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बांग्लादेशी हिंदू-जिंदगी की आखरी जंग….
1947 में पाकिस्तान की आबादी चार करोड़ थी, 2024 में पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान अर्थात् बांग्लादेश की आबादी कुल मिलाकर करीब 40 करोड़ है। उस दौरान पाकिस्तान में रहने वाले हिन्दू करीब एक करोड़ थे अर्थात् आबादी का चौथा हिस्सा लगभग 22 फीसदी। इन दोनों देशों में आबादी बढ़ने का स्तर दुनियाभर में सबसे ज्यादा है लेकिन यदि हिन्दुओं की बात करें तो वे कई इलाकों से खत्म होने की कगार पर है और सिमट कर अब महज सात फीसदी रह गए है। बांग्लादेश में शेख हसीना की सत्ता के तख्ता पलट के बाद हिन्दुओं की हत्या और उत्पीड़न की अनगिनत घटनाएं उस खौफनाक सच्चाई को स्वीकारने को मजबूर कर रही है कि संस्कृतिवाद,बहुलता और विविधता की समन्वयकारी पहचान के साथ भारत तो जिंदा रह सकता है लेकिन भारत से अलग हुए पाकिस्तान और बांग्लादेश को अपनी धार्मिक पहचान से ज्यादा कुछ भी मंजूर नहीं है। धार्मिक पागलपन की हद यह है कि इन इन दोनों देशों की बहुसंख्यक जनता हिंदू,बौद्ध,ईसाईयों और सिखों को मिटा देने को आमादा है तथा सत्ता और व्यवस्था को भी इस कृत्य से परहेज नहीं है।
बांग्लादेश के दो मुख्य राजनीतिक दलों अवामी लीग और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के बीच बांग्लादेश की राष्ट्र के तौर पर पहचान को लेकर गहरा मतभेद है। अवामी लीग 1947 में पाकिस्तान के साथ जाने को गलती और 1971 में उससे अलग होने को सांस्कृतिक रूप से मुक्ति की तरह देखती और प्रस्तुत करती रही है। वहीं बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के लिए 1947 में हुआ भारत का धार्मिक विभाजन ही बांग्लादेश की पहचान होना चाहिए अर्थात् बांग्लादेश को एक इस्लामिक देश होना चाहिए। एक और राजनीतिक दल जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश में इस्लामी शासन स्थापित करना चाहता है,इसे पाकिस्तान का सबसे बड़ा हिमायती माना जाता है। यहां तक की 1971 में जब बांग्लादेशी जब पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों का सामना कर रहे थे तब भी यह दल पाकिस्तान का समर्थन ले रहा था। इसने तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्ज़े का भी समर्थन किया था।
ढाका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ.अबुल बरकत के एक शोध के अनुसार यह दावा किया गया है कि करीब तीन दशक में बांग्लादेश से हिंदुओं का नामोनिशान मिट जाएगा। इस शोध के मुताबिक हर दिन अल्पसंख्यक समुदाय के औसतन 632 लोग बांग्लादेश छोड़कर जा रहे हैं। यदि यही दर आगे भी जारी रही तो अगले 30 सालों में देश से करीब-करीब सभी हिंदू चले जाएंगे। यह भी बेहद दिलचस्प है कि बंगलादेश के मुक्ति संग्राम में हिन्दुओं ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था और इसी के कारण 1971 में पूर्वी पाकिस्तान कहे जाने वाले और मौजूदा बांग्लादेश को पाकिस्तान के अत्याचारों से मुक्ति मिली थी। उस समय यह माना गया था कि बांग्लादेश भारत की तरह ही समावेशी विचारों वाला लोकतांत्रिक समाजवादी धर्मनिरपेक्ष गणराज्य होगा। लेकिन बांग्लादेश के राष्ट्रपिता मुजीबुर्रहमान की हत्या के बाद स्थितियां तेजी से बदल गई। बाद के शासकों जियाउर रहमान और जनरल एच.एम. इरशाद के सैन्य शासनकाल में देश का इस्लामीकरण तेजी से हुआ। खालिदा जिया जैसी नेताओं ने जमात ए इस्लामी जैसे संगठनों को मजबूती दी और इसी कारण बांग्लादेशी समाज में कट्टरता को बढ़ावा मिला। इसके सबसे ज्यादा घातक नतीजे यहां रहने वाले हिन्दुओं को भोगने को मजबूर होना पड़ा है।
