संतुलन साधता नेपाल,जनसत्ता     
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संतुलन साधता नेपाल,जनसत्ता     

जनसत्ता            

नेपाल को अपने राष्ट्रीय हित और राष्ट्रीय सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए भारत और चीन से संतुलित सम्बन्धों की जरूरत है और प्रचंड उस दिशा में सफल होते दिखाई दे रहे है। दरअसल नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कुमार दहल प्रचंड ने चीन के साथ द्विपक्षीय समझौतों में जो दूरदर्शिता दिखाई है वह भारत के लिए राहत देने वाली है। खासकर चीन की नई रणनीतिक पहल ग्लोबल सिक्योरिटी इनिशिएटिव से  दूरी बनाकर नेपाल ने यह संदेश दे दिया है की वह चीन के दबाव में आकर अपनी भू रणनीतिक  जरूरतों को नजरअंदाज नहीं कर सकता।

 

यदि नेपाल और चीन के सामरिक सम्बन्ध मजबूत होते है तो भारत का सुरक्षा संकट गहरा सकता था और चीन की यह कोशिश रही है की नेपाल जीएसआई का सदस्य बन जाएं। चीन एशिया में एक सैन्य संगठन बनाना चाहता है,जिसे वह ग्लोबल सिक्यूरिटी इनिशिएटिव कहता है,इसे चीन क्वाड के खिलाफ खड़ा करना चाह रहा है जिससे एशिया में उसका कूटनीतिक और रणनीतिक प्रभुत्व बढ़ सके। यह भी दिलचस्प है की प्रचंड को चीन का पक्षधर समझा जाता है और चीन उन पर भरोसा भी दिखाता रहा है,लेकिन नेपाल की आंतरिक राजनीति पिछले कुछ वर्षों से गहरे बदलावों से गुजर रही है और प्रचंड इस तथ्य को भलीभांति समझ गए है की महज भारत विरोध के बूते उनकी राजनीतिक यात्रा  मजबूती से नहीं चल सकती।

वहीं चीन हमेशा से ही नेपाल के साथ विशेष सम्बन्धों का पक्षधर रहा है,तिब्बत पर कब्जे के बाद उसकी सीमाएं सीधे नेपाल से जुड़ गयी है। चीन की नेपाल नीति का मुख्य आधार  यह है कि नेपाल में बाह्य शक्तियां अपना प्रभाव न जमा सके जिससे तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र की सुरक्षा हो सके तथा नेपाल में भारत के प्रभाव को कम किया जाये। पिछले कुछ दशकों में उसने नेपाल में अनेक परियोजनाएं आक्रामक ढंग से शुरू कर तिब्बत से सीधी सड़क भारत के तराई क्षेत्रों तक बनाया,रेल मार्ग नेपाल की कुदारी सीमा तक बनाया,नेपाली कम्युनिस्ट और माओवादी गुटों को आर्थिक और सैनिक मदद से चीन का समर्थन और आम नेपालियों में उनके द्वारा भारत विरोधी भावनाएं भड़काने की साजिशें रची गयी। इसके साथ ही  चीनी सामानों की नेपाल के रास्ते भारत में डम्पिंग,माओवादी हिंसा के जरिये नेपाल से आंध्र तमिलनाडू तक रेड कॉरिडोर में भारत को उलझाएं रखना,पाक की खुफिया एजेंसी आईएसआई की  नेपाल में लगातार संदिग्ध और वैधानिक गतिविधियों में संलिप्तता से  मादक पदार्थों की तस्करी बढ़ी है और आतंकवादियों का भारत में प्रवेश सुलभ हुआ है।

गौरतलब है कि नेपाल ने 2017 में दहल शासन के दौरान ही चीन के साथ बेल्ट और रोड इनिशिएटिव समझौते पर सहमति बनायी थी। इस समझौते में यह विश्वास दिखाया गया था की भविष्य में नेपाल की पड़ोसी देशों के साथ व्यापार में चार गुना वृद्धि होगी तथा विशिष्ट आर्थिक ज़ोन विकसित किए जायेंगे। लेकिन नेपाल की भौगोलिक स्थिति उसे स्वभाविक रूप से भारत से जोडती है,वहीं प्राकृतिक सीमाओं की जटिलता के कारण नेपाल और चीन के बीच व्यापार करना,बेहद खर्चीला माना जाता है। नेपाली व्यापारियों के लिए कोलकाता और विशाखापत्तनम के बन्दरगाह सबसे बेहतर,सुविधाजनक और फायदेमंद  होते है।

