राष्ट्रीय सहारा,हस्तक्षेप
युद्ध के उद्देश्य स्पष्ट होना चाहिए लेकिन पश्चिम एशिया में ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। यहां क्षेत्रीय प्रभुत्व,सामरिक प्रतिद्वंदिता,राजनीतिक और आर्थिक हितों की अनुकूलता या प्रतिकूलता अलग अलग तरीके से प्रतिद्वंदिता के कई मोर्चों का निर्माण करती है। यही कारण है की पिछले कई दशकों से पश्चिम एशिया अस्थिरता और संघर्षों से मुक्त नहीं हो सका है। महाशक्तियों के हित परस्पर यहां टकराते रहे है तथा शांति की कोशिशें भी अल्पकालीन प्रभावों वाली ही प्रतीत होती है।
पश्चिम एशिया की भौगोलिक और सामरिक स्थिति इसे वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनाती है। इसके प्राकृतिक संसाधन और ऐतिहासिक व्यापार मार्ग इसे और भी महत्वपूर्ण बनाते हैं। क्षेत्र में प्राकृतिक गैस, तेल और खनिजों के बड़े भंडार हैं। चीन,रूस और पश्चिमी देशों के बीच यह क्षेत्र रणनीतिक प्रतिस्पर्धा का केंद्र है,जो बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव जैसी बहुउद्देश्यी परियोजनाओं के कारण और भी महत्वपूर्ण हो गया है।
वर्तमान में इजराइल और फिलिस्तीन के बीच संघर्ष का दायरा लेबनान और ईरान तक बढ़ गया है। अमेरिका का इजराइल प्रमुख सहयोगी है तथा ईरान को चीन और रूस के समर्थन से पश्चिमी देशों के बीच भी यह तनाव बढ़ सकता है। इससे क्षेत्रीय संघर्ष के व्यापक होने और वैश्विक राजनीति में अनिश्चितता बढ़ने की भी आशंका गहरा गई है। पश्चिम एशिया,विश्व के प्रमुख तेल और गैस उत्पादक क्षेत्रों में से एक है। अमेरिका इस क्षेत्र से ऊर्जा संसाधनों की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। अमेरिका ने कतर,बहरीन और कुवैत जैसे कई देशों में सैन्य ठिकाने स्थापित किए हैं जिससे वह क्षेत्र में सुरक्षा और स्थिरता बनाए रख सके। इन सबके साथ अमेरिका इजरायल के साथ एक मजबूत रणनीतिक साझेदारी बनाए रखना चाहता है और इस क्षेत्र में स्थिरता के लिए इजरायल और फिलिस्तीनी राज्य के बीच समझौते को प्रोत्साहित करता है। वह पश्चिम एशिया के देशों के साथ व्यापार और निवेश के अवसरों को बढ़ाने का प्रयास करता है जिससे दोनों पक्षों के लिए आर्थिक लाभ हो सके। इसके साथ ही अमेरिका क्षेत्रीय देशों में लोकतांत्रिक सुधारों और मानवाधिकारों के लिए समर्थन देता है,जिससे सामाजिक स्थिरता को बढ़ावा मिलता है। अमेरिका इस क्षेत्र में चीन और रूस के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए सक्रिय है जिससे अपनी रणनीतिक स्थिति को मजबूत कर सके। अमेरिका ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकने के लिए विभिन्न नीतियों और समझौतों के माध्यम से सक्रियता से काम कर रहा है । पश्चिम एशिया में अमेरिका के हित ऊर्जा सुरक्षा, सुरक्षा सहयोग,आर्थिक संबंध और भू रणनीतिक प्रतिस्पर्धा में निहित हैं।
वहीं अमेरिका के धुर विरोधी रूस के हित भी पश्चिम एशिया में कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में फैले हुए हैं। रूस पश्चिम एशिया में ऊर्जा बाजार में अपनी स्थिति को मजबूत करना चाहता है। वह विभिन्न देशों के साथ ऊर्जा सहयोग को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहा है। रूस ने सीरिया और अन्य देशों के साथ सैन्य सहयोग बढ़ाया है। सीरिया में असद सरकार का समर्थन करके रूस ने अपने सामरिक प्रभाव को बढ़ाया है। रूस चाहता है कि पश्चिम एशिया में उसकी भूमिका को बढ़ाया जाए,विशेषकर अमेरिका के प्रभाव को संतुलित