जमीनी पत्रकारों,सामाजिक कार्यकर्ताओं और खेतिहर किसान की भूमिका विश्वविद्यालयों में क्यों नहीं.. 
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जमीनी पत्रकारों,सामाजिक कार्यकर्ताओं और खेतिहर किसान की भूमिका विश्वविद्यालयों में क्यों नहीं.. 

राष्ट्रीय सहारा,हस्तक्षेप

उच्च शिक्षा संस्थानों में शिक्षक कौन और कैसे होना चाहिए,यह विचार ज्ञान की वृहत दृष्टि से संबंधित होता है और इसके भिन्न भिन्न लेकिन उत्कृष्ट पैमाने रहे है। एक अच्छे शिक्षक के लाभ न केवल छात्रों के लिएबल्कि पूरे समाज और शिक्षा प्रणाली के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। अच्छे शिक्षक छात्रों के जीवन में गहरे प्रभाव डालते हैं और उनके व्यक्तिगत,सामाजिकऔर शैक्षिक विकास में मदद करते हैं।राष्ट्र निर्माण में शिक्षक की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण और व्यापक होती है। शिक्षक न केवल विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान करते हैं,वे समाज के निर्माण और देश के भविष्य को आकार देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। शिक्षक न केवल ज्ञान का स्रोत होते हैंबल्कि वे अपने छात्रों को नैतिक मूल्य,सामाजिक जिम्मेदारी,देशप्रेमऔर संस्कार भी सिखाते हैं, जो राष्ट्र के निर्माण में सहायक होते हैं।

अनादिकाल से लेकर आधुनिक युग तक ज्ञान के संदर्भ भले ही बदलते रहे हो लेकिन यह विश्वास बार बार सामने आता है कि प्राचीन ज्ञान परंपरा को किनारे रखकर भारत एक राष्ट्र के रूप में सबल नहीं हो सकता है। प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा में एक समग्र दृष्टिकोण,वैज्ञानिक सोच,नैतिकता,आध्यात्मिकताऔर सामाजिक जागरूकता का अद्भुत संगम था। यह परंपरा न केवल भारतबल्कि पूरे मानवता के लिए एक अमूल्य धरोहर हैजो आज भी हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं को समृद्ध करने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करती है।यह परंपरा दर्शन,साहित्य,विज्ञान,गणित,आध्यात्मिकताऔर सामाजिक व्यवस्था के क्षेत्रों में बहुत समृद्ध थी। प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा ने जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने और सुधारने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान किया। प्राचीन भारतीय परंपरा में विज्ञान और दर्शन को अलग-अलग नहीं देखा जाता था। भारतीय दर्शनजैसे योग,संख्यायन,मध्यमक आदिजीवन के हर पहलु को समझने का प्रयास करते थे,जिसमें वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण का समावेश था। प्राचीन भारत में विभिन्न शिक्षा पद्धतियां थींजैसे योग,तंत्र,आयुर्वेद,वेदांग और सूत्रशास्त्र। जो अलग-अलग विचारधाराओं को और उनकी पद्धतियों को महत्व देती थी,परंतु सभी में एकात्मता और संतुलन की भावना थी। प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा में गणित और विज्ञान के क्षेत्र में अद्वितीय कार्य हुआ था।

प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा और आधुनिक भारतीय शिक्षा के बीच समन्वय कि कोशिशें तो नजर आती है लेकिन यह गहरा अंतर भी दिखाई पड़ता है की प्राचीन भारतीय शिक्षा परंपरा में जीवन के गहरे पहलुओं,नैतिकताऔर आत्म-ज्ञान पर जोर दिया जाता था। वहीं आधुनिक शिक्षा में तकनीकी ज्ञान, व्यावसायिक कौशल और वैश्विक दृष्टिकोण पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जाता है। बेहतर भारत के भविष्य के लिए प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा और आधुनिक भारतीय शिक्षा में सामंजस्य की कोशिशें नई शिक्षा पद्धति में की गई है लेकिन यहां पर शिक्षकों का चुनाव और उनकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है।  इस दृष्टि से आधुनिक भारत में उच्च शिक्षा के ढांचे,कार्ययोजना और लक्ष्यों पर गहरे चिंतन मनन किए जा रहे है।

ऐसे में विश्वविद्यालय शिक्षा या उच्चतम शिक्षा का महत्व अत्यधिक इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह व्यक्तिगत, सामाजिक और आर्थिक विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। विश्वविद्यालय शिक्षा न केवल ज्ञान का प्रसार करती है बल्कि यह व्यक्ति को एक विस्तृत दृष्टिकोण,कौशल और समाज के प्रति जिम्मेदारी से परिपूर्ण करती है। यह शिक्षा का उच्चतम स्तर होता है, जो किसी विशेष क्षेत्र में गहन अध्ययन और शोध करने का अवसर प्रदान करता है। जीवन के हर पहलू में विज्ञान-तकनीक और शोध कार्य कि अहम भूमिका  होती है जिससे देश कि प्रगति का मार्ग प्रशस्त होता है। शोध और अनुसंधान को लेकर भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों कि स्थितियां बेहतर बनाने कि जरूरत हमेशा महसूस होती है और नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इस पर विचार भी किया गया है।

