विकसित देशों में महिला सुरक्षा को लेकर नागरिक भागीदारी पर जोर
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विकसित देशों में महिला सुरक्षा को लेकर नागरिक भागीदारी पर जोर

राष्ट्रीय सहारा,हस्तक्षेप

किताबों में लिखे कानून और उनके क्रियान्वयन के प्रति जागरूकता तथा प्रतिबद्धता किसी नागरिक समाज के अलग अलग गुण है। विकसित तथा पिछड़े समाज में यह अंतर बड़ा गहरा है जो लैंगिक असमानता और महिलाओं के प्रति हिंसा के रूप में सामने आता है। महिलाओं के खिलाफ हिंसा हर देश,संस्कृति और समुदाय में मौजूद है। यह विभिन्न देशों को सामाजिक स्थिरता और आर्थिक विकास हासिल करने से रोकता है। महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा एक अपराध है और यह दुनिया में सबसे विनाशकारी मानवाधिकार उल्लंघनों में से एक है। इस स्थिति में बदलाव के लिए साझा दृष्टिकोण,सामूहिक प्रयासों और सकारात्मक सोच होनी चाहिए ।

 

यूरोपीय संघ वैश्विक लैंगिक समानता को गतिदेने के लिए एक व्यापक रणनीति का प्रतिनिधित्व करता है,जो अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं और सतत विकास लक्ष्यों के साथ आगे बढ़ रहा है। यूरोपीय संघ का उद्देश्य बेहद स्पष्ट है कि महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ सभी प्रकार की हिंसा को समाप्त करना। यह लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए आदर्श प्रयास कर रहा है,जो लैंगिक मुख्यधारा,लक्षित कार्रवाई और राजनीतिक संवाद को मिलाकर तीन आयामी दृष्टिकोण अपनाता है। लैंगिक समानता पर नागरिक समाज संवाद यूरोप में प्राथमिकता से आयोजित किये जाते है । यूरोपीय संघ और उसके सदस्य देशों ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा से निपटने,महिलाओं की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र आयोग में योगदान देने और जलवायु और डिजिटल निर्णय लेने में लैंगिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के लिए सक्रिय रूप से प्रस्तावों को आगे बढ़ाया है और संयुक्त राष्ट्र के साथ भागीदारी की है।

विकसित देशों में सामाजिक,आर्थिक और क़ानूनी स्तर पर महिलाओं की मदद के लिए दीर्घकालीन नीतियां बनाई गई है और यह बेहतर तरीके से काम करती है। अमेरिकी में लगभग सौ सालों से अंतर अमेरिकी महिला आयोग महिलाओं के अधिकारों और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए मुख्य गोलार्ध नीति मंच के रूप में काम कर रहा है। सीआईएम महिलाओं के मानवाधिकारों और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए स्थापित पहला अंतर सरकारी संगठन था। यह संगठन महिलाओं के आर्थिक अधिकारों और स्वायत्तता पर राज्यव्यापी सार्वजनिक नीतियों को मजबूत करने के लिए प्रयत्नशील है। इस संगठन का मानना है की महिलाओं के जीवन को बदलने की शक्ति तभी मिल सकती है जब नियामक और कानूनी उपकरण व्यावहारिक स्तर पर लागू किये जाये तथा महिलाओं के आर्थिक अधिकारों के साथ साथ उनके सशक्तीकरण और स्वायत्तता का समाज भी पूरी तरह से समर्थन करें। अंतर अमेरिकी महिला आयोग सरकारों को चेताने से ज्यादा सामाजिक जागरूकता पर जोर देता है जिससे पुरुषों में बराबरी का भाव आएं और इससे महिलाओं पर होने वाली हिंसा को रोकने में बड़ी कामयाबी मिली है।

विकसित देशों में कामकाजी महिलाओं की सुरक्षा के लिए अच्छा माहौल बनाने में कई कारक कार्य करते है। इस बारे में यह विश्वास किया जाता है कि कर्मचारियों के लिए अपने अधिकारों और यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज करने की प्रक्रियाओं के बारे में जागरूक होना महत्वपूर्ण है। नियोक्ताओं को कानून और उपलब्ध निवारण तंत्र के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए नियमित प्रशिक्षण सत्र और कार्यशालाएं आयोजित करनी चाहिए। यहां पर प्रबन्धक को लेकर पारदर्शिता दिखाई पड़ती है। बेहतर और सुरक्षित माहौल के लिए प्रबन्धक कर्मचारियों को सुरक्षित कार्य वातावरण के बारे में स्पष्ट दिशा निर्देश देते है तथा किसी भी शिकायत या किसी भी महिला मुद्दे को उच्च अधिकारियों तक पहुंचाने के लिए मध्यस्थ की भूमिका निभानी निभाते है। कर्मचारियों द्वारा सामना किए जाने वाले किसी भी अवांछित व्यवहार को उच्च अधिकारियों तक पहुंचाना एचआर की भूमिका है। चूंकि प्रबंधन को निष्पक्ष कार्रवाई करने की आवश्यकता है,इसलिए यहां एचआर की भागीदारी सबसे महत्वपूर्ण है।

