राष्ट्रीय सहारा
भारतीय सांस्कृतिक एकता की जादुई हकीकत को नजरअंदाज कर,इस्लामिक राष्ट्रवाद की कपोल कल्पित अवधारणा के बूते भाषा,क्षेत्र,जातीय और सांस्कृतिक विविधता के खत्म होने तथा एकरूपता में बंधने की मोहम्मद अली जिन्ना की सोच को पश्तूनों ने शुरूआती दौर में ही गलत ठहरा दिया था। 1971 में पृथक बांग्लादेश ने उसे आइना दिखाया और अब बलूचिस्तान उसी विचार को धराशायी कर रहा है।
इस समय समूचा बलूचिस्तान उबल रहा है। बलूचिस्तान की अवाम का गुस्सा पाकिस्तानी सेना,सत्ता और व्यवस्थाओं को लेकर है। न्यायिक हिरासत, सरकारी हिंसा,उत्पीड़न,अपहरण और शोषण से जूझते यहां के लोगों को पाकिस्तान की पुलिस से गहरी नफरत है,सेना को वे अपना दुश्मन समझते है और न्यायपालिका पर उन्हें बिल्कुल भरोसा नहीं है। महरंग बलोच,एक मानवाधिकार कार्यकर्ता है जो मुखरता से पाकिस्तान की संप्रभुता को चुनौती देते हुए तकरीरें करती है। इन तकरीरों में हजारों लोग जुटते है जो पाकिस्तान से अलग एक स्वतंत्र देश बलूचिस्तान के पक्ष में हुंकार भरते है। उनके नेतृत्व में कई विरोध मार्च और आंदोलन हुए है जिससे अंतरराष्ट्रीय मंच पर बलूचिस्तान में हो रहे अत्याचारों का मुद्दा बुलंद हुआ है। पाकिस्तान की सेना इन्हें देशद्रोही,अलगाववादी और आतंकवादी कहकर मारती और प्रताड़ित करती है,इससे लोगों में गुस्सा बड़ा है। पाकिस्तान की व्यवस्थाओं पर पंजाबीवाद बूरी तरह से हावी है जहां बड़े पदों से लेकर राजनीतिक सत्ता तक पंजाबियों का कब्जा समझा जाता है। यहीं कारण है की पाकिस्तान में पंजाबी बनाम बलूचिस्तानी की लड़ाई हिंसक हो गई है। बलूचिस्तान में पंजाबियों से इतनी नफरत है कि पहचान सामने आते ही उन्हें मार दिया जाने लगा है।
आधे पाकिस्तान से बस थोड़े ही कम क्षेत्रफल वाला पाकिस्तान के इस सबसे बड़े प्रांत के बाशिंदे खुद को पाकिस्तानी बताने से परहेज करते है। बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा और सबसे कम आबादी वाला प्रांत है। बलूच जातीय और ऐतिहासिक रूप से अलग लोग हैं जो करीब पौने चार लाख वर्ग मील के क्षेत्र में रहते हैं। बलूचिस्तान क्षेत्र के अन्तर्गत पाकिस्तान का बलूचिस्तान नामक दक्षिण-पश्चिमी प्रान्त,दक्षिणी-पूर्वी ईरान का सिस्तान बलूचिस्तान प्रान्त और दक्षिणी अफगानिस्तान का बलूचिस्तान क्षेत्र आते हैं। इनके लिए बलूचिस्तान एक पहचान नहीं बल्कि एक राष्ट्र है। जिसमें साझा भावना सामूहिक पहचान का एक रूप प्रदान करती है और राजनीतिक एकजुटता में व्यक्तियों को एक साथ बांधती है। बलूचिस्तान को पाकिस्तान में एक पिछड़ा हुआ प्रांत समझा जाता है लेकिन बलूच बलूचिस्तान को एक राष्ट्र और एक सांस्कृतिक राजनीतिक समुदाय के रूप में भी परिभाषित करते है जो अपनी स्वायत्तता,एकता और विशेष हितों के प्रति बहुत सचेत है। भारत के विभाजन के बाद से ही बलूचिस्तान में एक राष्ट्रवादी आंदोलन चल रहा है। बलूचिस्तान के लोगों का मानना है कि भारत पाकिस्तान बंटवारे के व़क्त उन्हें ज़बरदस्ती पाकिस्तान में शामिल कर लिया गया,जबकि वो ख़ुद को एक आज़ाद मुल्क़ के तौर पर देखना चाहते थे। बलूच निवासी खुद को पाक के अधीन नहीं रखना चाहते। बलोच राष्ट्रवाद उनके अलग देश बनाने की चाह का नतीज़ा है।1947 में पाकिस्तान के निर्माण के बाद से ही बलूच राष्ट्रवादियों और केंद्र सरकार के बीच संबंध टकरावपूर्ण रहे हैं,जो समय-समय पर हिंसक होते रहे हैं। बलोच राष्ट्रवादी नेता अकबर खान बुगती की पाकिस्तानी सेना द्वारा 2006 में हत्या कर दी गई थी। इस अभियान का आदेश जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने दिया था जो तब देश के सैन्य प्रमुख और राष्ट्रपति दोनों थे। बुगती,बलूचिस्तान की आज़ादी की लड़ाई के बड़े सम्मानित चेहरे माने जाते थे,उनकी हत्या से विवाद गहरा गया और यह हिंसक संघर्ष के रूप में अब भी जारी है।
