तेरहवीं शताब्दी में एक विद्वान हुआ करते थे मार्को लोम्बार्डो। उन्होंने धर्म और राजनीति के संबंधों पर एक दिलचस्प बात कहीं थी,जो अब भी कहावतों में सुनाई पड़ती है। मार्को लोम्बार्डो ने कहा था,रोम में दो सूर्य हुआ करते थे,एक दुनिया का मार्ग दिखाता था और दूसरा ईश्वर का मार्ग। लेकिन समय के साथ इन दो रोशनियों ने एक दूसरे को बुझा दिया है। दरअसल दो तलवारों का सिद्धांत भले ही ईसाई साम्राज्य के इतिहास और संघर्ष को दर्शाता हो,लेकिन इस्लामिक साम्राज्य भी इस सिद्धांत से अछूता नहीं था। इस्लामिक दुनिया की मान्यताओं की व्याख्या,उलेमाओं द्वारा भिन्न भिन्न तरीके से सुल्तानों के सामने रखी गई। दुनिया के कई देशों में इस्लाम है,समय और परिस्थितियां इस्लामिक कानूनों के क्रियान्वयन पर हावी रही है। वक्फ को लेकर भी इस्लामिक देशों में अलग अलग नियम और कानून रहे है। लेकिन शायद ही कोई देश चाहे वह इस्लामिक कानूनों से संचालित ही क्यों न होता हो,सरकारी व्यवस्था के हस्तक्षेप और नियन्त्रण से वक्फ अछूता नहीं है। धर्म और राजनीति को अलग अलग रखने के प्रयास इतिहास की मांग रहे है,हालांकि धार्मिक सत्ताओं ने राजसत्ताओं पर दबाव बढ़ाने के सबसे पहले प्रयास किए और यहीं से धर्म,राजनीति और संघर्ष का दौर शुरू हो गया,जो अब भी बदस्तूर जारी है।
ईरान को एक इस्लामिक गणराज्य माना जाता है और इस्लाम को इसके सिद्धांतों का आधार माना गया है। संविधान के मुताबिक,सभी कानून और नियम इस्लामी मानदंडों और शरिया की आधिकारिक व्याख्या पर आधारित होने चाहिए। ईरान का शिया इस्लामी शासन धार्मिक नेताओं द्वारा नियंत्रित है। सरकार और धार्मिक संस्थाओं के बीच गहरे संबंध हैं और धार्मिक संस्थाओं को सरकारी नियंत्रण के तहत बनाए रखने के लिए वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन आवश्यक किया गया है। ईरान में वक्फ पर राज्य का नियंत्रण केवल धार्मिक कल्याण तक सीमित नहीं रहता,बल्कि यह राजनीतिक उद्देश्यों को भी पूरा करता है। धार्मिक संस्थाओं के पास वक्फ संपत्तियों से प्राप्त आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत होता है,जिससे वे अपने धार्मिक और राजनीतिक प्रभाव को बढ़ा सकते हैं।
इस्लामिक मान्यताओं के विशुद्ध पालन के नाम पर जन्म लेने वाले पाकिस्तान में दुनिया की दूसरी बड़ी मुस्लिम आबादी रहती है। इस्लामी शरिया कानून के तत्वों को पाकिस्तानी कानून में शामिल किया गया। इस्लामी गणराज्य पाकिस्तान में इस्लामिक शरीयत राज्य की नीति का हिस्सा है और वहां के संविधान में धर्म की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसके बाद भी धार्मिक संपत्तियों का प्रबंधन और नियंत्रण सरकार के हाथ में है जिससे इन संपत्तियों का उचित उपयोग सुनिश्चित किया जा सके। पाकिस्तान सिंध वक्फ संपत्ति अधिनियम-2020 और पंजाब वक्फ संपत्ति अध्यादेश-1979 सहित कई प्रांतीय कानूनों के माध्यम से वक्फ संपत्तियों को नियंत्रित करता है। यह सरकार की निगरानी में होता है। इस्लामिक देश होने के बाद भी धार्मिक संस्थाओं की स्वायत्ता को लेकर पाकिस्तान में सरकारें चिंतित रही है। 17 दिसंबर 2014 को आर्मी पब्लिक स्कूल हत्याकांड के बाद,वक्फ की सम्पत्तियों और मदरसों को सख्ती से विनियमित करने के लिए प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने वादा किया था। इसके पहले 2007 में भी परवेज मुशर्रफ ने हजारों मस्जिदों के स्थान,आकार, धार्मिक संबद्धता और धन के ज्ञात स्रोत पर व्यापक अभियान चलाया था। इस दौरान वक्फ संपत्तियों को लेकर पाकिस्तान सरकार ने दस्तावेजीकरण करके सरकारी निगरानी और नियन्त्रण को सुनिश्चित कर दिया।
वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में राज्य का सीधा हस्तक्षेप सऊदी अरब,संयुक्त अरब अमीरात और कतर जैसे इस्लामिक देशों में भी है,जबकि इन देशों में पूर्णत: इस्लामिक नियमों पर आधारित शासन करने का दावा किया जाता है। आधुनिक समय में स्वयं को इस्लामिक अमीरात घोषित करने वाले अफगानिस्तान का तालिबान शासन तो वक्फ को पूरी तरह से नियंत्रित करता है। हक़्क़ानी ग्रुप के नेता और गृह मंत्री सिराजुद्दीन हक़्क़ानी तथा शीर्ष तालिबान नेता हिबतुल्लाह अख़ुंदज़ादा देश में वक्फ संपत्तियों और मस्जिदों पर नियन्त्रण के लिए एक दूसरे के सामने है। पिछले वर्ष दिसम्बर में तालिबान कैबिनेट के दो प्रमुख मंत्री काबुल के एक मदरसे में हुए कार्यक्रम के दौरान एक दूसरे पर परोक्ष रूप से निशाना साधते हुए दिखाई दिए। इस दौरान हक़्क़ानी ग्रुप के नेता और गृह मंत्री सिराजुद्दीन हक़्क़ानी ने शीर्ष तालिबान नेता हिबतुल्लाह अख़ुंदज़ादा के क़रीबी माने जाने वाले उच्च शिक्षा मंत्री निदा मोहम्मद नदीम पर संकीर्ण मानसिकता का आरोप लगाया था। तालिबान से पहले अफगानिस्तान ने ज़हीर शाह के शासन काल में बहुत उन्नति की थी. ज़ाहिर शाह को अफगानिस्तान का राष्ट्रपिता माना जाता है. 1933 से 1973 तक अफ़ग़ानिस्तान के वे राजा थे, जिन्होंने अपने देश को स्थिर सरकार का युग प्रदान किया था। ज़हीर शाह एक जातीय पश्तून थे जो शास्त्रीय फ़ारसी संस्कृति में डूबे हुए थे,जिनके अफ़गानिस्तान के सभी जातीय समूहों के साथ मज़बूत सांस्कृतिक संबंध थे। आधी सदी पहले एक रक्तहीन तख्तापलट में राजा ज़हीर शाह को अपदस्थ कर दिया गया था,जिसके बाद से अफगानिस्तान में लगातार उथल-पुथल की शुरुआत हो गई। अफगानिस्तान के इतिहास में ज़हीर शाह का शासन काल एक अहम दौर था,जब देश ने पारंपरिक इस्लामी व्यवस्थाओं को आधुनिकीकरण और संवैधानिक ढाँचे में ढालने की कोशिश की। इस काल में वक्फ प्रणाली भी धीरे धीरे अधिक संगठित,क़ानूनी और राज्य-नियंत्रित किया गया तथा राज्य ने वक्फ की संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन और प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए कई प्रशासनिक कदम उठाए। अफगानिस्तान में वक्फ के प्रबंधन की स्थिति शासन अनुसार बदलती रही,हालांकि यह राज्य के नियन्त्रण में ही रही। कभी वक्फ की संपत्तियों का उपयोग राजनीतिक आधार बढ़ाने के लिए किया गया तो कभी इसे धर्मार्थ विकास के तौर पर उभारने के प्रयास किए गए।
उस्मानिया सल्तनत (ऑटोमन एम्पायर) कई सदियों तक क़ायम रहने वाली एक बड़ी सल्तनत थी, जिसमें उसने यूरोप, मध्य पूर्व और उत्तर अफ़्रीका के बड़े हिस्से पर हुकूमत की और दूरगामी प्रभाव छोड़े। 600 सालों तक उस्मानिया सल्तनत दक्षिण पूर्व यूरोप से लेकर वर्तमान के ऑस्ट्रिया,हंगरी,बाल्कान,ग्रीस,यूक्रेन, इराक़,सीरिया,इसराइल,फ़लस्तीन और मिस्र तक फैला हुआ था। उस्मानिया सल्तनत में सुल्तान के नियन्त्रण में राज्य की सम्पत्ति होती थी और इसे स्वायत्त नहीं समझा जाता था। उस्मानिया सल्तनत की अगुवाई करने वाली तुर्की की सत्ता पर इस समय काबिज़ रेचेप तैय्यप अर्दोआन उस्मानिया सल्तनत की गौरव को लौटाने का दावा करते है। 1924 में सभी वक्फ संस्थानों को सरकार के अधीन लाया गया। यहां पर सरकारी संस्था सभी वक्फ संपत्तियों और संस्थानों का प्रबंधन,निगरानी और विकास करती है। सरकार ही वक्फ की संपत्तियों का किराया,उनसे प्राप्त आय और उसका उपयोग धार्मिक,शैक्षिक,सामाजिक कल्याण में करती है। तुर्की में वक्फ से संबंधित मौजूदा कानून में वक्फ के निर्माण,प्रबंधन,निगरानी और सुधार से जुड़े सभी पहलुओं को शामिल किया गया है। यह सरकार की निगरानी में है।
अधिकांश इस्लामिक देशों में यह माना जाता है कि वक्फ संपत्तियों का नियंत्रण राजनीतिक संतुलन को बनाए रखने और राज्य की धार्मिक विचारधारा को बढ़ावा देने में भी सहायक होता है। इसे इस्लामी गणराज्य की नींव के रूप में देखा जाता है,जहां धार्मिक और राजनीतिक सत्ता एक साथ काम करती है। धर्म और धार्मिक संपत्तियों पर राज्य का नियंत्रण एक जटिल और संवेदनशील मुद्दा है,जो समाज,राजनीति और धर्म के बीच के रिश्तों को प्रभावित करता है। इस्लामिक दुनिया में वक्फ की संपत्तियां है और इनके प्रबंधन के लिए अलग अलग देशों में राज्य नियंत्रित विभिन्न कानूनी ढांचे भी होते हैं।
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