बांग्लादेश में हिन्दूओं पर हमलों से किसे होगा फायदा…?          
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बांग्लादेश में हिन्दूओं पर हमलों से किसे होगा फायदा…?          

सुबह सवेरे

 

बांग्लादेश के रंगपुर ज़िले में पैग़ंबर मोहम्मद के ख़िलाफ़ कथित आपत्तिजनक पोस्ट के आरोप में कई हिंदू परिवारों के घरों को निशाना बनाया गया।घटना के बाद कई लोग अपने घर छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर चले गए हैं। ऐसे तथ्य सामने आएं है जिसके अनुसार मस्जिद के लाउडस्पीकर से लोगों को हमले के लिए उकसाया गया। इस घटना के बाद इलाके के हिंदू परिवारों में दहशत है और कई लोग पलायन कर चुके हैं। प्रशासन  कड़ी कार्रवाई का दावा कर रहा है लेकिन कट्टरपंथी समूहों के व्यापक दबाव के चलते हमलावरों पर शायद ही कोई कार्यवाही हो। इस समय बांग्लादेश में तकरीबन पौने दो करोड़ हिन्दू रह रहे है और इन्हें देश के सम्पूर्ण इस्लामीकरण में कट्टरपंथियों द्वारा बड़ी बाधा समझा जा रहा है। बांग्लादेश में राजनीतिक बदलाव और पाकिस्तान के हस्तक्षेप के चलते इस्लामिक कट्टरतावाद को बढ़ावा मिला है। बांग्लादेश का हालिया घटनाक्रम इसी का उदहारण है,जहां कानून व्यवस्था की स्थिति को ध्वस्त करते हुए कट्टरपंथी लगातार हिन्दुओं को निशाना बनाया गया है। कुख्यात इस्लामिक आतंकी संगठन आईएसआईएस के द्वारा यह विश्वास किया जाता है कि दक्षिण एशिया में उसका प्रभाव मजबूत करने में दुनिया का सबसे घनी आबादी वाला देश बांग्लादेश उसका खास मददगार हो सकता है। 2015 में शियाओं के जुलूस और विदेशी नागरिकों पर ढाका में जो हमले हुए थे उसमें इस्लामिक स्टेट का हाथ सामने आने की बात सामने आई थी।  

हालांकि बंगाल में साम्प्रदायिकता का इतिहास बहुत पुराना है जो बंगलादेश में अक्सर प्रतिबिम्बित होता है। भारत और पाकिस्तान के बंटवारे की कहानी नोआखाली के ज़िक्र के बिना अधूरी मानी जाती है।  तकरीबन पचहत्तर साल पहले 1946 में लक्ष्मी पूजन के दिन यहां भीषण साम्प्रदायिक दंगे शुरू हुए थे।  उस समय जिन्ना के डायरेक्ट एक्शन डे से सबसे ज्यादा प्रभावित इस क्षेत्र में हजारों हिन्दुओं का कत्लेआम कर दिया गया था। सात दशक से ज्यादा का समय बीत जाने के बाद दुनिया में बहुत कुछ बदला है लेकिन मौजूदा बांग्लादेश के चटगांव डिवीज़न के नोआखाली ज़िले में स्थितियां जस की तस नजर आती है।  2021 में दुर्गा पूजा पर नोआखाली में एक बार फिर हिन्दुओं को बड़े पैमाने निशाना बनाया गया। 1946 में नोआखाली मुस्लिम बहुल था,लेकिन ज़मींदारों में हिंदुओं की संख्या अधिक थी। उस समय यह माना गया था कि नोआखाली में एक सुनियोजित दंगा था,जिसका लक्ष्य  हिंदुओं को भगाकर उनकी संपत्तियों पर क़ब्ज़ा करना था। इस समय भी हालात मिले जुले और समान नजर आते है। दुर्गा पूजा पर हिन्दुओं और उनके धर्म स्थलों पर हमलें इतने सुनियोजित  थे कि पुलिस प्रशासन और सरकार के नुमाइन्दें प्रभावित हिन्दुओं को राहत देने में नाकामयाब रहे। यहां तक की अल्पसंख्यक हिन्दुओं का यह कहना है कि प्रशासन से सुरक्षा के लिए मदद की गुहार करने के बाद भी उसे नजरअंदाज कर दिया गया। 1946 में महात्मा गांधी दिल्ली से पंद्रह सौ किलोमीटर दूर सांप्रदायिकता की आग में जल रहे पूर्वी और पश्चिमी बंगाल में अमन बहाली की कोशिशों में जुटे थे और उन्होंने नोआखाली में लम्बा समय बिताया था,इस दौरान  उनके साथ जेबी कृपलानी,सुचेता कृपलानी,राममनोहर लोहिया और सरोजनी नायडू जैसे नेता था जिनकी अमन बहाली की कोशिशे कामयाब रही थी। लेकिन इस समय मौजूदा सरकार के नुमाइन्दें ऐसी कोई कोशिश करते नहीं दिख रहे है और इसी का परिणाम है कि नोआखाली समेत जेसोर,देबीगंज,राजशाही,मोईदनारहाट,शांतिपुर,प्रोधनपारा,आलमनगर,खुलना,राजशाही,रंगपुर और चटगांव जैसे अहम इलाकों से हिंदू पलायन करने को मजबूर हो गए है। यह पलायन का तात्कालिक कारण जरुर है लेकिन  पीछे बांग्लादेश में पनपने वाला वह कट्टरतावाद है जिसके परिणामस्वरूप अगले कुछ सालों में इस देश के हिन्दू विहीन होने का दावा किया गया है।

