राष्ट्रीय सहारा
बांग्लादेश में लाखों मजदूर सड़कों पर है। ये मजदूर गारमेंट फैक्ट्रियों के बंद होने से परेशान हैं। जो फैक्ट्रियां चल रही हैं,वहां काम करने वाले मजदूरों को वेतन नहीं मिल रहा है। मजदूरों के लगातार विरोध प्रदर्शन के कारण कई फैक्ट्रियां बंद हो गई हैं। निवेशक बांग्लादेश छोड़कर जा रहे है जबकि मजदूर कारखाने को दोबारा खोलने, बकाया अवकाश भुगतान और बोनस की मांग को लेकर देशभर में प्रदर्शन कर रहे है। बांग्लादेश में अभी भी बड़ी संख्या में लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। ग्रामीण इलाकों में रोजगार की कमी,स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता में कमी और शिक्षा का स्तर कम है। बड़ी संख्या में लोग कृषि, कुटीर उद्योग या असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं,जहां उन्हें उचित वेतन या सुविधाओं में भारी कमी या गई है। अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस को सत्ता में लाने वाले छात्र संगठन भी अब उनका विरोध कर रहे है। बांग्लादेश के नए राजनीतिक दल तथा मूलत: छात्र राजनीति से जन्में नेशनल सिटिज़न पार्टी ने यूनुस और सेना पर निशाना साध कर भारत के प्रभाव के आरोप लगाएं है। इस प्रकार बांग्लादेश की आंतरिक स्थितियां बेहद चुनौतीपूर्ण हो गई है तथा कट्टरपंथ समस्याओं को बढ़ा रहा है।
कुछ सालों पहले नया एशियाई टाइगर के नाम से मशहूर बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार के हटने और राजनीतिक अस्थिरता के कारण विदेशी निवेश रुक गया है। मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में बांग्लादेश की सरकार के फ़ैसलें विवाद को बढ़ा रहे है। बांग्लादेश की समस्याएं जटिल और विविध हैं,ये समस्याएं राजनीतिक,धार्मिक,आर्थिक,सामाजिक,पर्यावरणीय और सुरक्षा संबंधी हैं। इनका समाधान करने के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता होती है जबकि यूनुस का ध्यान पाकिस्तान जैसे देशों से बेहतर संबंधों पर है। बांग्लादेश में राजनीतिक दलों के बीच पाकिस्तान के प्रति दृष्टिकोण में विभाजन है। जहां एक ओर अवामी लीग जैसे दल पाकिस्तान से अपने रिश्ते को नकारते हैं,वहीं कुछ अन्य दल पाकिस्तान के साथ रिश्तों को फिर से मजबूत करने की बात करते हैं। बांग्लादेश की प्रमुख इस्लामी पार्टी,जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान के साथ ऐतिहासिक रूप से अच्छे संबंध रखती है,यह पार्टी पाकिस्तान के साथ राजनीतिक और धार्मिक जुड़ाव को महत्त्व देती है। बांग्लादेश में इस्लामिक कट्टरवाद और धार्मिक दलों का पाकिस्तान के प्रति समर्थन हमेशा एक जटिल मुद्दा रहा है। कट्टरपंथी और प्रतिबंधित संगठन हिज़बुत तहरीर के खुले आम प्रदर्शनों से कानून व्यवस्था की स्थिति और बिगड़ रही है। यह संगठन बांग्लादेश में शरिया क़ानून लागू करने के लिए आंदोलन कर रहा है।
1990 के दशक में सैन्य तानाशाही के पतन के बाद तथा लोकतांत्रिक शासन की वापसी के बाद सैन्य हस्तक्षेप की स्थिति में इस देश कमी आई है। फिर भी सैन्य शासन के दौर की घटनाएं बांग्लादेश की राजनीति और समाज के लिए एक चेतावनी बनी रहती हैं। बांग्लादेश की राजनीति में सैन्य तख्तापलट और लोकतांत्रिक सरकारों के बीच संघर्ष का लंबा इतिहास रहा है। बांग्लादेश में वर्तमान में सैन्य शासन नहीं है,लेकिन सेना का प्रभाव राजनीति और सामाजिक रूप से अभी भी बना हुआ है। शेख हसीना के सत्ता से हटाने के बाद छात्र संगठनों के प्रभाव में देश की कानून व्यवस्था की स्थिति को गहरी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। मोहम्मद यूनुस देश में राजनीतिक स्थिरता लाने में असफल रहे है,वे बदले की उसी राजनीति का प्रतिनिधित्व करते दिखाई पड़ रहे है जिससे यह देश अभिशप्त रहा है। बांग्लादेश कट्टरपंथ और उदारवादी समाज के बीच अंतर्विरोध का सामना करता रहा है, इस समय स्थिति ज्यादा जटिल नजर आ रही है तथा देश में कानून और व्यवस्था की स्थिति को लेकर अनिश्चितता बढ़ गई। सेना ने इस स्थिति को देश की संप्रभुता के सामने बड़ी चुनौती से जोड़कर राजनीतिक सत्ता पर नियंत्रण के संकेत भी दे दिए है।

सैन्य शासन उस राजनीतिक व्यवस्था को कहा जाता है जिसमें देश की सरकार का नियंत्रण सेना के हाथों में होता है। आम तौर पर सैन्य शासन तब लागू होता है जब सेना सरकार का नियंत्रण हथिया लेती है,ऐसा विद्रोह,तख्तापलट या आपातकालीन
स्थिति के दौरान होता है। बांग्लादेश में सैन्य शासन का इतिहास मिश्रित और संघर्षपूर्ण रहा है। 1971 में स्वतंत्रता संग्राम के बाद, बांग्लादेश की राजनीति में सैन्य तख्तापलट और लोकतांत्रिक सरकारों के बीच संघर्ष देखा गया है। हालांकि पिछले साल शेख हसीना को सत्ता से बेदखल करने के बाद भी सेना ने बेहद संयम दिखाया था,जो अब टूटता हुआ दिखाई दे रहा है।
बांग्लादेश की सीमा का 94 फीसदी हिस्सा भारत से लगता है और भारत के साथ रिश्ते बांग्लादेश के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। पिछले साल अगस्त में शेख हसीना के देश छोड़ने के बाद से मोहम्मद यूनुस की भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से एक बार भी
मुलाकात नहीं हुई है। बांग्लादेश में समय-समय पर आतंकी हमलों और हिंसा की घटनाएँ घटित होती रही हैं, जो भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को चुनौती देती हैं। बांग्लादेश को ड्रग तस्करी का मुख्य मार्ग माना जाता है,जो राष्ट्रीय सुरक्षा और कानून व्यवस्था के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है। बांग्लादेश और भारत के बीच एक लंबी और संवेदनशील सीमा है, जो चार हजार किलोमीटर से भी ज्यादा है। बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता के कारण सीमा पर नियंत्रण कमजोर हो सकता है, जिससे अवैध प्रवासन,आतंकवादियों की घुसपैठ, और संगठित अपराध बढ़ सकते हैं। अवामी लीग शेख़ हसीना की पार्टी है और
जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश समेत कई राजनीतिक धड़े अवामी लीग के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे हैं। यह स्थिति भयावह है और इससे व्यापक राजनीतिक हिंसा फैल सकती है।







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