म्यांमार में लोकतांत्रिक शासन की बहाली भारत की जरूरत
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म्यांमार में लोकतांत्रिक शासन की बहाली भारत की जरूरत

जनसत्ता

भारत की पहली प्राथमिकता म्यांमार में लोकतांत्रिक शासन की बहाली और आंग सान सू की जेल से रिहाई होना चाहिए। अभी सैन्य सरकार  गहरे दबाव में है और देश को टूटने से बचाने के लिए वह भारत की मध्यस्थता को स्वीकार  करने को मजबूर होगी। म्यांमार के आम लोगो और गांधीवादी नेता आंग सान सू में भारत के प्रति गहरा सम्मान है। भारत यदि म्यांमार में लोकतंत्रिक शासन लाने में सफल हो जाता है तो न केवल भारत की सभी रणनीतिक परियोजनाएं पूरी हो सकती है बल्कि बांग्लादेश तथा चीन पर कूटनीतिक और मनौवैज्ञानिक बढ़त भी हासिल की जा सकती है।  बैंकॉक में म्यांमार के वरिष्ठ जनरल मिन आंग ह्लाइंग और भारत के प्रधानमंत्री की मुलाकात से संभावनाएं बढ़ी है।   

बांग्लादेश के दो बंदरगाह है,चटगांव और मोंगला का बंदरगाह। हिन्द महासागर में भू-रणनीतिक दृष्टि से ये दोनों बंदरगाह बहुत महत्वपूर्ण है जो मल्टीमॉडल नेटवर्क के जरिए बांग्लादेश को अपने भीतरी क्षेत्रों के साथ ही पड़ोसी देशों भारत,नेपाल,भूटान,म्यांमार और थाईलैंड के साथ एक निकटवर्ती क्षेत्र से जोड़ता है। इसी वज़ह से बांग्लादेश,हिमालयी देशों नेपाल और भूटान और भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र को अपने बंदरगाहों के माध्यम से समुद्र तक पहुंच प्रदान करने में सहायक साबित हो सकता है। हाल ही में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस जब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिले तो उन्होंने बांग्लादेश की रणनीतिक स्थिति को भारत को चुनौती देने के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश की।

मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार के आने के बाद भारत और बांग्लादेश के संबंध बेहद खराब दौर से गुजर रहे है,ऐसे में भारत को अपने सामरिक और आर्थिक हितों के संचालन के लिए बांग्लादेश पर निर्भरता खत्म करने की जरूरत महसूस होने लगी है। अब भारत की नजर उत्तर पूर्व के एक और पड़ोसी देश म्यांमार पर है जो राजनीतिक अस्थिरता के बाद भी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से भारत से जुड़ा हुआ है।  हाल ही में बैंकॉक में बिम्सटेक शिखर सम्मेलन के दौरान म्यांमार के वरिष्ठ जनरल मिन आंग ह्लाइंग से भारत के प्रधानमंत्री की मुलाकात हुई तथा दोनों देशों के बीच  द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के साथ कनेक्टिविटी,क्षमता निर्माण,बुनियादी ढांचे के विकास और अन्य क्षेत्रों पर चर्चा  हुई। सैन्य शक्ति,ठोस रक्षा तंत्र और मानवीय मदद के साथ पड़ोसी देशों के साथ साझेदारी की भारत की नीति,देश की भौगोलिक स्थिति और उसकी रणनीतिक प्राथमिकताओं  के अनुसार रही है।  म्यांमार के पश्चिम में बांग्लादेश  तथा पश्चिम और उत्तर-पश्चिम में भारत है।  म्यांमार दक्षिण में अंडमान सागर और बंगाल की खाड़ी से जुड़ा है। यह क्षेत्र प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय समुद्री मार्गों में से एक है। इसके तटीय क्षेत्र चीन और भारत जैसे बड़े देशों के लिए व्यापार मार्गों के संदर्भ में महत्वपूर्ण हैं। चीन और भारत दोनों के लिए यह क्षेत्र एक कनेक्टिविटी हब की तरह काम करता है,जो उनकी समुद्री व्यापारिक गतिविधियों के लिए अहम है।