हिन्दुओं की सम्पत्ति को शत्रु की सम्पत्ति बताने वाले कानून
पिछले कुछ वर्षों से बांग्लादेश में अवामी लीग को उदार बताया गया लेकिन इस देश में कोई ऐसे निर्णायक बदलाव देखने में नहीं आये है,जिनके दीर्घकालीन प्रभाव पड़ सके,खासकर सम्पत्ति नियमों को लेकर। गौरतलब है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश से हिन्दुओं के पलायन का प्रमुख कारण सम्पत्ति रही है जिस पर कब्जा करने के लिए मुस्लिमों द्वारा अक्सर और सुनियोजित रूप से उन्हें निशाना बनाया जाता है। 1965 में तत्कालीन पाकिस्तान सरकार ने शत्रु संपत्ति अधिनियम बनाया था,जिसे अब वेस्टेड प्रॉपर्टी एक्ट के नाम से जाना जाता है। भारत के साथ जंग में हुई हार के बाद अमल में लाए गए इस क़ानून के तहत 1947 में पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान से भारत गए लोगों की अचल संपत्तियों को शत्रु संपत्ति घोषित कर दिया गया था। बांग्लादेश में शत्रु संपत्ति अधिनियम’ की वजह से लाखों हिंदुओं को अपनी जमीनें गंवानी पड़ी थी। वेस्टेड प्रॉपर्टी एक्ट की वजह से बांग्लादेश में 1965 से 2006 के दौरान अल्पसंख्यक हिंदुओं के स्वामित्व वाली 26 लाख एकड़ भूमि दूसरों के कब्जे में चली गई। 2001 मे अवामी लीग की सरकार ने वेस्टेड प्रॉपर्टी एक्ट में बदलाव कर इसका नाम वेस्टेड प्रॉपर्टी रिटर्न एक्ट कर दिया। इस फैसले का मकसद बांग्लादेश में रहने वाले अल्पसंख्यकों को उनकी अचल संपत्तियों का लाभ दिलाना था। लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी है कि अदालत के निर्णय के बाद भी हिंदुओं का सम्पत्ति को शांतिपूर्ण हस्तान्तरण मुमकिन नहीं होता।
ईशनिंदा की अफवाह में झुलसतें हिंदू
बांग्लादेश में कट्टरपंथी संगठन जमात-ए-इस्लामी हिन्दुओं को बेदखल करने के लिए ईशनिंदा की अफवाह को हथियार की तरह प्रयोग करता है। 2021 में बांग्लादेश के कई इलाकों में दुर्गा पंडालों पर हमलें किये गये थे और उनमें भारी तोड़फोड़ की गयी थी । पुलिस जांच में सामने आया की जमात से जुड़े एक शख्स इक़बाल हुसैन ने चुपके से जाकर एक पंडाल में कुरान रख दी । इसके बाद ईशनिंदा की अफवाह फैलाकर बड़ी संख्या में हिन्दुओं पर हमलें किये गए।
कट्टरपंथी इस्लामी समूहों की गिरफ्त में बांग्लादेश