इन सबके बीच भारत की चुनौतियां भी कम नहीं है।  भौगोलिक विषमताओं के बाद भी चीन नेपाल की सामरिक उपयोगिता को लेकर बेहद महत्वकांक्षी रहा है।  नेपाल मे चीन प्रभाव इतना गतिशील है कि वहां होने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का 90 फ़ीसदी अकेले चीन से आता है,ये निवेश हाइड्रो-पॉवरस,सीमेंट,हर्बल मेडिसिन और टूरिज़्म के क्षेत्र में है।  नेपाल,चीन से सबसे ज्यादा दूरसंचार उपकरण और पुर्जे,वीडियो,टेलीविजन,केमिकल फर्टिलाइजर,बिजली का सामान,मशीनरी,कच्चा सिल्क,रेडीमेड गारमेंट्स और जूते खरीदता है। यहां यह भी महत्वपूर्ण है कि बीजिंग नेपाल  में वामपंथ की मजबूती में मददगार रहा है। इस समय नेपाल में वामपंथी सरकार है और चीनी कूटनीति के लिए इसमें व्यापक अवसर दिखाई पडते है। पिछले कुछ वर्षों में चीन ने नेपाल से रणनीतिक साझेदारियों को तेजी से बढ़ाकर हिमालय में भारत की सामरिक चुनौतियों को बढ़ाया है। प्रचंड के सत्ता में आने के अगले ही दिन,नेपाल-चीन के बीच रेल संपर्क स्थापित करने के व्यावहारिक पहलू के अध्ययन के लिए चीन की एक तकनीकी टीम काठमांडू पहुंच गई और चीनी पक्ष ने रसुवागढी-केरुंग क्रॉसिंग को खोलने का फ़ैसला किया। केरुंग को काठमांडू से जोड़ने वाली रेलवे को संचार नेटवर्क के बुनियादी ढांचे के रूप में लिया गया है,जिसे नेपाल में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत लागू किया जा सकता है। जो एक चीनी बुनियादी ढांचा परियोजना है,जिसमें नेपाल 2017 में शामिल हुआ था।

चीन नेपाल को दबाव में लाने के लिए लगातार मदद की रणनीति अपना रहा है। बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत नेपाल मे ढांचागत निर्माण कर चीन उसे कर्ज के  जाल में उलझाने की  कोशिशों में जुटा हुआ है। नेपाल एक छोटा सा देश है और आर्थिक मामलों को लेकर भारत पर उसकी निर्भरता है। चीन भारत पर निर्भरता को खत्म करने के लिए नेपाल में शिक्षा और विकास की परियोजनाओं पर अरबों रुपया दांव पर लगा रहा है। नेपाल के कम्युनिस्ट पार्टी का एक धड़ा देश में लोकतंत्र और समाजवाद को पसंद करता है जबकि पूर्व प्रधानमंत्री ओली की विचारधारा नेपाल की धार्मिक प्रतिबद्धताओं को खत्म कर साम्यवाद  की तानाशाही संस्कृति को अपनाती दिख रही थी,इससे चीन को नेपाल के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप का अवसर भी मिल गया था। भारत नेपाल संबंधों की विशेषताओं को जानते हुए भी  ओली ने सत्ता पर अपनी पकड़ बनाने के लिए राष्ट्रवाद का दांव खेला था। नेपालियों की युवा पीढ़ी की उच्च आकांक्षाओं को जगाने और सामने लाने के लिए ओली ने राष्ट्रवाद का सहारा लेकर भारत से सीमा विवाद को बढ़ाया और इसे राष्ट्रीय अस्मिता से जोड़ दिया।  नेपाली के प्रधानमंत्री का यह कदम बेहद अप्रत्याशित रहा और उन्होंने ऐसा करके उन्होंने नेपाल के भविष्य को दांव पर लगा दिया बल्कि भारत से लगती हुई लगभग 18 सौ किलोमीटर की सीमा की शांति को भंग कर विश्व शांति के लिए नई चुनौती पेश कर दी थी। नेपाल और चीन के सम्बन्धों की मजबूती भारत के लिए समस्या बढ़ाती रही है और पूर्व प्रधानमंत्री ओली ने इसे बढ़ाया भी था।  2016 में ओली ने जब चीन की यात्रा की थी तब नेपाल ने व्यापार और पारगमन क्षेत्र,ऊर्जा सहयोग और संपर्क क्षेत्र सहित दस समझौतों पर हस्ताक्षर किये थे। पारगमन क्षेत्र में नेपाल ने कोलकाता बंदरगाह के विकल्प के तौर पर अब चीन के ग्वांग्‍झू बंदरगाह को इस्तेमाल करने का अधिकार प्राप्त कर लिया था वहीं चीन नेपाल को तेल की आपूर्ति करने के लिए तैयार हो गया था।  इस समझौते में यह भी सहमति बनी थी की चीनी रेलवे का विस्तार तिब्बत नेपाल बॉर्डर के रास्‍ते काठमांडू,पोखरा और उसके आगे लुंबिनी तक किया जाएगा। लुंबिनी भारत नेपाल सीमा से सिर्फ 25 किलोमीटर दूर स्थित है। ओली ने भारत विरोध को बढ़ावा देने के लिए चीन से इन समझौतों को किया था।   