म्यांमार का समुद्र तट लगभग दो हजार आठ सौ किलोमीटर लंबा है,जो इसे अंडमान सागर और बंगाल की खाड़ी से जोड़ता है। इस समुद्र तट की रणनीतिक और आर्थिक महत्ता है,क्योंकि यह अंतरराष्ट्रीय समुद्री व्यापार के लिए महत्वपूर्ण रास्तों का हिस्सा है। म्यांमार की सीमा भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों से जुड़ी हुई है और यह भारत के लिए रणनीतिक दृष्टि से अहम है। म्यांमार आसियान का एकमात्र सदस्य देश है जिससे भारत की समुद्री और भू भागीय दोनों सीमा मिलती है। भारत की पूर्व की और देखों नीति अपनाने से म्यांमार का महत्व ज्यादा बढ़ गया है। भारत को चीन की सामरिक चुनौतियों से लगातार जूझना पड़ रहा है,ऐसे में म्यांमार में भारत की मजबूत स्थिति भारत को चीन पर मनौवैज्ञानिक बढ़त दे सकती है। दक्षिण-पूर्व एशिया के उत्तरी छोर पर स्थित म्यांमार, चीन के साथ दो हजार किलोमीटर से ज्यादा  की सीमा साझा करता है। मलक्का जलडमरूमध्य हिंद महासागर और प्रशांत महासागर को जोड़ता है। यह दुनिया के सबसे व्यस्त समुद्री मार्गों में से एक है। यह एशिया प्रशांत को भारत और मध्य पूर्व से जोड़ने वाला सबसे छोटा समुद्री मार्ग भी है। भारत अदन की खाड़ी और मलक्का जलडमरूमध्य के बीच पूरे क्षेत्र को अपने प्रभाव का हिस्सा मानता है,यह इलाका भारत के समुद्री व्यापार के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है। देश की 80 फ़ीसदी ऊर्जा आपूर्ति इसी जलमार्ग से होकर  गुजरती है,इसलिये भारत के व्यापारिक और सामरिक हितों के लिए ये समुद्री क्षेत्र बहुत ही संवेदनशील है। चीन के समुद्री परिवहन का मुख्य मार्ग दक्षिण चीन सागर से मलक्का जलडमरूमध्य के माध्यम से हिंद महासागर और लाल सागर में है। चीन को डर है कि किसी बड़े युद्ध की स्थिति में हिंद महासागर के माध्यम से इन एसएलओसी की नाकाबंदी हो सकती है।

चीन म्यांमार में सबसे बड़ा निवेशक है। वह म्यांमार की सेना को सबसे ज्यादा हथियारों की आपूर्ति करता है। म्यांमार की सैन्य सत्ता को हथियार,जासूसी विमान और समुद्री सुरक्षा समेत अन्य मदद चीन देता रहा है। ग्रेटर कोको द्वीप,अराकान तट के पास रैमरी द्वीप,,रंगून के मंकी प्वाइंट और क्रे प्रायद्वीप के पास स्थित ज़डेटक्यी क्यून द्वीप पर आधारभूत ढांचा बनाने में चीन की कंपनियां भागीदार है। लेकिन अब देश की परिस्थितियां चीन के पक्ष में नजर नहीं आ रही है। म्यांमार के अधिकांश इलाकों पर विद्रोही संगठनों का कब्जा हो गया है।  जनरल मिन आंग ह्लाइंग ने 2021 में एक सैन्य तख्तापलट का नेतृत्व किया,जिसने देश की लोकतांत्रिक सरकार को हटा दिया था और म्यांमार को हिंसा में धकेल दिया था।  लोकतांत्रिक सरकार को हटाने से नाराज करीब 16 जातीय समूहों ने मिलकर पीपल्स डिफेंस फ़ोर्स के जरिए सेना के खिलाफ संघर्ष छेड़ दिया है। शहरों के आम नागरिक पीपल्स डिफेंस फ़ोर्स में शामिल हो रहे हैं। पीडीएफ़ की शुरुआत में लोगों के पास कोई हथियार नहीं थे लेकिन अब वे सेना से हथियार लूट रहे है और विस्फोटक भी बना रहे है। संयुक्त राष्ट्र अपील कर चूका है कि म्यांमार की सेना को हथियार नहीं बेचे जाएं क्योंकि वह आम नागरिकों को निशाना बना रहा है। वहीं रूस और चीन सेना को भारी हथियारों की खेप भेज रहे है। म्यांमार की सेना ने पिछले दिनों विद्रोह पर अंकुश के लिए कई हवाई हमले किए हैं। लोगों का गुस्सा चीन पर फूट रहा है और चीन का बड़े पैमाने पर विरोध भी हो रहा है। म्यांमार के विद्रोहियों ने देश के उत्तरपश्चिम में स्थित चीन समर्थित खदानों पर हमले की चेतावनी जारी की हैइन विद्रोहियों का कहना है कि ऐसी परियोजनाओं का मुनाफ़ा सीधा सैन्य शासन की जेब में जाता है और अगर ये परियोजनाएं रोकी नहीं गईं तो खदानों पर हमला किया जाएगा