ढाका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ.अबुल बरकत का एक शोध 2016 में सामने आया था जिसके अनुसार यह दावा किया गया है कि  करीब तीन दशक में बांग्लादेश से हिंदुओं का नामोनिशान मिट जाएगा। इस शोध के मुताबिक हर दिन अल्पसंख्यक समुदाय के औसतन 632 लोग बांग्लादेश छोड़कर जा रहे हैं। देश छोड़ने की यह दर बीते 49 सालों से चल रहा है और यदि यही दर आगे भी जारी रही तो अगले तीस  वर्षों में देश से करीब-करीब सभी हिंदू चले जाएंगे। यह भी बेहद दिलचस्प है कि बंगलादेश के मुक्ति संग्राम में हिन्दुओं ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था और इसी के कारण 1971 में पूर्वी पाकिस्तान कहे जाने वाले और मौजूदा बांग्लादेश को पाकिस्तान के अत्याचारों से मुक्ति मिली थी। उस समय यह माना गया था कि बांग्लादेश भारत की तरह ही समावेशी विचारों वाला लोकतांत्रिक समाजवादी धर्मनिरपेक्ष गणराज्य होगा। लेकिन बांग्लादेश के राष्ट्रपिता मुजीबुर्रहमान की हत्या के बाद स्थितियां तेजी से बदल गई। बाद के शासकों जिया-उर-रहमान और जनरल एच.एम. इरशाद के सैन्य शासनकाल में देश का इस्लामीकरण तेजी से हुआ। खालिदा जिया जैसी नेताओं ने जमात-ए -इस्लामी जैसे संगठनों को मजबूती दी और इसी कारण बांग्लादेशी समाज में कट्टरता को बढ़ावा मिला। इसके सबसे ज्यादा घातक नतीजे यहां रहने वाले हिन्दुओं को भोगने को मजबूर होना पड़ा है।

 