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जाफ़र एक्सप्रेस पर हमला कर कई यात्रियों को बंधक बनाने वाले प्रतिबंधित बलूच लिबरेशन आर्मी नामक चरमपंथी संगठन को आम बलूच लोगों का भारी समर्थन हासिल है। बलूच नेशनल आर्मी यानी बीएलए एक दशक से ज़्यादा समय से बलूचिस्तान में सक्रिय है। ये समूह बलूचिस्तान को विदेशी प्रभाव से आज़ाद कराने की इच्छा रखता है। बीएलए का मानना है कि बलूचिस्तान के संसाधनों पर पहला हक़ उनका है,यहीं कारण है की इस क्षेत्र में चीन की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं का भविष्य अधर में पड़ गया है।
बलूचिस्तान प्राकृतिक गैस और तेल से समृद्ध है और पाकिस्तान के सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक है। इस समय यहां चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा का विरोध चरम पर है। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा पाकिस्तान और चीन के बीच एक द्विपक्षीय परियोजना है। इसका उद्देश्य चीन के पश्चिमी भाग में स्थित शिनजियांग प्रांत को पाकिस्तान के उत्तरी भागों में खुंजेराब दर्रे के माध्यम से बलूचिस्तान में ग्वादर बंदरगाह से जोड़ना है। इसका उद्देश्य ऊर्जा,औद्योगिक और अन्य बुनियादी ढांचा विकास परियोजनाओं के साथ राजमार्गों,रेलवे और पाइपलाइनों के नेटवर्क के साथ पूरे पाकिस्तान में कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना है। यह ग्वादर पोर्ट से चीन के लिये मध्य पूर्व और अफ्रीका तक पहुँचने का मार्ग प्रशस्त करेगा,जिससे चीन हिंद महासागर तक पहुँच सकेगा। 2013 में शुरू किए गए बीआरआई का उद्देश्य दक्षिण पूर्व एशिया,मध्य एशिया,खाड़ी क्षेत्र,अफ्रीका और यूरोप को भूमि तथा समुद्री मार्गों के नेटवर्क से जोड़ना है। बलूचिस्तान के लोगों का मानना है कि पाकिस्तान की सत्ता और सेना मिलकर उनके खनिज संसाधनों को लूट रही है तथा इसमें चीन की प्रमुख भागीदारी है। यहीं कारण है की बलूच लिबरेशन आर्मी के लड़ाके चीनी इंजीनियरों को भी निशाना बना रहे है।
बलूचियों के गुस्से के कई कारण है और पाकिस्तान की व्यवस्था ने इसे बढ़ाया ही है। प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर इस क्षेत्र में बहुत गरीबी और पिछड़ापन है। पंजाबियों के प्रभुत्व वाली व्यवस्थाएं पाकिस्तान के लिए अभिशाप से कम नहीं है। 1971 में अलग बांग्लादेश का बनना भी पंजाबियों के प्रभाव से अलग होने की छटपटाहट थी,जिससे पाकिस्तान ने कोई सबक नहीं लिया। बलूच लोग सेना,पुलिस और न्यायपालिका में बलूच प्रतिनिधित्व की कमी देखते हैं,इस पर पंजाबियों के हितों का व्यापक प्रभुत्व है। पाकिस्तान की सरकार हिंसक तरीके से बलूच राष्ट्रवाद को खत्म करना चाहती है जो नामुमकिन है। सेना के प्रभाव वाली पाकिस्तानी व्यवस्था में लोकतांत्रिक तरीके से समस्याओं के समाधान को नजरअंदाज किया जाता है,इसने स्थिति को ज्यादा जटिल बना दिया है। अंततः भारतीय उपमहाद्वीप का चरित्र लोकतांत्रिक और समावेशी रहा है,पाकिस्तान आठ दशकों से उसी पहचान को मिटा देने की कोशिश करते करते खत्म होने की कगार पर पहुंच गया है।

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