आदिवासी बाहुल्य इलाकों में लड़कियों का जन्म से लेकर संरक्षण तक बेहतर ढंग से होता है,वह परिवार,समाज,अर्थ,संस्कृति,धर्म या युद्द हो,सबमें नेतृत्व करती है और उनका सम्मान भी सबसे बढकर होता है।
सुकमा में तैनात विशेष सशस्त्र पुलिस की स्पेशल कमांडों मीना कहती है की औरतों में ताकत किसी से कम नहीं होती है,वह मर्दों से ज्यादा लड़ सकती है।
शाम ढल चूकी थी और घने जंगलों से गुजरते हुए रात के करीब साढ़े आठ बजे अल्लापल्ली से 10 किलोमीटर पहले मुझे अपनी बाइक अचानक रोकना पड़ी। दरअसल सड़क को एक अजगर पार कर रहा था। कुछ क्षण रुकने के बाद मैं अपनी मंजिल की ओर फिर से चल पड़ा। महाराष्ट्र के गडचिरोली जिले के दक्षिणी भाग में अहेरी तहसील है और यहीं से शुरू होते है अल्लापल्ली के जंगल। अल्लापल्ली एक कस्बा है और इसके बाद नक्सली दुनिया भी शुरू हो जाती है। इन इलाकों में वन के बड़े क्षेत्र है जो विशाल आकार में फैले हुए है। इन्हें आरक्षित वन भी कहा जाता है। अंग्रेजों के जमाने से ही इन वनों का संरक्षण प्रारम्भ किया गया था। यहां पेड़ की प्रजातियों में सागौन,तेंदू,धवला,कुसुम और येन के पेड़ शामिल हैं। जंगल किनारें पाई जाने वाली झाड़ियों और जड़ी-बूटियों में गंज,तारोटा,गुलवेल जैसे बेशकीमती वन्य पदार्थ मिलते है। भारत सरकार ने पहली बार 1953 में इनका संरक्षण के लिए नामित किया गया था तथा 2014 में महाराष्ट्र में पहली जैव विविधता विरासत स्थल के रूप में घोषित किया गया था। इन वनों में 130 से अधिक पुष्प प्रजातियों है। अल्लापल्ली से शुरू होने वाला वनक्षेत्र इतना घना है कि शेर,बाघ,हाथी,भेडिये,हिरन,बारहसिंघे जैसे वन्य जीव कभी भी आपके सामने आ सकते है। यहां कई किलोमीटर तक घने जंगलों से गुजरते हुए न तो चाय की दुकान मिलती है और न ही कोई होटल। लेकिन घने जंगलों के बीच सडक किनारे स्कूल ड्रेस में, बस का इंतजार करती कोई भी अकेली लड़की आसानी से दिख जाती है। वह जंगल की पगडंडियों से कई किलोमीटर चलकर अकेली और बेखौफ सड़क तक आ जाती है।
सुनसान इलाकों में फटी हुई चादर फैलाएं,उस पर दो ग्लास और एक केन रखे महिला मिल जाती है। इस केन में ताड़ी होती है। ताड़ी आदिवासी इलाकों का मनपसन्द पेय पदार्थ है जो नशे के लिए पिया जाता है। सुनसान रोड पर किसी पेड़ के नीचे बैठी हुई कोई महिला जंगली फलों को बेचती हुई मिल जाती है और पूछने पर वह इन फलों में औषधि लाभ भी बताती है।
आदिवासी संस्कृति मातृसत्तात्मक हैं। इन समाजों में परिवार का केंद्र माता को माना जाता है। गडचिरोली में रहनी वाली माडिया जनजाति की देवता एक स्त्री भी है जिन्हें कमारमुत्ते या जंगो भी कहा जाता है। आदिवासी इलाकों में घोटुल घरों को विवाह से जोड़कर देखा जाता है लेकिन यह आदिवासियों के सामुदायिक जीवन, सामूहिक निर्णय प्रक्रिया और लोक-सहभाग के अत्यंत रचनाबद्ध तरीकों का एक जीवित उदाहरण है। पीढ़ी दर