नवभारत टाइम्स
इतिहास कभी किसी को माफ नहीं करता और कम से कम ईरान के मरहूम राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी को तो कभी भी नहीं जिन्होनें अपने जीवनकाल में हिजाब पहनों नहीं तो हम तुम्हारे सिर पर मुक्का मारेंगे,मुसलमान हो या मार्क्सवादी,राजनीतिक विरोधियों का अंत ईश्वरीय इच्छा है जैसे नारे गढ़े और कानून का बेजा इस्तेमाल कर हजारों लोगों को मौत की नींद सुला दिया।
1979 की ईरान की इस्लामिक क्रांति के केंद्र में अयातोल्ला रुहोल्ला ख़ामेनई का नाम आता है लेकिन देश को धार्मिक कट्टरता,राजनीतिक विरोधियों के प्रति क्रूरता और महिलाओं के प्रति निर्ममता की नीतियों का निर्माता इब्राहिम रईसी को समझा जाता है। इब्राहिम रईसी अपने देश में इतने बदनाम रहे है की उनके बारे में यह कहा जाता है की उन्होंने हजारों लोगों को फांसी देकर ईरान के युवाओं की एक पीढ़ी को खत्म कर दिया। रईसी ने राजनीतिक कार्यकर्ताओं की एक पीढ़ी को खत्म कर दिया जो संभवतः सत्ता का विरोध कर सकते थे। 1980 के दशक की शुरुआत में ईरान में हजारों युवाओं पर मुक़दमा चलाया गया और उन्हें जेल की सज़ा सुनाई गई। कई पत्रकार, उत्साही और लोकतंत्र के समर्थक,पेपर बांटने वाले हॉकर,प्रदर्शनों में भाग लेने या कैदियों के परिवारों के लिए धन इकट्ठा करने वालों को गंभीर अपराधी बताया गया और जेल में डाल दिया गया। गिरफ्तारी के समय कई किशोर या बीस वर्ष की आयु के छात्र थे।
ईरान का कानून वेलायत-ए-फकीह शियावाद के उस सिद्धांत पर चलता है जिसके अनुसार एक प्रमुख शिया मौलवी को नए गणराज्य का नेतृत्व करना चाहिए। इस सिद्धांत के बूते अयातोल्ला रुहोल्ला ख़ामेनई कई दशकों से देश के सर्वोच्च नेता बने हुए है और उनकी स्वीकार्यता को बनाएं रखने के लिए इब्राहिम रईसी ने इस्लामिक कानून के नाम पर विरोधियों का जो उत्पीड़न और अपराध किए,वह मानवता पर कलंक है। अपनी युवा अवस्था में पश्चिमी देशों से समर्थित मोहम्मद रेज़ा शाह को सत्ता से बेदखल करने और धार्मिक अतिवाद फैलाने की इब्राहिम रईसी की प्रतिभा से प्रभावित होकर ख़ामेनई ने उन्हें महा अभियोजक बना दिया था। वे ईरान की उस डेथ कमेटी में प्रभावी बन गए जिन्होंने कानून का इस्तेमाल राजनीतिक विरोधियों को खत्म करने के लिए किया।
1980 के दशक में ईरान इराक युद्द में सुन्नी,कुर्द और वामपंथी विचारधारा को देश के खिलाफ अपराध बताया गया। इसे ईरान में शियावाद को स्थापित करने का अवसर बना दिया गया। देश के सबसे बड़े धार्मिक गुरु अयातुल्ला रुहोल्ला खुमैनी ने एक फतवा जारी कर आदेश दिया कि विपक्ष के समर्थन में दृढ़ रहने वाले और ईश्वर के विरुद्ध युद्ध छेड़ने वाले सभी कैदियों को फांसी की सज़ा दी जाए। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा कि कैदियों को फांसी देने के निर्णय अत्यधिक मनमाने थे। जेल में सजा पूरी कर चूके और रिहाई के हकदार हजारों पुरुषों और महिलाओं को फांसी पर लटका दिया गया। ख़ुमैनी के उत्तराधिकारी और लंबे समय तक उनके शिष्य रहे अयातुल्ला अली मोंटेज़ेरी ने सामूहिक फांसी की घटनाओं को इस्लामिक गणराज्य के इतिहास में सबसे बड़ा अपराध बताते हुए कहा कि हत्या करके विचारधारा के ख़िलाफ़ लड़ना पूरी तरह ग़लत है। नरसंहार और राजनीतिक उत्पीड़न को लेकर खुमैनी के साथ तनातनी और राजनीतिक उत्पीड़न ने अंततः दबाव में अंतत: मार्च 1989 में मोंटेज़ेरी को इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया गया था।