बांग्लादेश में कट्टरपंथी इस्लामी समूहों ने ख़ासी शोहरत बटोरी है और सभी सरकारें बढ़ती धार्मिक असहिष्णुता और कट्टरपंथ पर काबू पाने में नाकाम रही है। 2021 में एक हिंदू व्यक्ति ने इस्लामी संगठन हिफ़ाजत-ए-इस्लाम के महासचिव मौलाना मुफ़्ती मोमिनुल हक़ की आलोचना की थी। उसके बाद संगठन के कार्यकर्ताओं ने सुनामगंज गाँव में 80 हिंदू परिवारों पर हमले किए थे।नोआगाँव का उक्त हिंदू युवक मौलाना के किसी भाषण से नाराज़ था और उसने अपनी पोस्ट में उसकी आलोचना कर दी थी। 1990 के दशक में बांग्लादेश की एक लेखिका तस्लीमा नसरीन ने एक उपन्यास लिखा था,लज्जा। यह उपन्यास हिन्दुओं के उत्पीड़न को सामने लेन का प्रयास था। उपन्यास के प्रकाशित होते ही ये कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गईं। इस उपन्यास में उन्होंने साम्प्रदायिक उन्माद के नृशंस रूप को रेखांकित किया है। उपन्यास में धार्मिक कट्टरपन को उसकी पूरी बर्बरता से सामने लाने का प्रयास किया गया है। बढ़ते विरोध के चलते लज्जा पर प्रतिबंध लगा दिया गया और तस्लीमा नसरीन को देश छोड़ने को मजबूर होना पड़ा।
बांग्लादेश में मूर्ति विरोध की भयावहता
बांग्लादेश में कट्टरपंथी ताकतें किसी भी प्रकार की मूर्ति की स्थापना का कड़ा विरोध करती रही है। बांग्लादेश के कट्टरपंथी इस्लामिक समूह हज़रत-ए-इस्लाम के प्रमुख नेता जुनैद बाबूनगरी ने कहा था कि देश की सभी मूर्तियों को गिरा देंगे और कोई मायने नहीं रखता है कि कौन सी मूर्ति किसकी है। हज़रत-ए-इस्लाम ने बंगबंधु शेख मुजीबउर रहमान की 100 वीं जयंती पर उनकी मूर्ति लगाने का विरोध किया था। अब शेख हसीना के पद से हटते ही देशभर में बंगबंधु शेख मुजीबउर रहमान की मूर्तियों को अपमानित किया जा रहा है और उन्हें तोडा जा रहा है। कट्टरपंथी मन्दिरों को भी तोड़ने से परहेज नहीं करते । इस समय बांग्लादेश में बड़ी अस्थिरता है और इसीलिए कट्टरपंथी संगठन मन्दिरों पर हमलें कर रहे है और और उन्हें तोड़ रहे है।
बंगबंधु ने अवामी दल से मुस्लिम पहचान हटाई
पाकिस्तान बनने के बद 23 जून 1949 को ढाका में पूर्व पाकिस्तान अवामी मुस्लिम लीग नामक एक नई राजनीतिक पार्टी का गठन किया गया था। तब मौलाना अब्दुल हामिद खान भासानी को इसका अध्यक्ष बनाया गया था। उनके अलावा शमसुल हक को महासचिव और शेख मुजीबुर रहमान को संयुक्त सचिव चुना गया था। पार्टी के जन्म के करीब छह साल बाद इसके नाम से मुस्लिम शब्द हटा दिया गया । अवामी लीग सभी धर्मों के बीच अपना प्रभाव चाहती थी। अवामी लीग की धर्मनिरपेक्ष और गैर-साम्प्रदायिक नीतियों के कारण ही अल्पसंख्यक उससे जुड़ते चले गए। बांग्लादेश के मुक्ति युद्ध का नेतृत्व करने वाली ये पार्टी सत्तर के चुनाव में बहुमत हासिल करने के बावजूद पाकिस्तान की सत्ता में नहीं आ सकी थी। इसके बाद पूर्वी पाकिस्तान में विद्रोह हुआ और अलग बांग्लादेश के रूप में 1971 में नया देश बना। हालांकि कट्टरपंथी इस्लामिक ताकतों ने 15 अगस्त 1971 को शेख मुजीबुर रहमान की हत्या कर दी। शेख मुजीबुर रहमान की इच्छा के चलते 1971 में बांग्लादेश को संविधान में धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र माना गया था लेकिन उनकी हत्या के बाद 1977 बांग्लादेश का राष्ट्रीय धर्म आधिकारिक रूप से इस्लाम होने की घोषणा कर दी गई ।
जहां हिन्दुओं की आबादी ज्यादा,वहीं सबसे ज्यादा हमलें
