म्यांमार के सामरिक संकेत
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म्यांमार के सामरिक संकेत

जनसत्ता

 

भारत के पड़ोसी देशों के बंदरगाहों में चीन का निवेश हिंद महासागर के क्षेत्र में समुद्री ऊर्जा के रास्तों पर नियंत्रण करने और दक्षिण एशिया के देशों में बंदरगाहों को विकसित करके अपनी ताक़त का विस्तार करने की उसकी योजना का एक हिस्सा है। चीन के नौसैनिक,उन समुद्री ठिकानों पर अन्य देशों के नौसैनिकों को प्रशिक्षण दे रहे हैं,जहां पर चीन की नौसेना ने हाल ही में अड्डे बनाए हैं। इनमें बांग्लादेश,श्रीलंका,मालद्वीप और पाकिस्तान शामिल है।  वहीं म्यांमार के साथ चीन के बढ़ते सामरिक संबंध भारत की चिंता बढ़ाने वाले है।   म्यांमार के कोको द्वीप में सामने आ रही असमान्य सैन्य गतिविधियों से चीन और भारतीय नौसेना के हितों के साथ टकराव होने की संभावना बढ़ गई है।

दरअसल चीन की  वन बेल्ट रोड़  परियोजना का उद्देश्य दक्षिण पूर्व एशिया,मध्य एशिया,  खाड़ी देश,अफ्रीका और यूरोप के देशों को सड़क और समुद्री रास्ते से जोड़ना है। चीन के लिए आर्थिक और सामरिक दृष्टि से अतिमहत्वपूर्ण इस परियोजना के लिए भौगोलिक रूप से म्यांमार काफ़ी अहम है। म्यांमार ऐसी जगह पर स्थित है जो दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के बीच है। यह चारों ओर से ज़मीन से घिरे चीन के युन्नान प्रांत और हिंद महासागर के बीच पड़ता है। चीन-म्यांमार इकनॉमिक कॉरिडोर भी चीन की वृहत योजना का अहम हिस्सा है,वहीं भारत के लिए यह बेहद सामरिक रूप से बेहद चुनौतीपूर्ण है। चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारा अंग्रेज़ी के Y अक्षर के आकार का एक कॉरिडोर है।  इसके तहत चीन विभिन्न परियोजनाओं के माध्यम से हिंद महासागर तक पहुंचकर म्यांमार के साथ आर्थिक सहयोग बढ़ाना चाहता है।  2019 से 2030 तक चलने वाले इस आर्थिक सहयोग के तहत दोनों देशों की सरकारों मे आधारभूत संरचना,उत्पादन,कृषि,यातायात,वित्त,मानव संसाधन विकास,शोध, तकनीक और दूरसंचार जैसे कई क्षेत्रों में कई सारी परियोजनाओं को लेकर सहयोग करने पर सहमति बन चूकी है। इसके तहत चीन के युन्नान प्रांत की राजधानी कुनमिंग से म्यांमार के दो मुख्य आर्थिक केंद्रों को जोड़ने के लिए लगभग  सत्रह सौ किलोमीटर लंबा कॉरिडोर बनाया जाना है।  चीन ने म्यांमार को यह भरोसा दिलाया है कि इस परियोजना के कारण  वह दक्षिणपूर्व एशिया और दक्षिण एशिया के बीच कारोबार का केंद्र बन जाएगा तथा इससे  म्यांमार की कायापलट हो जाएगी।

भारत दक्षिण पूर्वी देशों के साथ आर्थिक और कारोबारी सहयोग बढ़ाना चाहता है तो उसका रास्ता म्यांमार से होकर ही जाता है। मगर भारत की लुक ईस्ट या एक्ट ईस्ट की नीतियों के बावजूद म्यांमार में चीन का प्रभाव लगातार बढ़ा है। चीन अल्पविकसित और गरीब देशों को आर्थिक फायदों के सपने दिखाकर उनके संसाधनों पर कब्जा कर लेता है और इससे सामरिक समस्या भी बढ़ जाती है।

म्यांमार में स्थित कोकोद्वीप बंगाल की खाड़ी में स्थित कुछ छोटे द्वीपों का समूह है। यह बंगाल की खाड़ी और अंडमान सागर की सीमा पर हैं और भारत के अंडमान व निकोबार द्वीपसमूह से ठीक उत्तर में हैं। भारत के सामरिक,आर्थिक,रणनीतिक और व्यापक राजनीतिक हित द्वीपों की सुरक्षा से जुड़े है और इसमें  अंडमान और निकोबार द्वीप समूह को बेहद खास माना जाता है। बंगाल की खाड़ी के दक्षिण में हिन्द महासागर में स्थित अंडमान और निकोबार द्वीप समूह भारत की मुख्य भूमि से बारह सौ किलोमीटर दूर स्थित है। इस द्वीप समूह का सबसे दक्षिणी हिस्सा इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप से मात्र  डेढ़ सौ किलोमीटर दूर है। इसी तरह इसका सबसे उत्तरी हिस्सा म्यांमार  के नियंत्रण वाले कोको द्वीप से महज पचास किलोमीटर की दूरी पर है। अंडमान के प्राकृतिक बंदरगाह जहाज़ों और पनडुब्बियों के अनुकूल माने जाते हैं।