करने के लिए। वह विभिन्न देशों में राजनीतिक और आर्थिक संबंध स्थापित करने का प्रयास कर रहा है। रूस पश्चिम एशिया के देशों के साथ व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने के लिए सक्रिय है। वह कृषि, औद्योगिक और तकनीकी सहयोग को प्राथमिकता दे रहा है। पुतिन पश्चिम एशिया में कई देशों को हथियार निर्यात करते है और अच्छी खासी आय यहां से उन्हें होती है। पश्चिम एशिया में रूस के हित ऊर्जा, सुरक्षा,राजनीतिक प्रभाव और आर्थिक संबंधों में निहित हैं।
पश्चिम एशिया में चीन की भूमिका अचानक ही बढ़ गई है। उसकी परियोजनाओं का जाल कई देशों में फ़ैल चूका है। चीन इन परियोजनाओं का उद्देश्य क्षेत्रीय आर्थिक विकास,बुनियादी ढांचे का निर्माण और व्यापारिक संबंधों को बढ़ावा देना बताता है। चीन ने ईरान के साथ रेलवे लिंक को मजबूत करने और इराक में सड़क निर्माण परियोजनाओं में व्यापक निवेश किया है। चीन ने कई पश्चिम एशियाई देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, जिससे व्यापारिक संबंध मजबूत हुए हैं। खाड़ी के देशों में चीन के बढ़ते प्रभाव से अमेरिका और पश्चिम के देश चिंतित है।
भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों का एक बड़ा हिस्सा पश्चिम एशिया से आयात करता है। इस क्षेत्र में अस्थिरता से तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं या आपूर्ति बाधित हो सकती है,जिससे भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। पश्चिम एशिया में भारतीय प्रवासी श्रमिक बड़ी संख्या में हैं। अस्थिरता के कारण उन्हें सुरक्षा का खतरा हो सकता है जिससे उनके घर लौटने या पलायन करने की संभावना बढ़ जाती है। अस्थिरता से व्यापारिक संपर्क प्रभावित हो सकते हैं। भारत और पश्चिम एशिया के देशों के बीच आर्थिक संबंधों में बाधाएं आ सकती हैं जिससे भारत के निर्यात और आयात पर असर पड़ेगा।
पश्चिम एशिया में आतंकवादी गतिविधियों में वृद्धि से भारत में सुरक्षा चिंताएं बढ़ सकती हैं। इससे भारत के सहयोगी देशों के साथ संबंध प्रभावित हो सकते हैं। अस्थिरता के कारण होने वाले संघर्षों से पर्यावरणीय संकट भी उत्पन्न हो सकते हैं जो भारत के जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय नीतियों पर प्रभाव डाल सकते हैं। पश्चिम एशिया में अस्थिरता का भारत पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। जो ऊर्जा,सुरक्षा,व्यापार और राजनीतिक संबंधों के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित कर सकता है। इजराइल और ईरान के बीच यदि संघर्ष बढ़ता है तो भारत के लिए यह स्थिति जटिलता उत्पन्न कर सकती है। इस क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने के लिए सक्रिय भूमिका निभाने की आवश्यकता है।
रूस यूक्रेन युद्द से दुनिया के कई देश पहले ही प्रभावित हुए है। गरीब और कमजोर देशों में मानवीय मदद रुक गई है,दुनिया भर में खाने की चीजों के दाम उच्चतम स्तर को छू रहे है। खाड़ी देशों में विश्व का सबसे बड़ा तेल और गैस भंडार है। क्षेत्र में स्थिरता से वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति सुचारू रहती है जबकि अस्थिरता से ऊर्जा कीमतों में उतार-चढ़ाव हो सकता है जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है। पश्चिम एशिया में अस्थिरता के कारण आतंकवादी समूहों का प्रभाव बढ़ सकता है जो अन्य देशों में सुरक्षा खतरे पैदा कर सकता है।
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