ़ाने वाली है। मालदीव चीन और पाकिस्तान की महत्वाकांक्षी योजना वन बेल्ट वन रोड का भी खुलकर समर्थन कर रहा है। अगर भारत मालदीव में अपनी खोई साख वापस करने में नाकाम रहता है तो दक्षिण एशिया के बाक़ी छोटे देशों में भी चीन का प्रभाव बढ़ेगा।
हिन्द महासागर और दक्षिण एशिया में भारत की रणनीतिक स्थिति महाशक्तियों को भारत की महत्ता समझने और उसे सहयोगी बनाने को मजबूर करती रही है। ऐसे में भारत को इस क्षेत्र में मजबूत बने रहना होगा। मालदीव,श्रीलंका,बांग्लादेश,भूटान,म्यांमार जैसे देशों में चीन के प्रभाव को कम करने और भारत की भूमिका को बढ़ाकर ही भारत की साख कायम रह सकती है। इसके लिए यह आवश्यक है की भारत के इन देशों के सभी राजनीतिक दलों से समान सम्बन्ध हो। किसी देश में सत्ता बदलने से राष्ट्रीय नीतियों और राष्ट्रीय हितों को चोट न पहुंचे,यह भारत की लोकतान्त्रिक नीतियों का अहम अंग रहा है। विशेषकर अंतराष्ट्रीय सम्बन्धों को लेकर भारत ने लगातार इसका परिचय भी दिया है। इस दिशा में पुन: आगे बढने की जरूरत है।
डॉ.ब्रह्मदीप अलूने
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मालद्वीप-सामरिक घेरेबंदी की कोशिश,राष्ट्रीय सहारा
- by brahmadeep alune
- January 14, 2024
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