बांग्लादेश को राज्य व्यवस्था की दृष्टि से 8 डिवीजन में बांटा गया है। बांग्लादेश के तीन डिवीजन ऐसे हैं,जहां हिंदू आबादी 10 फीसदी से अधिक है। वहीं बांग्लादेश के चार जिले ऐसे हैं जहां की आबादी 20 फीसदी से अधिक है। ढ़ाका डिवीजन के गोपालगंज जिले में हिंदुओ की आबादी 26 फीसदी है,वहीं खुलना जिले में 20 फीसदी से अधिक हिंदू रहते हैं। रंगपुर डिवीजन के ठाकुरगांव जिले में 22 फीसदी हिंदू निवास करते हैं। स्यालहाट के मौलवी बाजार जिले में 24 फीसदी हैं। गोपालगंज,दीनाजपुर,सिलेत,सुनमगंज,मयमसिंह,खुल्ना,जेसोर,चटगांव और चटगांव हिल ट्रैक्ट्स के कुछ हिस्सों में बड़ी संख्या में हिंदू बसे हुए है। राजधानी ढाका में भी हिन्दुओं की अच्छी खासी तादाद है। कला, शिक्षा,साहित्य और खेल में हिन्दू अग्रणी होकर पहचान बनाने में सफल रहे है। बांग्लादेश में हिन्दू जिन इलाकों में ज्यादा रहते है,वहां उनका व्यापार और व्यवसाय भी अच्छा होता है। जमात-ए-इस्लामी के कार्यकर्ता इन इलाकों पर कब्जें के लिए लोगों को उकसाते है और ईश निंदा के आरोप लगाकर हिन्दुओं को भगाने की साजिशें रचतें रहते है। दुर्गा पूजा पर इन्हीं इलाकों में सबसे ज्यादा हमलें होते है।
अल्पसंख्यक लड़कियों का उत्पीड़न और बलात शादी
बांग्लादेश में 12वीं में पढ़ने वाली एक हिन्दू छात्रा ने हाल ही एक चिट्ठी प्रधानमंत्री मोदी को भेज कर मदद की गुहार लगाई है। इस वर्ष बांग्लादेश हिंदू, बुद्धिस्ट,क्रिश्चियन ओइक्या परिषद ने एक रिपोर्ट पेश की जिसमें यह बताया गया है की अल्पसंख्यक समुदाय से जुडी लड़कियों का बड़े पैमाने पर अपहरण,शादी और उत्पीड़न जो रहा है। बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान हिंसा के शिकार हुए कई हिंदू पीड़ितों के लिए न्याय अभी नहीं मिल पाया है और कथित अपराधियों पर मुकदमा चलाने के प्रयासों का कट्टरपंथी हिंसक विरोध करते है। साल 2022 में अवामी लीग की सरकार होने के बाद भी हिन्दुओं पर बेतहाशा अत्याचारों की कई घटनाएं हुई। इस दौरान 154 हिंदू लोगों की हत्या,424 हिंदूओं पर जानलेवा हमलें ,849 लोगों को जान से मारने की धमकी, 39 हिंदू महिलाओं के साथ बलात्कार किया,27 हिंदू महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार,17 हिंदू महिलाओं की बलात्कार के बाद हत्या और 55 अन्य महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और बलात्कार करने का प्रयास जैसी खौफनाक घटनाएं हुई। बांग्लादेश में ऐसे आंकड़े हर वर्ष बढ़ रहे है ।
बांग्लादेश में हुजी एक कट्टरपंथी और आतंकी संगठन है,इसे बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और जमात-ए-इस्लामी का समर्थ हासिल है । इन संगठनों ने प्रशासन,नौकरशाही,सेना,मीडिया और यहाँ तक की गैर सरकारी संगठनों में भी घुसपैठ कर ली है। यह इस्लामिक बैंक ऑफ़ बांग्लादेश और विश्वविद्यालयों को भी नियंत्रित कर रहे है। बांग्लादेश की स्थापना में हिन्दुओं की बड़ी भूमिका रही। हिन्दुओं ने पाकिस्तान सेना के अत्याचारों को झेला,मुक्ति आंदोलन के दौरान हजारों लोग पाकिस्तानी गोली से मारे गए। बांग्लादेश के निर्माण और उत्थान के भागीदार वहीं हिन्दू अब कट्टरपंथी ताकतों के निशानें पर है। इस्लामिक अमीरात की तर्ज पर बांग्लादेश को गढ़ने में सबसे बड़ी बाधा हिंदूओं को समझा जा रहा है और कट्टरपंथी इसीलिए हिंदुओं का सफाया होने तक खामोश नहीं रहना चाहते ।
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