भरोसा नहीं जगाता,कांग्रेस का हिंदुत्व 
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भरोसा नहीं जगाता,कांग्रेस का हिंदुत्व 

राष्ट्रीय सहारा,हस्तक्षेप

                  भरोसा नहीं जगाता,कांग्रेस का हिंदुत्व 

                                                                       

                                                      

 सुकमा कोंटा हाइवे क्रमांक 30 को छत्तीसगढ़ को जीवन रेखा माना जाता है। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों से होकर जाने वाला यह मार्ग छत्तीसगढ़ को तेंलगाना और आन्ध्र प्रदेश से जोड़ता है। जगदलपुर से आगे चलने पर कुछ ही दूरी पर दरभा घाटी है। इसके आगे ही झीरम घाटी है जहां 25 मई 2013 को नक्सलियों ने सलवा जुडूम के संस्थापक महेंद्र कर्मा,पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्या चरण शुक्ल,कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं और कार्यकर्ताओं समेत  कई लोगों की हत्या कर दी थी।

दरभा घाटी के सबसे ऊपर एक और नक्सलियों की याद में बनाएं गए दो बड़े बड़े स्मारक खड़े है जबकि उसके ठीक सामने एक भूपेश बघेल की फोटो के साथ पोस्टर लगा हुआ  नजर आता है,नक्सल मुक्त छत्तीसगढ़ में आपका स्वागत है। इस दावे की पड़ताल करें तो हकीकत यह है कि गृह मंत्रालय के मुताबिक छत्तीसगढ़ के 14 जिलों को नक्सल ग्रस्त बताया जाता है जिसमें बलरामपुर,बस्तर,बीजापुर,दंतेवाड़ा,धमतरी,गरियाबंद,कांकेर,कोंडागांव, महासमुंद,नारायणपुर,राजनंदगांव,सुकमा,कबीरधाम और मुंगेली शामिल है। इन पांच  वर्षों की बात करें तो नक्सली हमलों में 175 से ज्यादा जवान और करीब साढ़े तीन सौ लोग मारे जा चूके है।

दरअसल भूपेश बघेल की राजनीति में दावों और प्रचार का स्तर इतना विशाल था की वे कांग्रेस हाईकमान के सामने तो खुद को बेहतर दिखाने में कामयाब हो रहे थे लेकिन जमीनी और संगठन की राजनीति से जुडी भाजपा के लिए  रहस्य के जाल में सेंध लगाना कभी भी मुश्किल नहीं था। राजनीति में रंग बदलकर पहचान बनाने की कोशिश अक्सर धराशायी कर देती है,छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार के साथ कुछ ऐसा ही हुआ। तीन विधानसभा चुनावों में बुरी तरह मात खाने वाली कांग्रेस जब 2018 में छत्तीसगढ़ की  सत्ता पाने में कामयाब हुई तो उसके सामने कई अवसर थे की वह लोगों के दिलों में जगह बना लें। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को नक्सल,आदिवासी इलाकों में विकास,हिंसक आंदोलनों को रोकने और रोजगार देने की कोशिशों की ओर देखना था। लेकिन  उन्होंने प्रतिद्वंदी भाजपा के वोट में सेंध लगाने की कोशिशों पर ज्यादा ध्यान दिया और वे खुद को  दूसरों से बेहतर हिन्दू दिखाने की जी तोड़ कोशिशों में जुट गए।

करीब 528 किलोमीटर के राम पथ गमन की योजना को भूपेश बघेल में अपनी प्राथमिकता चुना। जगह-जगह भगवान राम की विशालकाय मूर्तियों की स्थापना तो जैसे सरकार की प्राथमिकता में शामिल रही। राम वन गमन पथ छत्तीसगढ़ में उन नौ स्थानों से भी गुजर रही है,जहां भगवान राम से जुड़ी यादे हैं। कोरिया, अंबिकापुर, जांजगीर चांपा,बलौदाबाजार,रायपुर,गरियाबंद,धमतरी, जगदलपुर बस्तर और सुकमा जैसे  जिलों से गुजरने वाले राम पथ गमन के विकास को खूब प्रचारित किया गया।

कोरिया जिले में तीन विधानसभाएं थी जिन पर 2018 में  कांग्रेस के विधायक जीत कर आये थे,इन तीनों पर अब भाजपा विधायक चुनाव जीत गए। आदिवासी बहुल इलाकों में आदिवासी आस्था के प्रतीकों को हिंदू देवी देवताओं से जोड़ने पर भूपेश बघेल ने खूब ध्यान लगाया लेकिन इन चुनावों में उसका असर कुछ दिखाई ही नहीं दिया। आदिवासी बहुल सरगुजा क्षेत्र की सभी 14 सीट पर भाजपा के उम्मीदवार जीते हैं,इसे परिणामों के हिसाब से निर्णायक माना जा सकता है। एक अन्य आदिवासी बहुल बस्तर संभाग में भाजपा ने आठ सीटें जीतकर बड़ी सफलता अर्जित की। 

