जनसत्ता
म्यांमार का भू राजनैतिक महत्व भारत को अपने इस दक्षिण पूर्व एशियाई पड़ोसी देश के प्रति अति यथार्थवादी वैदेशिक नीति के संचालन के लिए मजबूर करता है। म्यांमार में लोकतांत्रिक शक्तियों और सेना के बीच सत्ता संघर्ष की दशकों पुरानी जटिल स्थितियों में भी भारत ने बेहद संतुलनकारी नीति को अपनाया है लेकिन पिछले तीन वर्षों में म्यांमार की राजनीतिक स्थितियां बेकाबू हो गई है। लोकतांत्रिक नेताओं ने विद्रोही समूहों के साथ गठबंधन करके बर्मी सेना को देश के कई इलाकों से खदेड़ दिया है। देश में वैधानिक व्यवस्था के सुचारु संचालन के लिए कोई भी जिम्मेदार निकाय नहीं होने से हिंसा और अराजकता बढ़ गई है। जुंटा शासन और विद्रोही गुटों के बीच चल रही लड़ाई राजधानी यांगून तक पहुंच गई है। विद्रोही समूहों ने म्यांमार की सेना को कड़ी चुनौती देते हुए हवाई अड्डे,वायु सेना अड्डे और सैन्य मुख्यालय पर ड्रोनों से हमला कर यह संकेत दिया है की म्यांमार की सेना कमजोर पड़ गई है और इससे इस देश के टूटने का खतरा बढ़ गया है। म्यांमार के विद्रोही समूहों के भारत के पूर्वोत्तर के समूहों से मजबूत संबंध रहे है,चीन इन्हें बढ़ावा देता रहा है। इसलिए म्यांमार की अस्थिरता भारत की सामरिक समस्याओं को बढ़ा सकती है।
दक्षिण पूर्व एशिया के तमाम देश चीन के दक्षिण में और भारत के पूर्व में स्थित है। इन देशों पर दुनिया की दोनों महान प्राचीन सभ्यताओं का प्रभाव है और भू राजनैतिक दृष्टि से भी ये देश भारत और चीन के लिए बेहद महत्वपूर्ण माने जाते है। म्यांमार जातीय विविधता वाला देश है जिसमें
काचिन,काया,कायिन,चिन,बामर,मोन,रखाइन और शान प्रमुख हैं। ये जातियां अलग अलग भौगोलिक परिस्थितियों में रहकर अपनी अलग सांस्कृतिक पहचान बनाएं रखने के लिए देश की व्यवस्थाओं को प्रभावित करती रही है। इस विविधता ने पृथकतावाद को बढ़ावा दिया है जिसका फायदा चीन ने उठाया है। चीन की दीर्घकालिक रणनीति म्यांमार के सशस्त्र समूहों से संबंध मजबूत करके म्यांमार की सेना या देश की लोकतांत्रिक सरकारों पर दबाव बनाएं रखने की रही है। म्यांमार से चीन के गहरे आर्थिक और सामरिक हित जुड़े हुए है। चीन के लिए,म्यांमार बंगाल की खाड़ी के माध्यम से हिंद महासागर तक सीधी पहुंच के कारण रणनीतिक महत्व रखता है। यह पहुंच अफ्रीका और मध्य पूर्व से तेल और गैस की आवाजाही को सुविधाजनक बनाने के लिए महत्वपूर्ण है,जिससे चीन हिंद महासागर क्षेत्र में एक प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित हो सके। चीन म्यांमार में सबसे बड़ा निवेशक है। वह म्यांमार की सेना को सबसे ज्यादा हथियारों की आपूर्ति करता है वहीं उसे विद्रोही समूहों को चोरी छिपे हथियार देने से भी कोई परहेज नहीं है। चीन म्यांमार आर्थिक गलियारा चीन की बेल्ट एंड रोड पहल की एक प्रमुख आर्थिक और रणनीतिक कड़ी है। इसे विद्रोही गुट किसी प्रकार निशाना न बना सके,इस नीति पर चलते हुए चीन ने म्यांमार की सेना और विद्रोहियों पर नियंत्रण तो स्थापित किया है लेकिन चीन की यह रणनीति भारत की सामरिक समस्या को बढ़ा सकती है।