भारत के उत्तर पूर्व में स्थित नेपाल सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है,भौगोलिक सीमाओं से के साथ ही दोनों देशों के पारस्परिक सम्बन्धों का आधार सांस्कृतिक एकता रही है। भारत नेपाल के किसी भी महत्वपूर्ण घटनाक्रम से न तो अछूता रह सकता है न ही चुप्पी साध सकता है। नेपाल के साथ सद्भाव और सहयोगपूर्ण सम्बन्ध भारत के राजनीतिक,आर्थिक और सामरिक हितों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। अभी तक नेपाल भारत के लिए एक ऐसा भूभाग से जुड़ा देश है जिसका लगभग सारा आयात और निर्यात भारत से होकर जाता है। भारत के कोलकाता और अन्य बंदरगाहों से नेपाल को व्यापार सुविधा तथा भारत होकर उस व्यापार के लिए पारगमन की सुविधा प्रदान की गयी है। नेपाल जल संसाधन और प्राकृतिक संसाधन की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है,भारत में बहने वाली नदियों का उदगम भी इन क्षेत्रों में पड़ता है। इस प्रकार दोनों देश एक दूसरे पर निर्भर है। भारत लगातार नेपाल के विकास में अपना अहम योगदान देता रहा है। नेपाल के तराई क्षेत्रों में विकास परियोजनाएं,नेपाल में भूकम्प के बाद पुनर्निर्माण परियोजनाओं के लिए 750 मिलियन डालर की लाइन ऑफ़ क्रेडिट समझौता,नेपाल को रक्षा क्षेत्र में हर संभव मदद देने जैसी घोषणाएं पिछले कुछ वर्षों में भारत द्वारा की गयी है। भारतीय कंपनियां नेपाल में सबसे बड़े निवेशकों में से हैं । नेपाल में लगभग 150 भारतीय उद्यम निर्माण,बैंकिंग,बीमा,ड्राई पोर्ट,शिक्षा और दूरसंचार,बिजली और पर्यटन उद्योगों में कार्यरत हैं।

भारत और नेपाल के बीच विभिन्न स्तर के सहयोग में चीन की सेंध लगाने की कोशिशें भी कम नहीं है। नेपाल और चीन में सीमा पार साइबर अपराधों का मुकाबला करने,सीमा प्रबंधन,संयुक्त रोकथाम और नियंत्रण और बंदरगाहों सहित अन्य क्षेत्रों में सहयोग को मज़बूत करने की दिशा में सहयोग बढ़ा है। दोनों देशों ने काठमांडू रिंग रोड इम्प्रूवमेंट प्रोजेक्ट  के द्वितीय चरण को तेज़ गति देने और इलेक्ट्रिक पावर इंटरकनेक्शन परियोजनाओं को आगे बढ़ाने पर सहमति जताई है। नेपाल और चीन  इलेक्ट्रिक पावर कोऑपरेशन प्लान को मज़बूत करेंगे और ट्रांस-हिमालयी मल्टी-डायमेंशनल कनेक्टिविटी नेटवर्क का निर्माण  करने की दिशा में भी आगे बढ़ रहे है।

भारत और नेपाल के बीच क़रीब अठारह सौ किलोमीटर लम्बी सीमा है जो बिहार,उत्तरप्रदेश,उत्तराखंड,सिक्किम और पश्चिम बंगाल राज्यों से भी लगती हैं। भारत और नेपाल के बीच सदियों पुराने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध हैं। दोनों देशों के बीच की वो अनूठी व्यवस्था मशहूर है जो अपने नागरिकों को बिना वीज़ा के दूसरे देश की यात्रा करने की अनुमति देती है। भारत में क़रीब अस्सी लाख नेपाली नागरिक भारत में रहते हैं और काम करते हैं,वहीं क़रीब छह लाख भारतीय नेपाल में रहते हैं। प्रचंड ने इस वर्ष भारत की भी यात्रा की थी जो बेहद ऐतिहासिक बताई गई थी। हालांकि वामपंथी प्रचंड के अप्रत्याशित राजनीतिक और कूटनीतिक कदमों से भारत आशंकित रहता है। लेकिन अब चीन में नेपाली प्रधानमन्त्री प्रचंड ने नियन्त्रण और संतुलन की नीति पर चलते हुए  पड़ोसियों से समान सम्बन्धों पर जो विश्वास जताया है उससे भारत को निश्चित ही राहत मिली होगी। नेपाल में वामपंथी सरकार के दौर में ऐसा होना बेहद शुभ संकेत है। नेपाल भारत की सामरिक सुरक्षा के लिए अभेद किला माना जाता है और उसमें चीन की सेंध को रोकने की कोशिशों में भारत को फ़िलहाल सफलता मिलती दिखाई दे रही है।

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