छत्तीसगढ़ मध्य भारत का एक राज्य है जो अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और आदिवासी आबादी के लिए जाना जाता है। यहां पांच फीसदी अल्पसंख्यक रहते है जिसमें मुस्लिम,ईसाई,बुद्ध और जैन शामिल है।  वहीं तीस फीसदी से अधिक आदिवासी जनसंख्या है और इसका प्रभाव छत्तीसगढ़ की राजनीति पर दिखाई देता है।  राज्य में सरना धर्म मानने वाले आदिवासियों की भी अच्छी खासी तादाद है जो खुद को दूसरों से अलग बताने के लिए आन्दोलन करते रहे है। भूपेश बघेल सरकार के दौर में राज्य के मुस्लिम और ईसाई खासे नाराज  रहे,प्रदेश के कई इलाकों में साम्प्रदायिक तनाव की स्थिति कई बार बनी। मुस्लिम और ईसाई समुदाय में यह भी संदेश गया की उनके लिए पूर्ववर्ती रमन सिंह का कार्यकाल अच्छा था। साजा विधानसभा सीट से कद्दावर कांग्रेस नेता रविन्द्र चौबे जिनसे चुनाव हारे वे भुवनेश्वर साहू के पिता ईश्वर साहू  है। भुवनेश्वर साहू की सांप्रदायिक तनाव में हत्या कर दी गई थी।

बैलाडीला पर्वत पर  खनन को  लेकर आन्दोलन चलते रहे।  आदिवासी संगठन फर्जी ग्राम सभाओं के जरिए मनमाफिक फैसलों को थोपने के आरोप  लगाते है तो जल जंगल और जमीन नहीं देंगे जैसे नारे आदिवासी इलाकों में अक्सर सुनाई देते रहे है।  इन पांच सालों में हसदेव से लेकर सिलगेर तक दो दर्जन से अधिक जगहों पर आदिवासियों के आंदोलन चलते रहे और साल-साल भर तक चलने वाले इन आंदोलनों की सरकार ने न केवल अनदेखी की,बल्कि कुछ इलाकों में तो इन आंदोलनों का दमन भी किया गया। 

हसदेव के जंगल वन्य जीवन और वनस्पतियों से भरपूर हैं।   यहां बाघों और हाथियों जैसे जंगली जानवरों का बसेरा है।  वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने अपनी रिपोर्ट में इस क्षेत्र में माइनिंग न करने की चेतावनी दी थी।  साल 2010 में तत्कालीन पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने इसे प्रतिबंधित जोन घोषित किया था यानी उसे कटाई और खनन से अलग कर दिया गया था। लेकिन अब केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय  के द्वारा हसदेव अरण्य के परसा कोल ब्लॉक में खनन के लिये अंतिम मंजूरी  देने से समस्या बढ़ गई।  छत्तीसगढ़ सरकार ने भी यहां माइनिंग को हरी झंडी दे दी जिससे  आदिवासियों का व्यापक विरोध शुरू हो गया,जो बदस्तूर जारी है।

11 मई 2021 को बीजापुर जिले के सिलगेर गांव में स्थापित हुए नए पुलिस कैंप के विरोध में आसपास के सैकड़ों ग्रामीणों ने आंदोलन की शुरुआत की थी। आंदोलन के पांचवें दिन ग्रामीणों और पुलिस के बीच झड़प भी हुई जिसके बाद पुलिस के जवानों ने ग्रामीणों पर फायरिंग कर दी जिसमें 4 ग्रामीणों की मौत हो गई थी।  मरने वालों में एक गर्भवती महिला भी शामिल थी।  इस घटना के बाद जांच को लेकर ग्रामीणों का आंदोलन और उग्र हो गया और आसपास के 50 से अधिक गांवों के हजारों आदिवासी सिलगेर में जुटने लगे। यह आंदोलन अभी भी चल रहा है।

छत्तीसगढ़ की सत्ता में बने रहने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का मुकाबला भाजपा के मजबूत संगठन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से था। भूपेश बघेल हिंदुत्व के मुद्दे पर न तो प्रधानमंत्री मोदी से मुकाबला कर सकते है और न ही भाजपा से आगे निकल सकते है। जाहिर है भूपेश बघेल को छत्तीसगढ़ की नक्सल समस्या का हल करने और आदिवासी हितों के लिए कहीं बेहतर प्रयास करने की जरूरत थी। यह उनके लिए बेहतर अवसर बन सकता था,पर वे न तो जनता का मानस समझ सके और न ही उनका मानस अपने पक्ष में बना सके ।

#ब्रह्मदीप अलूने 

(लेखक,छत्तीसगढ़ के नक्सली इलाकों में रहकर किताब लिख रहे है)     

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