म्यांमार की सेना देश के कई इलाकों में सुसंगठित जातीय सेनाओं से हार रही है । भारत के लिए म्यांमार की स्थिरता सामरिक और आर्थिक रूप से अति महत्वपूर्ण है। भारत की पूर्व की और देखों की दशकों पुरानी नीति का संचालन म्यांमार के माध्यम से ही हो सकता है। करीब डेढ़ दशक पहले भारत ने कलादान मल्टी मॉडल ट्रांजिट पोर्ट प्रोजेक्ट की अति महत्वाकांक्षी परियोजना के माध्यम से म्यांमार के साथ अपने हितों को निकटता से जोड़ने की दीर्घकालीन रणनीति पर कार्य शुरू किया था। यह परियोजना भारत के पूर्वी बंदरगाहों को म्यांमार के सिटवे बंदरगाह और आगे पूर्वी भारत को म्यांमार के माध्यम से समुद्र,नदी और सड़क के माध्यम से जोड़ती है। हालांकि म्यांमार में चल रहे संघर्ष और सुरक्षा स्थिति के कारण,परियोजना पर प्रगति धीमी रही है। भारत का पूर्वोत्तर का क्षेत्र सामरिक रूप से बेहद संवेदनशील है। इन क्षेत्रों में जातीय विविधता अलगाववाद को बढ़ावा देती रही है। पूर्वोत्तर राज्यों की भौतिक स्थिति यह अनिवार्य बनाती है कि भारत अपने पड़ोसियों के सामंजस्य में विकसित हों। दोनों देश एक दूसरे के साथ सोलह सौ किमी से अधिक लंबी थल सीमा के साथ बंगाल की खाड़ी में समुद्री सीमा भी साझा करते हैं। म्यांमार की सीमा पूर्वोत्तर भारत के चार राज्यों अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड,मणिपुर और मिज़ोरम से सटी हुई है।
म्यांमार भारत और चीन के बीच एक रोधक राज्य का काम करता है। इस देश से भारत को पटकोई पर्वत श्रृंखला,घने जंगलों तथा बंगाल की खाड़ी ने अलग कर रखा है। चीन चाहता है कि वह म्यांमार के रास्ते से बंगाल की खाड़ी तक पहुंचे। चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा जो कि बीजिंग के सुदूर पश्चिमी प्रांत शिनजियांग से अरब सागर में कराची और ग्वादर को जोड़ता है। इसी तरह चीन म्यांमार आर्थिक गलियारा से बंगाल की खाड़ी में चीन अपना प्रभाव बढ़ा सकता है, जिससे उसे हिन्द महासागर में रणनीतिक बढ़त भी हासिल हो सकती है। चीन के दक्षिणी पश्चिमी प्रांत युन्नान और पूर्वी हिंद महासागर के बीच यह संपर्क सेतु की तरह काम करेगी।
भारत पूर्वोत्तर की सुरक्षा और व्यापार के लिए संकीर्ण सिलीगुड़ी गलियारे के विकल्प को तलाश रहा है और इसमें म्यांमार से सहयोग पर आधारित परियोजनाओं का पूर्ण होना बेहद जरूरी है। कलादान मल्टीमॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट समुद्री मार्ग से कोलकाता के पूर्वी भारतीय बंदरगाह को म्यांमार के राखीन राज्य में सिटवे बंदरगाह से जोड़ता है। म्यांमार में,यह सित्तवे बंदरगाह को कलादान नदी नाव मार्ग के माध्यम से चिन राज्य में पलेतवा से जोड़ेगा। और फिर पलेतवा से सड़क मार्ग द्वारा पूर्वोत्तर भारत में मिजोरम राज्य तक जोड़ेगा।
लोकतांत्रिक सरकार न होने के बाद भी भारत,म्यांमार की सेना से संबंध बनाएं रखते हुए पूर्वोत्तर के राज्यों में शांति स्थापना के प्रयासों में सफल हो रहा था। लेकिन अब स्थितियां भारत के अनुकूल नहीं दिखाई दे रही है। सिटवे शहर के नियंत्रण के लिए म्यांमार सेना और अराकान सेना के बीच लड़ाई चल रही है। अराकान आर्मी म्यांमार के कई जातीय सशस्त्र समूहों में सबसे नए लेकिन सबसे सुसज्जित समूहों में से एक है और कई वर्षों से राखीन राज्य और पड़ोसी चिन राज्य के कुछ हिस्सों में सेना से लड़ रहा है। इस विद्रोही समूह ने रखाइन में महत्वपूर्ण बढ़त हासिल कर ली है। अब वह इस क्षेत्र में बहुत मजबूत है और म्यांमार की सेना को इन क्षेत्रों से भागना पड़ा है। अराकानवासियों की सभ्यता अति प्राचीन है तथा म्यांमार से सांस्कृतिक और भाषाई भिन्नता भी है। रखाइन राज्य म्यांमार के दक्षिण पश्चिम में स्थित एक राज्य है। यह बंगाल की खाड़ी के साथ तटवर्ती है और पश्चिमोत्तर में बांग्लादेश से सीमावर्ती है। म्यांमार के उत्तर पश्चिमी तट बसा सितवे,रखाइन प्रांत की राजधानी है। सितवे बंदरगाह को लेकर कलादान परियोजना के सफल होने से भारत के पूर्वोत्तर हिस्सों में बल्कि उत्तरी और मध्य म्यांमार में नए व्यापार,परिवहन