पीढ़ी सालों से चली आ रही आदिवासी समुदाय की यह अविभाज्य घटक है। गांव के लोग यहां इकट्ठे होते हैं,चर्चा करते हैं,निर्णय लेते हैं,समस्याएं सुलझाते हैं तथा त्यौहार भी हर्षोउल्लास से मनाते हैं। इन सभी कार्यों में महिलाओं की भूमिका अहम और निर्णायक होती है। आदिवासी कभी कन्या भ्रूण हत्या या लिंग निर्धारण परीक्षणों से नहीं गुजरते और उनके द्वारा लड़कियों के साथ कभी भेदभाव नहीं किया जाता है। आदिवासी महिलाओं की स्थिति का अंदाजा मुख्य रूप से उनके द्वारा समाज में निभाई जाने वाली भूमिकाओं से लगाया जा सकता है।
पूर्वोत्तर के मेघालय के खासी,जयंतिया,गारो और लालुंग जनजातियाँ मातृवंशीय व्यवस्था का पालन करती है। केरल के मप्पीला भी एक मातृवंशीय समुदाय हैं। आदिवासी समुदायों की महिलाएं कड़ी मेहनत करती है,इसलिए उन्हें संपत्ति माना जाता है। विवाह में वधु मूल्य उनकी मजबूत स्थिति को दर्शाता है। यह पढ़े लिखे समाज में प्रचलित वर मूल्य के ठीक उलट है।
झारखंड के आदिवासी समुदायों में लड़कियों के जन्म को गोहार भरने के साथ जोड़ा जाता है। लड़कियों का स्वागत खुशियों और जश्न के साथ किया जाता है। आदिवासी स्त्रियों की नेतृत्व क्षमता को युद्द में भी स्वीकार किया जाता है. आदिवासियों के सबसे बड़े देवता बिरसा मुंडा की सुरक्षा का जिम्मा महिलाएं भी संभालती थी। झारखंड में सिनगीदई से लेकर दयामनी बारला तक आदिवासी महिलाओं के पराक्रम की कई कहानियां दर्ज है।
सिनगीदई ने चम्पू दई और कईली दई के नेतृत्व में मध्यकाल में तुर्क-पठानों का मुकाबला किया था। पड़हा राजा की बेटी सिनगीदई ने रोहतासगढ़ के किले की रक्षा करने के लिए पुरुष वेश में पारंपरिक हथियारों के जरिए महिलाओं को साथ लेकर रणनीति बनाई थी।
झारखंड से लगता हुए छत्तीसगढ़ के जंगलों में नक्सलियों और सुरक्षाबलों के बीच भीषण संघर्ष है लेकिन आदिवासी इलाकों में महिला सम्मान अभूतपूर्व है। चिंतलनार सुकमा का घोर नक्सल प्रभावित इलाका है। यहां सुरक्षाबलों पर कई नक्सली हमलें हुए है। चिंतलनार की रहने वाली पूनम छत्तीसगढ़ पुलिस के विशेष बल का हिस्सा है जो नक्सल विरोधी अभियान में भाग लेती है। इस घोर नक्सल इलाकें में भी पूनम बेहद सम्मानित समझी जाती है। हालांकि नक्सली उसे व्यक्तिगत तौर पर निशाना न बना दे,इसे लेकर उन्हें सतर्क रहना पड़ता है फिर भी उसका उत्साह किसी से कम नहीं।
सुकमा में तैनात
विशेष सशस्त्र पुलिस की स्पेशल कमांडों मीना कहती है की औरतों में ताकत कम नहीं होती है,वह मर्दों से ज्यादा लड़ सकती है। आदिवासी इलाकों में महिलाओं के प्रति सम्मान जन्मजात देखा जाता है। यहीं कारण है कि वह परिवार,समाज,अर्थ,संस्कृति,धर्म या युद्द हो,सबमें नेतृत्व करती है और उनका सम्मान भी सबसे बढकर होता है।
-#ब्रह्मदीप अलूने,(सुकमा ग्राउंड जीरो,किताब के लेखक)
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