राष्ट्रीय सहारा
मध्य और दक्षिणपूर्व यूरोप के चौराहे पर स्थित सर्बिया में हजारों लोगों ने चीन और सर्बिया के झंडे हाथों में लिए शी जिनपिंग का जिस गर्मजोशी से स्वागत किया है उसने यह संदेश दिया है कि चीन को रोकने की अमेरिकी कोशिशें नाकाफी साबित हो रही है और यह नई विश्व व्यवस्था में चीन के मजबूती से उभरने के संकेत है। दरअसल नई विश्व व्यवस्था में शक्तियां क्षेत्रीय आर्थिक संगठनों में केंद्रित है इसलिए कूटनीति का संचालन इसी व्यवहार पर आधारित होना चाहिए। शी जिनपिंग आर्थिक महाशक्ति बनने की चीनी प्रतिबद्धता को यूरोपीय यूनियन,आसियान और कुछेक क्षेत्रीय सहयोग मंच के जरिए बखूबी पूरा करने की ओर आगे बढ़ रहे है जिससे बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का चीन का ख्वाब पूरा होने की उम्मीदें भी बढ़ गई है। बेल्ट एंड रोड चीन की विदेश नीति का केंद्र बिंदु रहा है,इसके तहत चीन ने नई सड़कें,बंदरगाह,रेलवे और आधारभूत संरचना के निर्माण में अरबों डॉलर दांव पर लगाकर अपने व्यापारिक संबंधों को दुनिया भर में विकसित किया है। चीन की ये रणनीति एशिया,इंडो पैसिफिक,अफ्रीका से लेकर यूरोप तक गहरा प्रभाव छोड़ने में कामयाब रही है।
सर्बिया,मध्य बाल्कन के सुदूर दक्षिणी किनारों तक पहुंचने का मार्ग प्रशस्त करता है और यह देश बोस्निया और हर्जेगोविना,बुल्गारिया,क्रोएशिया,हंगरी, उत्तरी मैसेडोनिया,मोंटेनेग्रो और रोमानिया के साथ सीमा साझा करता है। सर्बिया में तेल,गैस,कोयला,लौह अयस्क,बॉक्साइट,तांबा,सीसा,जस्ता,सोना, चांदी,मैग्नीशियम, तथा संगमरमर के भंडार है। चीन ने सर्बिया में आधारभूत ढांचे को मजबूत करके यहां के लोगों के जीवन को ख़ुशहाल बनाने में बड़ी भूमिका निभाई है। चीन और सर्बिया ने बेल्ट एंड रोड पहल के ढांचे के तहत उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं,जिससे न केवल सर्बिया में लोगों की आजीविका में सुधार हुआ है,बल्कि दोनों देशों में विकास की गति भी बढ़ी है। ऐसे में यहां के लोगों का भरोसा चीन पर बढ़ा है और वह सहयोग को लगातार बढ़ाने को कृत संकल्पित भी दिखाई पड़ता है। सर्बिया और आसपास के बाल्कन देशों में पिछले कुछ सालों में चीन ने अरबों यूरो का निवेश किया है।
मध्य यूरोप के एक और देश हंगरी और चीन का सहयोग भी नई उंचाइयों पर है। बीजिंग में हंगेरियन सांस्कृतिक केंद्र वर्षों से सफलता के साथ काम कर रहा है। बुडापेस्ट में चीन सांस्कृतिक केंद्र का जल्द ही आधिकारिक उद्घाटन किया जाएगा। हंगेरियन भाषा पाठ्यक्रम कई चीनी विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में हैं। कन्फ्यूशियस संस्थान और कन्फ्यूशियस क्लासरूम हंगरी में लोकप्रियता और भागीदारी प्राप्त कर रहे हैं। शी जिनपिंग ने कहा है कि हम बेल्ट एंड रोड पहल और हंगरी की पूर्वी उद्घाटन रणनीति के बीच अधिक तालमेल बनाने के लिए हंगरी के साथ काम करेंगे और बुडापेस्ट बेलग्रेड रेलवे लिंक और अन्य महत्वपूर्ण सहयोग परियोजनाओं के निर्माण में तेजी लाएंगे। स्वच्छ ऊर्जा,कृत्रिम बुद्धिमत्ता, डिजिटल अर्थव्यवस्था,हरित विकास और अन्य उभरते क्षेत्रों में हंगरी के साथ चीन का सहयोग निरंतर मजबूत हुआ है।
यूरोप के इन दो देशों की यात्रा के पहले शी जिनपिंग फ़्रांस पहुंचे थे। फ़्रांस यूरोपीय संघ का महत्वपूर्ण सदस्य होने के बाद भी कूटनीतिक स्वायत्ता को लेकर अमेरिका के खिलाफ मुखर रहा है। पिछले वर्ष मेक्रों ने चीन की यात्रा के बाद वन चाइना नीति का समर्थन किया था। यह देखा गया है कि फ्रांसीसी राष्ट्रपति की नीतियां संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बीच न तो समान दूरी पर है और न ही प्रतिस्पर्धा में आधारित है। यूरोपीय संघ 27 सदस्य देशों का एक मजबूत संगठन है जो व्यापार,सुरक्षा,कृषि मत्स्य पालन,पर्यावरण और जलवायु सहित विभिन्न क्षेत्रों