और बिज़नेस को बढ़ावा मिल सकता है। भारत की सीमा म्यांमार के काचिन राज्य,सागांग डिवीजन और चिन राज्य के साथ लगती है। मिज़ोरम के मिज़ो और म्यांमार के चिन जातीय चचेरे भाई बहन हैं। उनके सीमा पार संबंध हैं। खासकर ईसाई बहुल चिन राज्य की सीमा मिज़ोरम से सटी है। सीमा के दोनों तरफ नगा हैं। बंगाल की खाड़ी से लगे रखाइन प्रांत और पूर्वोत्तर से लगे चिन प्रांत के बड़े हिस्से अब विद्रोहियों के कब्जें में आ चूके है। यहां पर म्यांमार की सेना का कोई नियंत्रण नहीं बचा है।
भारत का पूर्वोत्तर का इलाक़ा दशकों से अलगाववादी विद्रोहों से प्रभावित रहा है। पूर्वोत्तर भारत के कई विद्रोही गुटों ने म्यांमार के सीमावर्ती गांवों और कस्बों में अपने शिविर बना रखे है। जनजातीय विद्रोहियों ने चिन राज्य के प्रमुख शहर पलेत्वा पर क़ब्जे का दावा किया है,इससे म्यांमार और भारत के बीच एक प्रमुख मार्ग बाधित हो गया है। काचीन,नागा और जो,भारत और म्यांमार की सीमा के दोनों और रहते है तथा वे किसी प्राकृतिक सीमा को नहीं मानते। भारत और म्यांमार के सीमावर्ती क्षेत्रों के निवासियों को बिना वीज़ा के एक दूसरे की सीमा में 16 किमी तक की यात्रा की इजाजत देता है। पूर्वोत्तर में अलगाव,स्वायत्तता और आत्मनिर्णय के अधिकार तथा विशेष अधिकारों और अपनी पहचान की सुरक्षा के लिए संघर्ष करने वाले जातीय समुदायों की म्यांमार के जातीय समूहों से संबद्धता छुपी हुई नहीं है। उल्फा ने 1980 के दशक में सैन्य प्रशिक्षण के लिए अपने कैडरों को म्यांमार की काचिन इंडिपेंडेंस आर्मी में भेजना शुरू किया था। मणिपुर के कई विद्रोही समूहों के शिविर म्यांमार में रहे है। ये विद्रोही समूह गुप्त स्रोतों से चीन म्यांमार सीमा पर हथियार हासिल करते हैं। म्यांमार में ये समूह नशीली दवाओं की तस्करी और अवैध खनन से भी बहुत पैसा कमाते हैं। इन संगठनों के उल्फा जैसे भारतीय अलगाववादी समूहों के साथ मजबूत संबंध के साथ-साथ म्यांमार में सशस्त्र अलगाववादी समूहों को चीन का समर्थन भी मिला है।
म्यांमार के अस्थिर होने और विद्रोही संगठनों के प्रभाव में आने से पूर्वोत्तर के अलगाववादी संगठन पुन: मजबूत हो सकते है। भारत के सामने यह भी चुनौती होगी की वे म्यांमार में अपने हितों की सुरक्षा के लिए किस पर निर्भर रहे। म्यांमार के सशस्त्र गुटों पर भरोसा इसलिए नहीं किया जा सकता क्योंकि वे पूर्वोत्तर के जातीय अलगाववादी संगठनों से अपने हितों को साझा करते रहे है। म्यांमार से लगती सीमा पर पूर्ण बाड़ बंदी से पूर्वोत्तर के जातीय समूह नाराज हो सकते है वहीं प्राकृतिक जटिलताओं के कारण यह संभव भी नहीं है। ऐसे में भारत को नए सिरे से अपनी सैन्य रणनीति पर आगे बढ़ने की जरूरत होगी। वहीं चीन को म्यांमार की अस्थिरता का बड़े पैमाने पर लाभ मिल सकता है। उसके म्यांमार के सशस्त्र समूहों से मजबूत संबंध है। म्यांमार में तेल और ऊर्जा के असीम भंडार है। चीन इनका दोहन करना चाहता है और विद्रोही गुटों के लिए यह आय का प्रमुख साधन बन सकता है। पूर्वोत्तर में भारत के महत्वपूर्ण साझेदार रहे म्यांमार में सेना के कमजोर होने से इन राज्यों में अलगाव का एक नया दौर फिर शुरू हो सकता है। पूर्वोत्तर के अलगाववादी समूहों को म्यांमार से विद्रोही संगठनों से जोड़कर पृथकतावाद को बढ़ावा देने की चीनी कोशिशें फिर से तेज हो सकती है। बहरहाल भारत को म्यांमार में शांति स्थापित करने के लिए गंभीर कूटनीतिक प्रयास करने की जरूरत है।
अस्थिर म्यांमार और भारत की मुश्किलें
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