प्रजातन्त्र
राजनीति में शक्ति का प्रयोग बहुत विस्तृत रहा है और यही इसकी नकारात्मकता का कारण भी बनता रहा। शक्ति के नृशंसतंत्र के रूप में कार्य करने के उदाहरण अतीत और वर्तमान का आईना रहे है। दुनिया के विभिन्न भागों में इसे अभिशाप की तरह झेला गया और आज भी लोग मजबूर है। सम्पूर्ण सत्ता को केंद्रित करने वाला यह तंत्र अधिनायक कहलाता रहा है,जिसमें शासक शांति,व्यवस्था और सुरक्षा स्थापित करने का भरोसा देते है,उस दिशा में आगे बढ़ते हुए सम्पूर्ण शासन पर अपना सुदृढ़ अधिकार स्थापित करते है और उनकी यही शक्ति सारे अधिकारों का स्रोत बन जाती है। बापू सत्ता और शक्ति से प्रेम को लेकर बहुत स्पष्ट थे और इसके दुष्परिणामों को जानते थे। उन्होंने कहा,जिस दिन लोग शक्ति से प्रेम नहीं करेंगे,बल्कि प्रेम की शक्ति को पहचान लेंगे,उस दिन विश्व को शांति का मार्ग मिल जाएगा।
बापू की सीख अहिंसा पर आधारित रही और उन्होंने शक्ति में प्रेम को ढूंढा। वहीं दुनिया भर की विभिन्न व्यवस्थाओं में राजनीतिक प्रतिनिधित्व आम तौर पर यह भरोसा दिलाता आया है की सत्ता को मजबूत होना चाहिए जिससे राष्ट्र को मजबूती मिलती रहे। बापू के लिए सत्ता की मजबूती से ज्यादा जनता की मजबूती रही। उन्होंने कहा,सत्ता जब जन सामान्य के हित का संरक्षण नहीं कर सके तो ऐसी सत्ता के खिलाफ जनता का अहिंसक प्रदर्शन होना चाहिए और शासक वर्ग को शासित वर्ग को रोकने का प्रयास नहीं करना चाहिए।
अमेरिका के एक विदेश मंत्री थे हेनरी किसिंजर । वे कहते थे,वैधता के बिना शक्ति अपनी दृढ़ता को प्रमाणित नहीं कर पाती,शक्ति के बिना वैधता कोरा आडम्बर सिद्ध होती है। यदि किसिंजर के दावे पर भरोसा किया जाएं तो लोकतांत्रिक देशों में मजबूत हुई कई सर्वाधिकारवादी नेताओं और तंत्रों ने शासन की वैधता को चुनौती देने वालों को कुचल दिया। जनता से ज्यादा जब सत्ता मजबूत हो जाएं तो उससे उत्पन्न शक्ति कितनी घातक हो सकती है,यह चीन में देखने को मिलता है। चीन अपनी वैश्विक छवि को चमकाने के लिए बेकरार रहता है और इसके चलते मीडिया पर सख्त प्रतिबंध है,जिससे देश की सही स्थिति का पता लगाना नामुमकिन कर दिया गया है। चीन में आर्थिक कायापलट से न केवल चीनी नागरिकों के बीच आर्थिक संपन्नता आई बल्कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की सत्ता पर पकड़ और मज़बूत हुई है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में अव्वल स्थान पर रहने को बेताब चीन के पास इस समय सबसे ज्यादा विदेशी मुद्रा का भंडार है। दुनिया में जीडीपी के आकार के मामले में वह दूसरा सबसे बड़ा देश है जबकि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित करने में चीन दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी जिसे सीसीपी कहा जाता है,यह चीन की एक मात्र राजनीतिक पार्टी है। 1949 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना के बाद से,सीसीपी ही सरकार और राजनीतिक पार्टी है। माओ इसके सर्वोच्च नेता के रूप में उभरे। सीसीपी के क्रिया कलापों को लेकर देश में गंभीर असहमति उत्पन्न हुई। 1989 के वसंत में तियानमेन स्क्वायर घटना को नरसंहार के रूप में दुनिया भर में याद किया जाता है। उस दौरान लोग व्यक्तिगत स्वतंत्रता,लोकतंत्र और मानवाधिकार की मांग को लेकर बीजिंग के तियानमेन स्क्वायर पर इकट्ठा हुए तो सुरक्षाबलों ने छात्रों को टैंकों से कुचल दिया और गोलियों से सैकड़ों लोगों को भून दिया। चीन में इस दिन को याद करने पर भी प्रतिबन्ध है। आज चीन दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश माना जाता है। चीन के लोगों का जीवन स्तर भी बेहतर माना जाता है और इस साम्यवादी देश की सत्ता भी बहुत मजबूत है। लेकिन सत्ता और देश की मजबूती का अर्थ सभी लोगों की खुशहाली से बिल्कुल नहीं है,महात्मा गांधी यहीं समझाते है।