वहीं इब्राहिम रईसी ने इसे ईश्वर के आदेश का पालन करने पर गर्व जैसा बताया। 21 जून 2021 को निर्वाचित राष्ट्रपति के रूप में इब्राहिम रईसी ने अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में नरसंहार को प्रशंसनीय और न्याय के लिए जरूरी बताकर यह संदेश देने की कोशिश की थी की वे भविष्य में भी सुधार पसंद करने वाले इरानियों को कुचलने से परहेज नहीं करेंगे। राष्ट्रपति के रूप में रईसी ने राजनीतिक हत्याओं पर कोई अफसोस जताने से परहेज करते हुए अपने कृत्यों का बचाव किया और कहा कि मुझे अब तक रहे हर पद पर मानवाधिकारों की रक्षा करने पर गर्व है। 1988 के बाद से, मानवाधिकार समूहों,पश्चिमी सरकारों और संयुक्त राष्ट्र ने बार बार नरसंहार की निंदा की है और रायसी की भूमिका की जांच की मांग की लेकिन ईरान ने इस पर कभी ध्यान नहीं दिया।
इब्राहिम रईसी के शिकार कैदियों के परिजन भी हुए। राजनीतिक कैदियों से पारिवारिक मुलाकातें निलंबित कर दी गईं और उन्हें फांसी की कोई जानकारी कभी नहीं दी गई। रिश्तेदार नियमित मुलाक़ात के दिनों में जेल जाते थे लेकिन जेल प्रहरियों द्वारा उन्हें लौटा दिया जाता था। कुछ लोग जेलों में कपड़े,दवाइयाँ या पैसे इस उम्मीद से लाते थे कि उन्हें अपने कैद रिश्तेदारों से एक हस्ताक्षरित रसीद मिल जाएगी जो यह संकेत देगी कि वे अभी भी जीवित हैं। फांसी के शिकार लोगों को सामूहिक कब्रों में दफनाया गया और परिजनों को उनकी कब्रों को लेकर भी कुछ नहीं बताया गया। बाद में यह आदेश दिया गया की अंतिम संस्कार या कोई अन्य शोक समारोह आयोजित नहीं करेंगे।
इब्राहिम रईसी कहते थे कि जो ईश्वर से युद्ध करते है,उन पर दया दिखाना मूर्खतापूर्ण है।1999 में मानवाधिकार पर आधारित एक रिपोर्ट में दावा किया गया की नशीले पदार्थों की तस्करी जैसे आपराधिक अपराधों के लिए जिन लोगों को फांसी दी गई उनमें से कई वास्तव में राजनीतिक असंतुष्ट थे। सामूहिक कब्रों की वास्तविक संख्या छुपाई गई और ईरानी अधिकारियों ने अवशेषों के स्थान को छिपाने के लिए सार्वजनिक रूप से उपलब्ध दफन रजिस्टरों से अधिकांश पीड़ितों के नामों को भी बाहर कर दिया।
इब्राहिम रईसी राष्ट्रपति बने तो हिजाब को लेकर सख्त पाबंदी के चलते देश भर से खूब विरोध प्रदर्शन हुए। नैतिकता पुलिस ने कई महिलाओं को कोड़े से मारने की सजा दी। सैकड़ों महिलायें मारी गई। इब्राहिम रईसी की मौत के बाद ईरान में सड़कों पर रईसी के सम्मान में सहज रूप से बड़ी संख्या में भीड़ नहीं जुटी। तमाम प्रतिबंधों के बाद भी लोगों ने रईसी पर तंज़ किए और खुशी का इजहार भी किया। कहते है तानाशाहों की मौत पर सरकारी मातम होते है और खुशियां दिल में होती है,इरानियों का हाल कुछ ऐसा ही है। लोगों के मन में रईसी के कृत्यों लिए बहुत गुस्सा और असहनीय दर्द है और इससे ईरान में मानवाधिकारों की रक्षा की उम्मीद भी बढ़ी होगी।

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