में काम करता है। वैश्विक कूटनीति में इसका अहम स्थान है। यूरोपीय संघ स्थिरता,सुरक्षा ,समृद्धि,लोकतंत्र,आधारभूत स्वतंत्रता एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विधि के नियमों को बढ़ावा देने के लिये कार्य करता है। अमेरिका के साथ इसके गहरे आर्थिक और सामरिक सरोकार है और नाटो इसका संवर्धन करता है। इंडो पैसिफिक में चीन सबसे बड़ी चुनौती है लेकिन फ्रांसिसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों का कहना है कि यूरोप को अमेरिका पर अपनी निर्भरता कम कर देनी चाहिए। जाहिर है चीन को लेकर यूरोपीय देशों और अमेरिका में मतभेद खुलकर सामने आते रहे है।
यूरोपीय संघ में शामिल हंगरी और फ़्रांस चीन के साथ सहयोग को नई ऊंचाइयों पर ले जा रहे है। इससे अमेरिका की उस मुहिम को धक्का लगा है जिसके अनुसार वह यूरोपीय देशों के मध्य आर्थिक,सामाजिक और क्षेत्रीय एकजुटता एवं समन्वय को बढ़ावा देता रहा है। अमेरिका यूरोप में साझा विदेशी एवं सुरक्षा नीति के लिए भी प्रतिबद्धता दिखाता रहा है लेकिन चीन के विरोध को लेकर एकरूपता दिखाई नहीं पड़ती।
बदलती वैश्विक परिस्थितियों में तथा चीन के यूरोप पर बढ़ते प्रभाव का असर एशिया,अफ्रीका,यूरोप से लेकर इंडो पेसिफिक पर भी पड़ सकता है। एशिया प्रशांत क्षेत्र में संचार के सुरक्षित समुद्री मार्ग को लेकर यूरोपीय संघ की स्पष्ट नीति रही है और चीन इसके मार्ग में बड़ी चुनौती नजर आता है। लेकिन अब ऐसा लगता है यूरोपीय संघ के कुछ देशों ने चीन के वैश्विक प्रभावों को स्वीकार कर लिया है। चीन ने 2012 में मध्य और पूर्वी यूरोपीय देशों के साथ सहयोग बढ़ाने के इरादे से एक फ़ोरम शुरू किया था। इसमें अल्बानिया,बोस्निया एवं हर्जेगोविना, बुल्गारिया,क्रोएशिया,चेक गणराज्य,एस्टोनिया,ग्रीस,हंगरी, लातविया,स्लोवाकिया,मॉन्टेनिग्रो,सर्बिया,पोलैंड नॉर्थ मेसिडोनिया,रोमानिया और स्लोवेनिया शामिल हैं। 2012 में पोलैंड के वारसा में इसका गठन हुआ था। इसके बाद हर साल इसका शिखर सम्मेलन अलग-अलग देशों में होता है।
दक्षिणपूर्वी,मध्य और पूर्वी यूरोप में चीन की भूमिका लगातार बढ़ रही है। अमेरिका की यह कोशिश रही है की वह यूरोपीय संघ के साथ एक ऐसी वैश्विक निवेश योजना पर आगे बढ़े जिसे चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के विकल्प के तौर पर सामने रखा जा सके। लेकिन जमीन पर ऐसा कोई भी प्रयास सफल नजर नही आता। बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव ही अब ग्लोबल गेटवे के रूप में प्रभाव छोड़ रही है और इससे यूरोप के कई देश इंकार भी नहीं कर रहे है। कोविड काल में चीन ने दुनिया को चमत्कृत करते हुए अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए यूरोपीय संघ का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बनने का इतिहास रचा था। चीन चाहता है कि यह कारोबार और बढ़े इसके लिए चीनी राष्ट्रपति यूरोप की यात्रा पर गए थे। यह भी दिलचस्प है कि चीन की उपस्थिति से जॉर्जिया,ग्रीस, हंगरी और रोमानिया में विकास तो हुआ है लेकिन लोकतांत्रिक मूल्य कमजोर भी हुए है। मध्य पूर्व,पूर्वी एशिया और पश्चिमी यूरोप में लंबे समय से चली आ रही क्षेत्रीय व्यवस्थाओं में या तो बदलाव आ रहा है या वो टूटकर बिखर रही हैं। व्यापार,हथियार नियंत्रण और पर्यावरण से लेकर मानव अधिकार तक के लिए काम करने वाले संयुक्तराष्ट्र के कमजोर पड़ने का फायदा चीन को मिल रहा है। चीन ईरान,उत्तर कोरिया और रूस जैसे देशों की मदद कर प्रतिबन्ध रहित समांतर वैश्विक व्यवस्था स्थापित करने में सफल रहा है। इन सबके बाद भी यूरोपीय संघ के कई देश आर्थिक प्रगति के लिए चीन को स्वीकार कर रहे है इससे लोकतंत्र,स्वतंत्रता और मानवीय मूल्यों पर गहरी चोट होने की आशंका बढ़ गई है।
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