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तियानमेन स्क्वायर के तीस साल पूरे होने पर चीन के तत्कालीन रक्षामंत्री वी फ़ेंघी ने एक क्षेत्रीय फ़ोरम में कहा था कि उस समय बढ़ती अशांति को रोकने के लिए यह नीति अपनाना ही सही था। जाहिर है इससे साफ है कि चीन की साम्यवादी सरकार अन्तर्राष्ट्रीय दबाव को लेकर अप्रभावित रही है। इसे कोरोना के उदाहरण से बखूबी समझा जा सकता है। चीन के वुहान शहर से फैले कोरोना वायरस को लेकर अब यह दावे भी सामने आए कि मरने वाले लोगों के शवों को लपेटा गया और वहां से कहीं और ले जाया गया। इससे यह पता लगाना मुश्किल हो गया कि इस तरह से हुई मौतों को कोरोना वायरस के कारण हुई मौतों में गिना गया या नहीं। इससे पहले चीन ने उस डॉक्टर को अपना निशाना बनाया था जिन्होंने इस वायरस के भयावह प्रभावों को लेकर प्रशासन को आगाह किया था। वुहान सेंटर अस्पताल के नेत्र-विशेषज्ञ वेनलियान्ग कोरोना वायरस से संक्रमित हो गए थे और उन्होंने अपने साथी डॉक्टरों को चेताया था कि उन्होंने कुछ मरीज़ों में सार्स जैसे वायरस के लक्षण देखे हैं। इसके बाद स्थानीय पुलिस ने उनसे मुंह बंद रखने को कहते हुए कड़ी चेतावनी दी थी कि वे लोगों को भ्रमित ना करे। इसके बाद भी डॉक्टर ली वेनलियांग ने साहस दिखाते हुए अस्पताल से अपनी कहानी एक वीडियो के ज़रिए पोस्ट कर दी थी। बाद में कोरोना वायरस की भयावहता से यह साफ हो गया कि डॉक्टर ली की चिंता सही थी लेकिन सरकारी दबाव से समय रहते एहतियातन कदम नहीं उठाएं गए और नतीजा कई हजार लोग मौत का शिकार हो गए।
सत्ता,शक्ति का उपयोग किए बिना लोगों की खुशहाली और प्रेम से भी मजबूत हो सकती है,यह भूटान ने दिखाया है। संवैधानिक राजतन्त्र किंगडम ऑफ भूटान क्षेत्रफल और जनसंख्या की दृष्टि से दुनिया में बहुत पीछे है। लेकिन बापू के शासन व्यवस्था को लेकर सीख का बखूबी पालन करता है। भूटान ने पिछले दो दशकों में अत्यधिक गरीबी को दूर करने में उल्लेखनीय प्रगति की है। इस देश में सकल राष्ट्रीय खुशी नामक एक अनूठी विकास रणनीति अपनाई गई है। भूटान की शाही सरकार द्वारा विकसित जीएनएच सूचकांक, मानव समृद्धि के जटिल ताने-बाने में गहराई से उतरता है। यह एक साहसिक अवधारणा है जो भौतिक लक्ष्यों से परे है। बापू कहते थे कि सामाजिक और प्राकृतिक पूंजी की उपेक्षा करने से मानसिक स्वास्थ्य,आजीविका और समग्र कल्याण पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। भूटान ने इसे अपनी नीति बनाया है। भूटान का जीएनएच इंडेक्स इन महत्वपूर्ण आयामों पर ध्यान आकर्षित करता है और प्रगति का आकलन करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करता है। सकल राष्ट्रीय प्रसन्नता की ओर भूटान की यात्रा एक ऐसे भविष्य के लिए मार्गदर्शक प्रकाश का काम करती है,जहां समृद्धि की खोज,खुशी की खोज के साथ संरेखित होती है।
सकल राष्ट्रीय प्रसन्नता की खोज में निकला भूटान मानव अस्तित्व और मानवीय मनोभावों की सही अभिव्यक्ति है या दुनिया में आर्थिक और सामरिक शक्ति बनने की राह पर निकला चीन,जिसके लिए राष्ट्रीय प्रसन्नता में जनता की मूल अभिव्यक्ति नदारद है। इन दोनों देशों में सत्ता के उद्देश्य का अंतर जिस दिन हम समझ जायेंगे,बापू के साथ हम भी खड़े नजर आने लगेंगे।
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गांधी है तो भारत है
बापू का खुशहाल भूटान चाहिए या शक्तिशाली चीन
- by brahmadeep alune
- January 30, 2025
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