अंडमान निकोबार की सामरिक स्थिति का महत्व पहली बार 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय दिखा था,जब भारतीय नौसेना ने इसका इस्तेमाल तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के जहाज़ों और नौसैनिक ठिकानों को ध्वस्त करने में किया था। उसके बाद के वर्षों में यहां नौसेना और वायुसेना के अड्डों को और मज़बूत बनाया गया।  म्यांमार भारत की सुरक्षा चिंताओं से भली भांति वाकिफ है लेकिन इसके बाद भी कोको द्वीप में उसकी बढ़ती हुई गतिविधियां भारत को समुद्र में सुरक्षा को आशंकित करने वाली है। ऐसा माना जा रहा है कि म्यांमार के कोको द्वीप पर इलेक्ट्रॉनिक जासूसी की क्षमताएं मज़बूत की जा रही है। इससे इस संदेह को बल मिला है कि  भले ही कोको द्वीप पर म्यांमार का नियंत्रण हो,लेकिन यहां पर अत्याधुनिक सुविधाओं का विकास चीन की सहायता के बिना संभव ही नहीं है। जिस भी देश में लोकतंत्र नहीं होता उससे चीन के अधिनायकवादी शासन व्यवस्था के मजबूत संबंध होने की संभावना बेहतर होती है। म्यांमार में सैन्य शासन है और अंतराष्ट्रीय प्रतिबंधों से जूझते इस देश का खास मददगार चीन ही है।

म्यांमार की सैन्य सत्ता को हथियार,जासूसी विमान और समुद्री सुरक्षा समेत अन्य मदद चीन देता रहा है। ग्रेटर कोको द्वीप,अराकान तट के पास रैमरी द्वीप,,रंगून के मंकी प्वाइंट और क्रे प्रायद्वीप के पास स्थित ज़डेटक्यी क्यून द्वीप पर आधारभूत ढांचा बनाने में चीन की कंपनियां भागीदार है। करीब ढाई दशकों से म्यांमार की इरावदी नदी पर चीन की सेनाओं का बड़ा अड्डा मौजूद है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर म्यांमार के अलग थलग पड़ने के कारण चीन के साथ म्यांमार के बड़े मज़बूत संबंध है और इसके दूरगामी परिणाम भारत के सामरिक  संकट को बढ़ाने वाले है।

म्यांमार के  ग्रेट कोको द्वीप के सबसे दक्षिणी सिरे पर एक अतिरिक्त रनवे का निर्माण किया जा रहा  है,इसके साथ ही विमानों के खड़े होने के लिए हैंगर के निर्माण जैसी नई सुविधाएं तैयार की जा रही हैं। द्वीप पर रडार स्टेशन और ऊंची इमारतों का निर्माण म्यांमार की  तात्कालिक जरूरतें बिलकुल नहीं लगती लेकिन हिन्द महासागर में इसका बड़ा फायदा चीन को मिल सकता है। चीन इसकी मदद से अंडमान और निकोबार द्वीप समूह से हो रहे संचार की निगरानी कर सकेगा। इसके अलावा वो भारतीय सेना की निगरानी वाली उड़ानों और नौसेना के तैनाती के चलन का भी पता लगा सकेगा। म्यांमार के साथ  मिलकर कोको द्वीप पर चीन द्वारा अंडमान निकोबार में भारत के सैनिक अड्डे के बेहद क़रीब जासूसी का अड्डा बनाना भारत के इसलिए भी बड़ी चुनौती है क्योंकि अंडमान निकोबार द्वीप समूह पर एकीकृत कमान के तहत भारत की तीनों सेनाओं के साझा अड्डे हैं।


पिछले कुछ वर्षों में भारत ने अंडमान और निकोबार में कई सैन्य अभ्यास किए है। इस वर्ष  अंडमान और निकोबार कमांड ने थल सेना,नौसेना,वायु सेना और तटरक्षक बलों की संपदाओं को शामिल करते हुए बड़े स्तर पर एक संयुक्त सैन्य अभ्यास एक्स कवच का आयोजन किया गया। इस अभ्यास का उद्देश्य संयुक्त युद्ध क्षमताओं और मानक संचालन प्रक्रियाओं को ठीक करना और सेनाओं के बीच अंतर परिचालन और संचालन तालमेल को बढ़ाना था।   2020 में जब गलवान घाटी में जब चीन और भारत के बीच सैन्य तनाव चरम पर था,उस समय भारतीय नौसेना ने अमरीकी नौसेना के समूह के साथ मिलकर अंडमान निकोबार द्वीप समूह के पास सैन्य अभ्यास किया था।   इसमें युद्धपोतों के एक बेड़े ने यूएसएस निमित्ज़ की अगुवाई में अभ्यास किया था। यूएसएस निमित्ज़ दुनिया के सबसे बड़े युद्धपोतों में से एक है. यह युद्धपोत परमाणु क्षमता से लैस होता है।