पीडीएफ की असली ताक़त ज़मीनी स्तर पर स्थानीय समुदाय का समर्थन है। ज़मीनी स्तर पर होने वाले विरोध प्रदर्शन कहीं ज़्यादा संगठित होकर संघर्ष कर रहे हैं।  निर्वासित नेशनल यूनिटी सरकार की सरकार भी इस संघर्ष में मदद कर रही है और वे पीडीएफ़ की कुछ यूनिटों को संचालित कर रही है। पीडीएफ  सैन्य सरकार के दूर दराज वाले पुलिस स्टेशनों और सरकारी दफ़्तरों को निशाना बना रहा है। वे उस पर हमला करके हथियार और बम पर कब्जा कर लेते हैं। इसके अलावा टेलिकॉम टॉवर और बैंकों को भी निशाना बना रहे हैं। लोगों का कहना है सेना आम लोगों की जीविका को छीन रही है और यह स्वीकार योग्य नहीं है।  सेना पीडीएफ़ के लड़ाकों को चरमपंथी मानती है और इससे संघर्ष बढ़ गया है। सीमावर्ती इलाकों में सक्रिय सशस्त्र समूह युद्धविराम को खत्म करके पीडीएफ़ को प्रशिक्षण और हथियार दे रहे है। इन सबके बीच म्यांमार में राजनीतिक स्थिरता भारत के लिए रणनीतिक बढ़त का काम करती रही है।  करीब डेढ़ दशक पहले भारत ने कलादान मल्टी मॉडल ट्रांजिट पोर्ट प्रोजेक्ट की अति महत्वाकांक्षी परियोजना के माध्यम से म्यांमार के साथ अपने हितों को निकटता से जोड़ने की दीर्घकालीन रणनीति पर कार्य शुरू किया था। यह परियोजना भारत के पूर्वी बंदरगाहों को म्यांमार के सिटवे बंदरगाह और आगे पूर्वी भारत को म्यांमार के माध्यम से समुद्र,नदी और सड़क के माध्यम से जोड़ती है।  म्यांमार में चल रहे संघर्ष और सुरक्षा स्थिति के कारण,परियोजना पर प्रगति धीमी रही है। भारत का पूर्वोत्तर का क्षेत्र सामरिक रूप से बेहद संवेदनशील  है। भारत पूर्वोत्तर की सुरक्षा  और व्यापार के लिए संकीर्ण सिलीगुड़ी गलियारे के विकल्प को तलाश रहा है और इसमें म्यांमार से सहयोग पर आधारित परियोजनाओं का पूर्ण होना बेहद जरूरी है। कलादान मल्टीमॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट समुद्री मार्ग से कोलकाता के पूर्वी भारतीय बंदरगाह को  म्यांमार के राखीन राज्य में सिटवे बंदरगाह से जोड़ता है। म्यांमार में,यह सित्तवे बंदरगाह को कलादान नदी नाव मार्ग के माध्यम से चिन राज्य में पलेतवा से जोड़ेगा। और फिर पलेतवा से सड़क मार्ग द्वारा पूर्वोत्तर भारत में मिजोरम राज्य तक जोड़ेगा।  इसका उद्देश्य एक नया संपर्क मार्ग बनाना तथा आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है,विशेष रूप से भारत के चारों ओर स्थल से घिरे पूर्वोत्तर राज्यों के लिए। चटगांव बंदरगाह,म्यांमार में सितवे पोर्ट के साथ भी कारोबार कर सकता है,क्योंकि वह भौतिक रूप से इस पोर्ट के बेहद करीब है। वहीं सितवे पोर्ट भारत की संभावनाओं का बड़ा विकल्प बन सकता है।

म्यांमार की अपदस्थ नागरिक नेता आंग सान सू की को फरवरी 2021 में तख्तापलट के बाद सेना द्वारा हिरासत में लेने के बाद नजरबंद कर दिया गया है। तख्तापलट के बाद से म्यांमार में गृहयुद्ध छिड़ गया है,जिसमें हज़ारों लोग मारे गए हैं। सेना पर लगाए गए प्रतिबंध हिंसा को रोकने में विफल रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने तख्तापलट के बाद जुंटा के अधिकारों के हनन की निंदा करते हुए एक प्रस्ताव पारित कर राजनीतिक कैदियों की रिहाई की मांग  कर चूका है। वहीं सैन्य शासन वैश्विक प्रतिबंधों का सामना कर रहा है। म्यांमार में लोकतांत्रिक शासन की बहाली से न केवल इस देश में शांति आ सकती है बल्कि इस पर भारत का प्रभाव काफी हद तक बढ़ सकता है। चीन अपने फायदों के लिए वहां सैन्य शासन बने रहना देना चाहता है। भारत म्यांमार की राजनीतिक स्थिति को बदल कर गहरे रणनीतिक और आर्थिक लाभ अर्जित कर सकता है। इस समय भारत को ऐसे अहम कूटनीतिक कदम  उठाने की सख्त जरूरत है।

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