उच्च शिक्षा में प्रवेश के लिए मजबूत अकादमिक आधार होना ज़रूरी माना जाता है और फिर इन संस्थानों में शिक्षकों से अपेक्षा बहुत बेहतर कि होती है। आधुनिक शिक्षा में भारतीय मूल्यों का अभाव एक गम्भीर और विचारणीय विषय है। प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धतियों में नैतिकता, आध्यात्मिकता, और सामाजिक जिम्मेदारी को महत्वपूर्ण माना जाता था,जबकि आधुनिक शिक्षा, जो मुख्यतः पश्चिमी पद्धतियों से प्रभावित है। उसमें इन मूल्यों का स्थान अक्सर कम हो जाता है। इस अंतर को समझने के लिए हम भारतीय मूल्यों और आधुनिक शिक्षा पद्धतियों के बीच के अंतर को देख सकते हैं।

प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली का उद्देश्य केवल शैक्षिक ज्ञान ही नहीं, बल्कि एक सशक्त और नैतिक व्यक्तित्व का निर्माण भी था। गुरु-शिष्य परंपरा में शिष्य को अपने आदर्श जीवन जीने के लिए मार्गदर्शन दिया जाता था, और यह चरित्र निर्माण पर बल देती थी।आधुनिक शिक्षा पद्धतियों में व्यक्तित्व विकास और चरित्र निर्माण की शिक्षा का अभाव होता जा रहा है। यह अधिकतर पढ़ाई और परीक्षा पर केंद्रित हो गई है, जिससे छात्र केवल अकादमिक सफलता प्राप्त करने के लिए प्रेरित होते हैं, और जीवन के नैतिक और मानसिक पहलुओं की उपेक्षा होती है।

प्राचीन शिक्षा पद्धति में आचार्यों के ज्ञान और अनुभव का अद्भुत समन्वय  होता था,आधुनिक शिक्षा में यह डिग्री में सीमित कर दिया गया,जिसके दूरगामी परिणाम बेहद खराब साबित हुए है। डिग्री धारी के साथ अनुभव वाला ज्ञान अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है। यह न केवल किसी व्यक्ति के ज्ञान और कौशल को प्रमाणित करता है, बल्कि व्यावसायिक जीवन में उसे सफल, प्रभावशाली और समस्याओं के समाधान में दक्ष बनाता है। डिग्री जहां ज्ञान का आधार है,वहीं अनुभव उसे वास्तविक दुनिया में लागू करने की क्षमता प्रदान करता है। इन दोनों का संयोजन व्यक्ति को न केवल सशक्त बनाता है, बल्कि समाज और व्यवसाय में उसका योगदान भी अधिक प्रभावशाली बनाता है।अनुभव व्यक्ति को समय प्रबंधन और लक्ष्य प्राप्ति में बेहतर बनाता है। उसे यह समझने में मदद मिलती है कि कब और कहां क्या कदम उठाना चाहिए। यह उसे आवश्यक सुधार और नवाचार के लिए अधिक सक्षम बनाता है।डिग्री केवल एक व्यक्ति को सिद्धांत और नैतिक सिद्धांत सिखाती है, जबकि अनुभव उसे वास्तविक जीवन के पढ़े-लिखे और अच्छे निर्णय करने की क्षमता देता है।अनुभव वास्तविक दुनिया में सिद्धांतों और शैक्षिक ज्ञान को लागू करने की क्षमता को बढ़ाता है। यह व्यावसायिक जीवन में आने वाली वास्तविक समस्याओं के समाधान के लिए एक ठोस व्यावहारिक दृष्टिकोण प्रदान करता है।अनुभव के द्वारा व्यक्ति विभिन्न परिस्थितियों में निर्णय लेने की क्षमता विकसित करता है, और यह उसे चुनौतियों और दबाव में कार्य करने की  योग्यताएं प्रदान करता है।अनुभव न केवल शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करता है, बल्कि शिक्षक-छात्र संबंधों को भी मजबूत करता है और शिक्षा के क्षेत्र में सफलता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होता है।

इस दृष्टि से नीति निर्माताओं को यह देखना पड़ेगा कि उच्च शिक्षा में शिक्षकों कि योग्यता का आधार महज डिग्रीधारी न हो जाएं क्योंकि इससे जमीनी स्तर पर काम करने वाले और बदलाव के असली किरदार  अपना अमूल्य ज्ञान हस्तांतरित नहीं कर पाएंगे। उच्च शिक्षा संस्थानों में शिक्षकों के चयन पर व्यवहारिक लचीलापन प्राचीन ज्ञान परंपरा और आधुनिक शिक्षा में सामंजस्य का चमत्कृत प्रभाव दे सकता है। अंतत:शिक्षण कार्य में अनुभव का महत्व अत्यधिक है,शिक्षण केवल किताबों में लिखी बातों तक सीमित नहीं होता। यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें अनंत संभावनाएं और भिन्न भिन्न परिस्थितियां है। खेतिहर किसान,मिट्टी गारे से मूर्ति बना लेने वाले मूर्तिकार,स्वयं सेवी संस्थानों से जुड़ी महिलाएं और सामाजिक न्याय के लिए राजनीतिक दलों से जूझने वाले कार्यकर्ता भी अच्छे शिक्षक हो सकते है।  उच्च शिक्षा संस्थानों में ऐसे शिक्षकों का खुले मन से स्वागत किया जाना चाहिए और अवसर भी दिए जाने चाहिए।

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