यहां यह जानना बेहद जरूरी है कि कोको द्वीप में उच्च स्तर के इलेक्ट्रॉनिक जासूसी उपकरण स्थापित करने से अंडमान निकोबार द्वीप समूह पर स्थित भारत की तीनों सेनाओं के अड्डे के लिए चुनौतियां पैदा होंगी।  भारत को अंडमान निकोबार द्वीप समूह पर स्थित अपनी मौजूदा क्षमताओं की पर्याप्तता की समीक्षा करनी होगी और ऐसे उपाय करने होंगे,जो चीन की सेना के ख़िलाफ़ उसकी क्षमताओं को बढ़ा सकें।

म्यांमार आसियान का एकमात्र सदस्य देश है जिससे भारत की समुद्री और भू भागीय दोनों सीमा मिलती है। भारत की पूर्व की और देखों नीति अपनाने से म्यांमार का महत्व ज्यादा बढ़ गया है। चीन म्यांमार में एक सैन्य सरकार चाहता है जिससे वह अपने आर्थिक और सामरिक हितों को बिना किसी दबाव के पूरा कर सके। भारत के लिए म्यांमार की अस्थिरता बहुत चुनौतीपूर्ण है।  भारत और म्यांमार के बीच करीब सोलह सौ चालीस किलोमीटर की सीमा है और इसकी जद में पूर्वोत्तर का बड़ा क्षेत्र आता है। इस सीमा पर ऐसे कई कबाइली समूह हैं जो कि अलगाववादी हैं और वे पूर्वोत्तर में सुरक्षा संकट बढ़ाते रहते है। इनमें से कुछ गुटों को चीन का समर्थन भी हासिल है। भारत म्यांमार में लोकतंत्र की स्थापना तो चाहता है लेकिन वहां की सैन्य सरकार से सम्बन्ध खराब नहीं किए जा सकते।

म्यांमार की  भौगोलिक स्थिति भारत की सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। म्यांमार भारत की पूर्व की ओर देखो विदेश नीति का प्रवेश द्वार है। भारत 1992 से अपनी पूर्व की ओर देखों नीति के अनुसार मणिपुर-म्यांमार –थाईलैंड राजमार्ग का निर्माण करने को कृतसंकल्पित है। इसके अंतर्गत भारत के मोरे से लेकर थाईलैंड के माई सोट तक राजमार्ग बनाया जाएगा तथा इसके जरिए म्यांमार होते हुए भारत से थाईलैंड का सफर सड़क मार्ग से किया जा सकेगा। दोनों देशों के बीच 16 किलोमीटर के क्षेत्र में मुक्त आवागमन का प्रावधान है,सरहदी हॉट खुलने से व्यापार व्यवसाय में तेजी आने की उम्मीद बढ़ी है। यहीं नहीं दोनों देशों के साझा सैन्य अभियानों से पूर्वोत्तर के चीन-पाक-बंगलादेश समर्थित आतंकवाद पर गहरी चोट होती रही है। भारतीय सेना द्वारा 1995 का गोल्डन बर्ड ऑपरेशन के कारण आतंकवादियों का सफाया हो या साल 2015 में म्यांमार की सीमा में घुसकर आतंकियों को मार गिराने की सफलता,म्यांमार-भारत के आपसे सहयोग की यह मिसाल है। भारत के मिजोरम राज्य तथा म्यांमार के सितवे बंदरगाह को जोड़ने के लिए कलादान मल्टीमॉडल पारगमन परियोजना को विकसित किया जा रहा है। भारत ने म्यांमार की सड़क परियोजनाओं को भी बहुत मदद की है,जिससे आने वाले समय में इन परियोजनाओं से पूर्वोत्तर को बहुत फायदा होने की उम्मीद बढ़ी है। लेकिन अब म्यांमार की सैन्य सरकार का रुख भारत के हितों की रक्षा के अनुकूल नहीं दिखाई पड़ रहा है। आर्थिक सहयोग के साथ चीन से म्यांमार का बढ़ता रक्षा सहयोग भारत की सामरिक चुनौती बढ़ाने वाला है।

#ब्रह्मदीप अलूने,#brahmadeep alune

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