वैश्विक स्तर पर खासकर पिछड़े और विकासशील देशों में सार्वजनिक स्थानों पर यौन उत्पीड़न और यौन हिंसा के अन्य रूप महिलाओं और लड़कियों के लिए रोज़मर्रा की घटना है। महिलाएं और लड़कियां सार्वजनिक स्थानों पर यौन हिंसा के विभिन्न रूपों का अनुभव करती हैं और उनसे डरती हैं,जिसमें अवांछित यौन टिप्पणियाँ और इशारे,उत्पीड़न,बलात्कार और महिला हत्या शामिल हैं। यह सड़कों पर,सार्वजनिक परिवहन,स्कूलों,कार्यस्थलों,सार्वजनिक शौचालयों,पानी और भोजन वितरण स्थलों और पार्कों के आसपास होता है। घरेलू और कार्यस्थल पर हिंसा को अब व्यापक रूप से मानवाधिकारों के उल्लंघन के रूप में मान्यता प्राप्त है,लेकिन सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ यौन उत्पीड़न और अन्य प्रकार की हिंसा को अक्सर नज़रअंदाज़ किया जाता है और इसे रोकने और संबोधित करने के लिए बहुत कम कानून या नीतियां हैं।

इन परिस्थितियों में रहने वाली और काम करने वाली महिलाएं प्रतिकूलता का अनुभव करती है। यह वास्तविकता महिलाओं और लड़कियों की आवाजाही की स्वतंत्रता को कम करती है। यह स्कूल,काम और सार्वजनिक जीवन में भाग लेने की उनकी क्षमता को कम करती है। यह आवश्यक सेवाओं तक उनकी पहुँच और सांस्कृतिक और मनोरंजक गतिविधियों का आनंद सीमित करता है और उनके स्वास्थ्य और कल्याण पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। इस स्थिति को बदलने के लिए सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर कार्य करने की जरूरत होती है। विकसित देशों में गैर सरकारी संगठनों के व्यापक और लगातार प्रयास तथा इसमें नागरिक भागीदारी बेहतर परिणाम देने वाले साबित हुए है।

आधुनिक दुनिया में आमतौर यह माना जाता है कि सामाजिक और आर्थिक असमानताएं अक्सर किसी देश में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी का आईना होती हैं। जिन देशों में महिलाओं के पास राजनीतिक सशक्तिकरण की कमी है,वहां कार्यस्थल पर समान भागीदारी की अनुमति देने के लिए आवश्यक संरचनाएं भी आमतौर पर गायब हैं। महिलाओं के लिए सबसे सुरक्षित और खुशहाल देशों में लैंगिक समानता,महिला नेतृत्व और राजनीतिक सशक्तिकरण निश्चित रूप से सबसे महत्वपूर्ण मानदंडों में से हैं। राजनीतिक सशक्तिकरण के मामले में न्यूजीलैंड में उच्च स्तर की समानता है और इसने शिक्षा के सभी स्तरों पर शैक्षणिक उपलब्धि में लैंगिक अंतर को पाटने में भी कामयाबी हासिल की है। न्यूजीलैंड का श्रम कानून महिला कर्मचारियों को 26 सप्ताह का सवेतन मातृत्व अवकाश लेने का अधिकार देता है,साथ ही गर्भावस्था से संबंधित नियुक्तियों के लिए 10 दिनों की अतिरिक्त छुट्टी भी देता है। इसके अलावा,गर्भपात की स्थिति में महिलाओं को 3 दिनों की शोक छुट्टी और घरेलू हिंसा की शिकार होने पर 10 दिनों की छुट्टी मिलती है।

मध्यपूर्व अफ्रीका में स्थित रवांडा लंबे समय तक गृह युद्द और नरसंहार से जूझता रहा लेकिन लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व को लेकर लैंगिक समानता के मामले में रवांडा दुनिया में पहले स्थान पर है। यह सामुदायिक सुरक्षा की धारणा में भी उच्च स्थान पर है और वैश्विक लैंगिक अंतर सूचकांक में दुनिया में छठे स्थान पर है जो मापता है कि कोई देश अर्थशास्त्र,शिक्षा, स्वास्थ्य,सेवा और राजनीतिक भागीदारी के मामले में कितना न्यायसंगत है। लगभग सभी स्थानों पर और दिन रात हर समय पुलिस,सुरक्षा और सेना मौजूद रहती है। यह पहली बार में डराने वाला लग सकता है,लेकिन ये सभी वर्दीधारी मिलनसार लोग हैं जो हमेशा मदद करने के लिए तैयार रहते हैं।

महिलाओं के विरुद्ध होने वाली हिंसा को रोकने के लिए व्यापक और दीर्घकालीन रणनीति पर काम करने की जरूरत होती है। जहां नियम और कानून से ज्यादा नागरिक भागीदारी के उज्ज्वल परिणाम सामने आ सकते है। महिलाओं और लड़कियों के प्रति बराबरी का दृष्टिकोण घर,परिवार,समाज,सार्वजनिक जीवन से लेकर कार्य स्थल तक दिखाई देना चाहिए। ऐसे बहुआयामी दृष्टिकोण को लेकर यूरोप और अमेरिका का नागरिक समाज तो जागरूक है लेकिन भारत जैसे देशों में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा को रोकने के लिए महज क़ानूनी प्रतिबद्धताओं तक सीमित होना,नुकसानदायक तथा अप्रभावकारी रहा है।

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