अब बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार है और अल्पसंख्यकों पर अत्याचार बढ़े है। इसके पहले पिछले कुछ वर्षों से बांग्लादेश में अवामी लीग का शासन था और प्रधानमंत्री शेख हसीना को हिन्दू अल्पसंख्यकों के लिए उदार माना जाता था। लेकिन इसके बाद भी वे अल्पसंख्यकों के लिए कोई निर्णायक बदलाव लाने में असफल रही। खासकर सम्पत्ति नियमों को लेकर। गौरतलब है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश से हिन्दुओं के पलायन का प्रमुख कारण सम्पत्ति रही है जिस पर कब्जा करने के लिए कट्टरपंथी मुस्लिमों द्वारा अक्सर और सुनियोजित रूप से उन्हें निशाना बनाया जाता है।1965 में तत्कालीन पाकिस्तान सरकार ने शत्रु संपत्ति अधिनियम बनाया था,जिसे अब वेस्टेड प्रॉपर्टी एक्ट के नाम से जाना जाता है। भारत के साथ जंग में हुई हार के बाद अमल में लाए गए इस क़ानून के तहत 1947 में पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान से भारत गए लोगों की अचल संपत्तियों को शत्रु संपत्ति घोषित कर दिया गया था। बांग्लादेश में शत्रु संपत्ति अधिनियम की वजह से लाखों हिंदुओं को अपनी जमीनें गंवानी पड़ी थी।  प्रो.अबुल बरकत के अनुसार,वेस्टेड प्रॉपर्टी एक्ट की वजह से बांग्लादेश में 1965 से 2006 के दौरान अल्पसंख्यक हिंदुओं के स्वामित्व वाली 26 लाख एकड़ भूमि दूसरों के कब्जे में चली गई। 2001 मे अवामी लीग की सरकार ने  वेस्टेड प्रॉपर्टी एक्ट में बदलाव कर इसका नाम वेस्टेड प्रॉपर्टी रिटर्न एक्ट कर दिया। इस फैसले का मकसद बांग्लादेश में रहने वाले अल्पसंख्यकों को उनकी अचल संपत्तियों का लाभ दिलाना था। लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी है कि अदालत के निर्णय के बाद भी हिंदुओं का सम्पत्ति को शांतिपूर्ण हस्तान्तरण मुमकिन नहीं होता। वर्तमान स्थिति के अनुसार,नए अधिनियम का अभी तक उचित रूप से कार्यान्वयन नहीं हुआ है और कट्टरपंथी तत्वों से जमीन मुक्त करवाने में न तो बंगलादेश की सरकार की दिलचस्पी है और न ही पुलिस इसे लेकर गंभीर है।

मार्च 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब बांग्लादेश की यात्रा पर गए थे तब भी उनकी यात्रा का विरोध बड़े पैमाने पर हुआ था और इसमें जमात-ए-इस्लामी की भूमिका खास मानी जाती है। देश में प्रतिबन्ध लगने के बाद यह अन्य कट्टरपंथी ताकतों को मजबूत करने में जुटा है और इस्लामीकरण को बढ़ावा दे रहा है।  2010 में जमात-ए-इस्लामी समर्थित संगठन  हिफाज़त-ए-इस्लाम ने बांग्लादेश में महिलाओं की शिक्षा का विरोध बड़े पैमाने पर किया था। इस समय ईशनिंदा की अफवाह फैलाकर अल्पसंख्यक हिन्दुओं को बांग्लादेश से भागने को मजबूर करने की सुनियोजित साजिश को बड़े पैमाने पर अंजाम दिया जा रहा है और इसमें सबसे बड़ा मददगार बांग्लादेश का प्रतिबंधित राजनीतिक संगठन जमात-ए-इस्लामी है। यह दल बांग्लादेश में इस्लामी शासन  स्थापित करना चाहता है,इसे पाकिस्तान का सबसे बड़ा हिमायती माना जाता है। यहां तक की 1971 में जब बांग्लादेशी जब पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों का सामना कर रहे थे तब भी यह दल पाकिस्तान का समर्थन ले रहा था। तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्ज़े का भी इस संगठन ने समर्थन किया था और अब यह पाकिस्तान में पुन: बंगलादेश के विलय के पक्ष में भी माहौल बनाने में जुटा है। आनेवाले कुछ महीनों में बंगलादेश में आम चुनाव होने वाले है और हिन्दुओं के पलायन से जमात-ए-इस्लामी जैसे राजनीतिक दल के सत्ता में आने की संभावना बढ़ सकती है। अफ़सोस,बंगलादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस कट्टरपंथी तत्वों पर लगाम नहीं लगा पा रहे है और यह स्थिति अल्पसंख्यक हिन्दुओं के लिए जानलेवा साबित हो रही है।

 

 

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